एसोसिएशन ऑफ स्पाइन सर्जन्स ऑफ इंडिया के एक विशेष सत्र में विशेषज्ञों ने कहा कि स्टेम सेल मानकों के अनुरूप इलाज की पद्धति नहीं है। अभी दुनिया भर में इस पर शोध चल रहे हैं। फिर भी रीढ़ की हड्डी की चोट में स्टेम सेल से इलाज का दावा किया जाता है। इस पर एसोसिएशन ऑफ स्पाइन सर्जन्स ऑफ इंडिया ने आपत्ति जताई है। डाॅक्टरों के अनुसार रीढ़ की हड्डी व दिमाग के इलाज के लिए इस चिकित्सा पद्धति को मान्यता नहीं मिलने के कारण इसका इस्तेमाल मरीजों की सहमति से सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल के रूप में किया जा सकता है। क्लीनिकल ट्रायल एक तरह का चिकित्सा शोध है और इसके लिए मरीजों से पैसे नहीं लिए जाते।
इंडियन स्पाइनल इंजुरीज सेंटर के चिकित्सा निदेशक डॉ. एचएस छाबड़ा ने कहा कि यह सही है कि स्टेम सेल से काफी उम्मीदें और संभावना हैं, लेकिन दुनिया में कहीं भी अभी तक यह साबित नहीं हुआ है कि स्टेम सेल रीढ़ की हड्डी की चोट के इलाज में कारगर है। जब तक शोध से साबित नहीं हो जाता तब तक इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। एसोसिएशन ने मरीजों को आगाह किया है कि हो सकता है कि भविष्य में स्टेम सेल मान्यता प्राप्त थैरेपी बन जाए, लेकिन फिलहाल मरीज सावधानी बरतें।
न्यूरोट्राॅमा सोसायटी ट्रायल इंडिया के सचिव डॉ. सुमित सिन्हा ने बताया कि न्यूरोटाॅमा के मरीजों का इलाज अब आधुनिक तकनीक पर आधारित है। एक समय था जब यह डाॅक्टर अपने अनुभव के आधार पर करते थे, लेकिन पिछले कुछ समय में इस क्षेत्र में न्यूरोटाॅमा सोसायटी ट्रायल इंडिया के अध्यक्ष डॉ. वी सुंदर, अंतर्राष्टीय फैकल्टी में टोरंटो के डॉ. क्रिस्टोफर एस आहूजा, नेपाल के प्रो. लिप चेरियन, यूएसए के डॉ. जेम्स डेविड गेस्ट, प्रो जैक आई जेलो, डॉ. जोगी वी पतीसापू, डाॅ. रेंडल किस्नट, डॉ. शंकर गोपीनाथ, डॉ. शेकर एन करपड ने महत्वपूर्ण जानकारी दी।