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शराब नहीं होता सोमपान का मतलब, जानिए सोशल मीडिया पर वायरल मैसेज का सच

locationआगराPublished: Jul 19, 2018 09:45:42 am

Submitted by:

suchita mishra

सोशल मीडिया पर इन दिनों श्रीमद्भगवद्गीता का एक श्लोक वायरल हो रहा है जिसे गलत अर्थ के साथ प्रचारित किया जा रहा है। ज्योतिषाचार्य से जानें हकीकत।

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आगरा। इन दिनों सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है। इस मैसेज में श्रीमद्भगवद्गीता का एक
श्लोक लिखा है- ‘त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा, यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते। ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक, मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्।।’ इस मैसेज के जरिए ये बताया जा रहा है कि सोमपा: का अर्थ सोमपान करने यानी शराब का सेवन करने से है। मैसेज फॉवर्ड करते हुए लिखा जा रहा है कि निश्चिंत होकर दारू पिएं, स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इससे काफी लोग भ्रमित थे कि आखिर गीता में शराब के सेवन का जिक्र कैसे हो सकता है। इस संशय को दूर करने के लिए हमने ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से बात की और सोमपान का सही अर्थ जाना।
ऋग्वेद में की गई है घोर निंदा
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि शास्त्रों में नशे की घोर निंदा की गई है, ऐसे में गीता जैसे ग्रंथ में शराब पीने का जिक्र कैसे किया जा सकता है, जबकि गीता मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाती है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि सोमरस का मतलब शराब से लेना पूरी तरह गलत है। ऋग्वेद में साफतौर पर शराब की घोर निंदा करते हुए कहा गया है कि “हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्” यानी सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं। लिहाजा गीता के श्लोक में लिखे सोमपान का अर्थ शराब से लेना पूरी तरह गलत साबित होता है। ये श्रीमद्भगवद्गीता को बदनाम करने की साजिश है।
समझें सोमरस का सही अर्थ
दरअसल सोम की लताएं राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरी, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है। इसके गुण संजीवनी बूटी से मिलते हैं। लिहाजा कुछ विद्वान इसे ही संजीवनी बूटी मानते हैं। उनका मानना है कि लक्ष्मण की मूर्छा के वक्त हनुमान जी जब पर्वत उखाड़ कर लाए थे, तब संजीवनी बूटी यानी सोमरस से ही उन्हें ठीक किया गया था।
ऋग्वेद में सोमरस को इंसानों के साथ साथ गायों को भी देने की बात की गई है। सोम के डंठलों को पेरकर, छानकर और मिलाकर तैयार किया जाता है। यह ऋषियों का चमत्कारी आविष्कार है। माना जाता है कि इसे पीने से व्यक्ति ताउम्र युवा रहता है। यह पूर्ण सात्विक, अत्यंत बलवर्धक, आयुवर्धक व भोजन-विष के प्रभाव को नष्ट करने वाली औषधि है। इसी कारण इंद्र समेत तमाम देवता सोमरस पान करते हैं जिसका मतलब लोग शराब से लेते हैं जो कि पूरी तरह गलत है।
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि गीता में श्लोक के जरिए इसी सोमरस को पीने की बात करते हुए लिखा गया है कि जो वेदों का अध्ययन तथा सोमरस पान करते हैं, वे स्वर्ग प्राप्ति कर अप्रत्यक्ष रूप से मेरी आराधना करते हैं। वे पाप से मुक्त होकर इंद्र के पवित्र स्वार्गिक धाम में जन्म लेते हैं, जहां वे देवतााओं सा आनंद भोगते हैं।
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