यह भी पढ़ें भाजपा महानगर और जिलाध्यक्ष के नाम हुए तय, जल्द होगी घोषणा ये रहे विधायक और विधान परिषद सदस्य फिलहाल हम बात कर रहे हैं आगरा की। आगरा को दलितों की राजधानी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि यहां दलित बहुतायत में हैं। आगरा लोकसभा सीट और आगरा छावनी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। एक समय था जब आगरा में बसपा का डंका बजता था। नारायण सिंह सुमन, ठाकुर सूरजपाल सिंह, भगवान सिंह कुशवाहा, कालीचरन सुमन, मधुसूदन शर्मा, डॉ. धर्मपाल सिंह, गुटियारीलाल दुबेश, जुल्फिकार अहमद भुट्टो, चौधरी बशीर, गंगा प्रसाद पुष्कर, किशन लाल बघेल बसपा की टिकट पर विधायक बने। कुछ तो लगातार दो बार और तीन बार विधायक रहे। सीट बदल जाने के बाद भी चुनाव जीते। उन्हें मंत्री भी बनाया गया। इनमें गंगा प्रसाद पुष्कर, किशनलाल बघेल, नारायन सिंह सुमन के नाम उल्लेखनीय हैं। बसपा की ताकत इतनी बढ़ गई थी कि भाजपा को मैदान से बाहर ही कर दिया था। एक बारगी तो यह लगने लगा था कि आगरा में भाजपा समाप्त हो रही है। इसका पुरस्कार भी बसपा संगठन को मजबूत करने वाले कार्यकर्ताओं को मिला। आगरा से धर्मप्रकाश भारतीय, सुनील कुमार चित्तौड़, वीरू सुमन, प्रताप सिंह बघेल को विधान परिषद का सदस्य बनाया गया। देवेन्द्र कुमार चिल्लू, गोरेलाल, अजयशील गौतम को लाल बत्ती दी गई।
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ताज्जुब की बात ताज्जुब की बात यह है कि इनमें से अधिकांश या तो पार्टी से निकाल दिए गए या छोड़ गए। हर किसी पर एक ही आरोप- अनुशासनहीता का। आपको ताज्जुब तो इस बात पर होगा कि चुनाव आते ही अनुशासनहीनता का आरोप एक कोने में रख दिया जाता है। बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती फिर से टिकट देती हैं। प्रत्याशी जीत जाता है तो ठीक अन्यथा कुछ समय बाद फिर से अनुशासनहीनता के आरोप में हटा दिया जाता है।
ताज्जुब की बात ताज्जुब की बात यह है कि इनमें से अधिकांश या तो पार्टी से निकाल दिए गए या छोड़ गए। हर किसी पर एक ही आरोप- अनुशासनहीता का। आपको ताज्जुब तो इस बात पर होगा कि चुनाव आते ही अनुशासनहीनता का आरोप एक कोने में रख दिया जाता है। बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती फिर से टिकट देती हैं। प्रत्याशी जीत जाता है तो ठीक अन्यथा कुछ समय बाद फिर से अनुशासनहीनता के आरोप में हटा दिया जाता है।
यह भी पढ़ें ABVP ने कहा- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी आरक्षण लागू हो, देखें वीडियो सुनील चित्तौड़ को भी निकाल दिया सपा से गठबंधन टूटने के बाद टूंडला उपचुनाव के लिए बसपा ने आगरा के सुनील कुमार चित्तौड़ को प्रत्याशी बनाया था। चित्तौड़ पार्टी के नीति निर्धारकों में शामिल हैं। उन्हें मायावती का बेहद करीबी माना जाता है। उन्हें भी पार्टी से बाहर कर दिया गया। इनके साथ पूर्व मंत्री नारायण सिंह सुमन, पूर्व एमएलसी डॉ. वीरू सुमन, पूर्व विधायक कालीचरण सुमन, पूर्व जिलाध्यक्ष भारतेंदु अरुण, पूर्व जिलाध्यक्ष डॉ मलखान सिंह व्यास, पूर्व जिलाध्यक्ष विक्रम सिंह को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। पूर्व एमएलसी सुनील कुमार चित्तौड़ का कहना है कि हमेशा पार्टी के लिए समर्पित रहे हैं। पार्टी के विरोध में जाने की सोच भी नहीं सकते। उन्होंने कहा कि बहन मायावती से मिलने का समय मांग रहे हैं।
यह भी पढ़ें प्रेम विवाह के बाद जब घर चलाने में आई दिक्क्त तो दम्पति ने शुरू कर दी वाहन चोरी कोई नेता विपरीत टिप्पणी नहीं करता यह जरूरी नहीं है कि आज जो निकाले गए हैं, वे बसपा में दोबारा नहीं आएंगे। न जाने क्या होता है कि अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोग फिर से जोन इंचार्ज बनकर आ जाते हैं। न कोई जांच होती और न ही कोई नोटिस दिया जाता है और न ही कोई समिति बनती है। यही कारण है कि बसपा से निष्कासन के बाद कोई भी कार्यकर्ता विपरीत प्रतिक्रिया नहीं देता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले खेरागढ़ से विधायक भगवान सिंह कुशवाह को पार्टी से निकाल दिया गया था। इस संवादाता ने उनसे काफी देर बातचीत की, लेकिन उन्होंने एक भी शब्द मायावती के खिलाफ नहीं बोला। आज भी कोई विपरीत प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। इससे साफ है कि उन्हें फिर से बसपा में आने की उम्मीद है।
यह भी पढ़ें 20 रुपए के कैप्सूल से करिए पराली का निस्तारण चिल्लू का आरोप और गोरेलाल का जवाब पूर्व बसपा नेता देवेन्द्र कुमार चिल्लू कहते हैं कि बसपा में जो पैसे नहीं देता, वह अनुशासनहीन है। पैसा व्यापारी देता है और व्यापार पिटा पड़ा है। आखिर बसपा कार्यकर्ता पैसे कहां से लेकर आएं? इन बातों के जवाब में बसपा नेता गोरेलाल कहते हैं- बहनजी अपने स्रोतों से जांच कराती हैं। फिर अनुशासनहीनता करने वालों से कहा जाता है सुधार करो। सुधार नहीं होता है तो निष्कासन का कदम उठाया जाता है। उन्होंने कहा कि देवेन्द्र कुमार चिल्लू ने मेरे साथ काम किया है। उनका बात का खंडन करता हूं कि यहां कोई धनार्जन किया जाता है। ज्ञातव्य है कि गोरेलाल पिछले दस साल से राजस्थान, बिहार, दिल्ली में ओबीसी और मुस्लिम समाज में समन्वय बनाने का काम कर रहे थे। अचानक ही उन्हें आगरा बुला लिया गया ताकि सुनील चित्तौड़ की भराई की जा सके। वे इस समय आगरा, अलीगढ़ और कानपुर मंडल में सामाजिक भाईचारा का काम देख रहे हैं।