Must Read- shardiya navratri में अखंड दीपक रखने से पहले जान लें उसके कुछ नियम पहला दिन मां शैलपुत्री का
नवदुर्गा में पहले दिन माता शैलपुत्री की आराधना की जाती है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें पार्वती और हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। माता शैलपुत्री की आराधना से मन वांछित फल मिलता है। माता शैलपुत्री का स्वरूप अति दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।
नवदुर्गा में पहले दिन माता शैलपुत्री की आराधना की जाती है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें पार्वती और हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। माता शैलपुत्री की आराधना से मन वांछित फल मिलता है। माता शैलपुत्री का स्वरूप अति दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।
सफेद चीजों का भोग: मां शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगाया जाता है। अगर यह गाय के घी में बनी हों तो व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है और हर तरह की बीमारी दूर होती है।
दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी का
नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से भक्तों का जीवन सफल हो जाता है। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। यानी तप का आचरण करने वाली भगवती को मां ब्रह्मचारिणी कहा गया है।
मिश्री, चीनी और पंचामृत: मां ब्रह्मचारिणी को मिश्री, चीनी और पंचामृत का भोग लगाया जाता है।
यदि इन्हीं चीजों का दान भी किया जाए तो लंबी आयु का सौभाग्य भी पाया जा सकता है। तीसरा दिन माता चंद्रघंटा का
तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति माता चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। मां चंद्रघंटा की उपासना से भौतिक, आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है। मां की उपासना से घर-परिवार में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
यदि इन्हीं चीजों का दान भी किया जाए तो लंबी आयु का सौभाग्य भी पाया जा सकता है। तीसरा दिन माता चंद्रघंटा का
तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति माता चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। मां चंद्रघंटा की उपासना से भौतिक, आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है। मां की उपासना से घर-परिवार में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
दूध व दूध से बनी चीजों का भोग: चंद्रघंटा माता को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं साथ ही संभव हो तो इसे दान भी करें।ऐसा करने से मां खुश होती हैं और सभी दुखों का नाश करती हैं।
चौथा दिन मां कुष्मांडा का
नवरात्र के चौथे दिन भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। कुष्मांडा देवी के बारे में कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसलिए इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए ये सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं।
नवरात्र के चौथे दिन भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। कुष्मांडा देवी के बारे में कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसलिए इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए ये सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं।
मालपुए का भोग: मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं। इसके बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर दें और खुद भी खाएं। इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी अच्छी हो जाएगी।
पांचवा दिन माता स्कंदमाता का
नवरात्रि का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है। गोद में स्कन्द यानी कार्तिकेय को लेकर विराजित माता का यह स्वरूप प्रेम, स्नेह, संवेदना को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
नवरात्रि का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है। गोद में स्कन्द यानी कार्तिकेय को लेकर विराजित माता का यह स्वरूप प्रेम, स्नेह, संवेदना को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
केले का भोग लगाएं: पंचमी तिथि के दिन मां स्कंदमाता की पूजा करके केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।
छठवां दिन माता कात्यायनी का
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ा। अगर मां कात्यायनी की पूजा सच्चे मन से की जाए तो भक्त के सभी रोग दोष दूर होते हैं।
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ा। अगर मां कात्यायनी की पूजा सच्चे मन से की जाए तो भक्त के सभी रोग दोष दूर होते हैं।
शहद का भोग लगाएं: छठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानी शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।
सातवां दिन माता कालरात्रि का
मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
गुड़ का भोग: मां कालरात्रि सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति शोकमुक्त होता है। आठवां दिन माता महागौरी का
मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।
मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।
नारियल का भोग: मां महागौरी अष्टमी के दिन मां को नारियल का भोग लगाएं। नारियल को सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। मान्यता है कि ऐसा करने से आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री का
नवरात्रि के नौवें दिन मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा होती है। मां सिद्धिदात्री स्वरूप को मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। हलवा, पूरी और चने का भोग: मां सिद्धिदात्री नवमी तिथि पर मां को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं जैसे- हलवा, चना-पूरी, खीर और पुए और फिर उसे गरीबों को दान करें। इससे जीवन में हर सुख-शांति मिलती है।
नवरात्रि के नौवें दिन मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा होती है। मां सिद्धिदात्री स्वरूप को मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। हलवा, पूरी और चने का भोग: मां सिद्धिदात्री नवमी तिथि पर मां को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं जैसे- हलवा, चना-पूरी, खीर और पुए और फिर उसे गरीबों को दान करें। इससे जीवन में हर सुख-शांति मिलती है।