अलका सिंहः आगरा की पहचान केवल ताजमहल से होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। नाटक के पुरोधा राजेन्द्र रघुवंशी भी यहीं हुए हैं। जिन्होंने हमें लम्बी लाइन नाटक रंगमंच के क्षेत्र में दी। हमारा रंगमंच और हमारी संस्कृति के लिए भी जाना जाए, न कि केवल ताजमहल पर ही केन्द्रित हो। मेरे मन में विचार था कि बहुत बड़ा महोत्सव है, जिसमें देश ही नहीं, विदेश के भी कलाकार आएं। ताजमहल देखें और अपनी कला का प्रदर्शन हमारे बीच करें। इसे साकार करने के लिए मैं प्रयासरत हूं। जब तक हमारा पूरा आगरा शहर इस कार्यक्रम को अपना नहीं बनाएगा, तब तक ये सपना पूरा नहीं होगा।
अलका सिंहः दूसरे महोत्सव के बाद हमने आगरा के कलाकारों की भागीदारी शुरू की। हम पिछले चार माह से आगरा की टैलेंट को सर्च कर रहे हैं। विजेताओं को अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ मंच पर स्थान दे रहे हैं। इस तरह इस वर्ष नवोदित कलाकार भी हमारे मंच से जुड़ गया है।
अलका सिंहः उत्तर प्रदेश में महिलाओं की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा कम है। दक्षिण भारत और बंगाल जाते हैं तो वहां महिलाओं के साथ पूरे परिवार की भागीदारी रहती है। टीवी धारावाहिकों में महिलाओं को स्थान मिल रहा है। अब पहले जैसी बुरी स्थिति नहीं है।
अलका सिंहः रंगमंच एक ऐसी विधा है, जिससे व्यक्ति का पूरा विकास हो सकता है। व्यक्तित्व विकास हो गया तो जरूरी नहीं है कि रंगमंच से ही रोजगार मिले। संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास है तो समाज आपको स्वीकार करेगा। रंगमंच करने के बाद न्यूज एंकरिंग बहुत अच्छी कर सकते हैं। किसी कार्यक्रम का संचालन बहुत अच्छा कर सकते हैं। अच्छे लीडर बन सकते हैं। कैसे खड़े होना है, बात कैसे करना है, बॉडी लैंग्वेज कैसी हो, यह रंगमंच सिखाता है। रंगमंच के चार कलाकारों का नाटक देखने के लिए हजारों लोग जमा हो जाते हैं। रोजगार के लिए व्यक्तित्व विकास जरूरी है।
अलका सिंहः आगरा के कलाकार मुंबई में धूम मचाए हुए हैं। रंगमंच के माध्यम से जो भी कलाकार मुंबई गया है, उसके पैर जमे हैं और उसे वापस आने की जरूरत नहीं पड़ती है। बहुत सारे कलाकार मुंबई में आगरा का नाम रोशन कर रहे हैं।
अलका सिंहः मुझे तो बहुत ऑफर आते हैं। मेरा विचार है कि किंग न बनें, किंग मेकर बनें। अगर अलका सिंह भी वहां पहुंच गई तो आगरा के कलाकारों को कौन तैयार करेगा। मुंबई में अलका सिंह की छाया जाती है।
अलका सिंहः ताज रंग महोत्सव में नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, मलेशिया और सर्बिया के कलाकारों की प्रस्तुति हुई है। सात देशों के संपर्क में हैं। आगरा के लोगों का सहयोग मिल रहा है। स्कूल के संगठन इसमें सहयोग कर रहे हैं।
अलका सिंहः जो भी आगरा आता है, वह ताजमहल देखकर चला जाता है। जो हमारे ताज रंग महोत्सव से जुड़ेगा, वह कम से कम चार दिन तो रुकेगा। आगरा को जानेगा। यहां का बाजार प्रभावित होगा। होटल में रुकेंगे।
अलका सिंह मूल रूप से आगरा के पथौली गांव की रहने वाली हैं। तीन भाइयों के बीच इकलौती बहन। एमएससी करने के बाद नाटक की ओर रुझान हो गया। परिवार इसके लिए तैयार नहीं था। उन्होंने हार नहीं मानी। परिवार को तैयार किया। अब नाटक ही उनके जीवन का हिस्सा है। 2001 में पहला नाटक अंडे का छिलका किया। इसके बाद जंग-ए-आजादी से जश्न-ए-आजादी तक, सिलिया, पारुल आदि नाटकों में भूमिका निभाई। टीवी धारावाहिक सावधान इंडिया और फिल्म वाह ताज में अभिनय किया। रंगमंच का पुरानी शैली भगत को भी जीवंत कर रही हैं। इसके लिए नए कलाकार तैयार कर रही हैं। अंग अवार्ड (बिहार), नाट्य भूषण अवार्ड (मुंगेर बिहार), अस्मिता (चंदौसी, उत्तर प्रदेश), भागलपुर रत्न (बिहार), डॉ. राम मनोहर लोहिया एक्सीलेंस अवार्ड (नई दिल्ली), रज महोत्सव सम्मान (राउरकेला, उड़ीसा) से सम्मानित हो चुकी हैं। देश-विदेश में प्रस्तुति दे चुकी हैं। निर्णायक की भूमिका भी निभाती हैं।