scriptसाहित्य की आधारभूमि होती हैं लघु पत्रिकाएं | Small magazines at NBT national book fair agra college sports ground | Patrika News
आगरा

साहित्य की आधारभूमि होती हैं लघु पत्रिकाएं

आगरा कॉलेज के खेल मैदान पर चल रहे आगरा पुस्तक मेला में लघु पत्रिकाओं पर परिचर्चा

आगराMar 17, 2018 / 12:17 pm

Bhanu Pratap

book fair

book fair

आगरा। आगरा कॉलेज के खेल मैदान पर चल रहे आगरा पुस्तक मेला में लघु पत्रिकाओं पर परिचर्चा की गई। हालांकि श्रोता नाम मात्र के थे, लेकिन चर्चा सार्थक रही। वक्ताओं ने कहा कि लघु पत्रिकाओं ने रचनाकारों की आधारभूमि तैयार की है। लघु पत्रिकाएं साहित्य की आधारभूमि होती हैं। मांग की गई कि लघु पत्रिकाओं की खरीद सरकारी स्तर पर हो और अनुदान दिया जाए।
हजारों लघु पत्रिकाएं निकल रहीं

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के सम्पादक डॉ ललित किशोर मंडोरा ने कहा कि लघु पत्रिकाओं का आज अपना वजूद बरकरार है हजारों की संख्या में हर प्रदेश से स्थानीय रचनाकारों के सहयोग से पत्रिकाएं निकल रही है। दिल्ली, छत्तीसगढ़, पंजाब, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड पर एक नजर डालें तो पता चलेगा कि कितनी पठनीय पत्रिकाएं निकल रही है। सरकारी तंत्र की नजर से देखें तो विदेश मंत्रालय की गगनांचल, केंद्रीय हिंदी निदेशालय की भाषा, साहित्य अकादेमी से समकालीन भारतीय साहित्य, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया से पुस्तक संस्कृति, प्रकाशन विभाग से आजकल, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हिमाचल भाषा अकादेमी से सोमसी निकल रही है। निजी प्रयासों से साहित्य कुंज, अलाव, आधुनिक साहित्य, प्रवासी संसार, अनवरत, व्यंग्ययात्रा, कथन, यू एस एम पत्रिका, मंतव्य, सजग समाचार टाइम्स इत्यादि का प्रकाशन जारी है।
book fair
समाज को मध्यम देती हैं
परिचर्चा में विश्व हिन्दी साहित्य परिषद के अध्यक्ष व आधुनिक साहित्य पत्रिका के सम्पादक डॉ आशीष कंधवे ने कहा- लघु पत्रिकाएं साहित्य की आधारभूमि है। समाज को एक माध्यम देती हैं। आजादी के बाद से ही लघु पत्रिकाओं का आधार खड़ा हुआ। इन पत्रिकाओं ने साहित्य के कर्मठ लोगों के साथ अपने आपको जोड़ा। नए और पुराने लोगों को जोड़ा। इस देश में जितने भी बड़े रचनाकार हैं, सब कहीं न कहीं लघु पत्रिकाओं से आरंभ में जुड़े है। छोटी पत्रिकाएं जमीन को तैयार करने में भूमिका निभाने में सक्षम हैं।
वंचितों की आवाज का माध्यम
दिल्ली से आमन्त्रित साहित्यकार व उद्गम साहित्य संस्कृति संस्थान के अध्यक्ष डॉ विवेक गौतम ने बताया कि संवेदनाओं के लिए समय बचाना अनिवार्य है। वर्तमान समय में हालात बड़े विकट है। दूरियां बढ़ रही है। रचनाकारों के सामने भी अलग तरह का ऊहापोह है। समाज में सभी के समक्ष सभी तरह की चुनौतियां है। उससे हमें लड़ना है और आगे बढ़ना है। लघु पत्रिकाओं को हम कम नहीं आंक सकते। इन पत्रिकाओं को जिजीविषा बड़ी समृद्ध है। लघु पत्रिकाएं स्वतंत्र होती हैं, सामाजिक चेतना और वंचितों की आवाज का एक मजबूत माध्यम बनती हैं।
book fair
अनुदान दिया जाए
विदेशों में हिन्दी की सेवा के लिए प्रतिबद्ध प्रवासी संसार के सम्पादक डॉ राकेश पांडेय ने कहा- आज सत्य कहना कठिन हो गया है। लघु पत्रिका में साहस है, वह अन्याय के खिलाफ खड़ा होकर बोल सकता है। वह आज के समय में सत्य का निर्वाह करता है। लघु पत्रिकाओं ने ईमानदारी और सच्चाई को अभी भी बचा कर रखा हुआ है। राजेन्द्र यादव से आप असहमत हों, लेकिन उसका अपना पाठक वर्ग है। कई पत्रिकाएं ऐसी हैं कि आप उनको खारिज नहीं कर सकते। देश के हर मंत्रालय को लघु पत्रिकाओं को अनुदान अवश्य देना चाहिए, ताकि वे अपने लक्ष्य को आवाम तक पहुंचाने में एक सार्थक भूमिका का निर्वहन कर सकें।
पत्रिका निकालना आसान कार्य नहीं
परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ दिविक रमेश ने कहा- आज पत्रिका निकालना कोई आसान कार्य नहीं है। आज जो संकट रचनाकारों के सामने है, वह संकट पत्रिकाओं के सामने भी है। लघु पत्रिकाओं का आंदोलन भारतेंदु के युग से पहले चला। 1969 में रमेश बक्शी ने लघु पत्रिकाओं का मेला लगाया था। उस प्रदर्शिनी में 100 से ऊपर की पत्रिकाएं थीं। जब यह सोचा गया कि उन पत्रिकाओं का भी एक संगठन होना चाहिए। दब विजय देव नारायण साही ने उसे लघु शब्द दिया था। लघु एक संकल्पना हैं। लघु कहने से उसकी क्षुद्रता या उसका अर्थ छोटा नहीं हो जाता। यह संज्ञा के साथ संकल्पना की बात है। इसी देश में धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान ऐसी पत्रिकाएं थीं, जो हर घर की रौनक बढ़ाती थीं। धर्मवीर भारती जैसे सम्पादक थे। हर अंक में एक कविता और एक कहानी छापते थे। लघु पत्रिकाओं ने मुझे व्यापक स्तर तक पहुंचाने में बड़ा कार्य किया है।
ये रहे उपस्थित
परिचर्चा में स्थानीय लोगों ने बड़े मन से सभी को सुना। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। डॉ. खुशीराम शर्मा, आकाशवाणी के नीरज जैन, डॉ शशि तिवारी, डॉ श्रीभगवान शर्मा, दीपक सरीन, कुंवर अनुराग, अमीर अहमद जाफरी, रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी, गिरीश अश्क आदि मौजूद थे।

Home / Agra / साहित्य की आधारभूमि होती हैं लघु पत्रिकाएं

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो