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सीकर

मैदान में नहीं, इनके अरमानों से ‘खेल’ रही राज्य सरकार, अगर मिलता इनका साथ तो हरियाणा के छोरों से आगे होते यहां के खिलाड़ी

हर जगह सोना का तमगा देश की झोली में डाला है। लेकिन राज्य में सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की। दोनों ने ही शेखावाटी के खिलाडिय़ों के साथ ‘खेल’ खेला है। केन्द्र ने जरूर राहत दी, लेकिन वह भी नाकाफी है।

सीकरFeb 20, 2017 / 03:51 pm

dinesh rathore

शेखावाटी ने हमेशा खेलों में देश व राज्य का भाल ऊंचा रखा है। खेल चाहे राष्ट्र स्तर के हों, अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रमण्डल या ओलम्पिक। हर जगह सोना का तमगा देश की झोली में डाला है। लेकिन राज्य में सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की। दोनों ने ही शेखावाटी के खिलाडिय़ों के साथ ‘खेल’ खेला है। केन्द्र ने जरूर राहत दी, लेकिन वह भी नाकाफी है। यही कारण रहा कि सीकर, झुंझुनूं व चूरू जिले की सरहद से सटा हरियाणा हमसे खेलों में काफी आगे पहुंच गया है, और हमारे खिलाड़ी अभी सुविधाओं व खेल मैदानों से ही जूझ रहे हैं। 
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अब सरकार अपना बजट पेश करने वाली है। यहां के खिलाड़ी व युवा चाहते हैं कि बजट में खेलों को बढ़ावा देने वाली योजना की शुरुआत हो। खिलाडिय़ों को उच्च पदों पर नौकरी तुरंत मिले। नकदी भी हरियाणा से ज्यादा मिले। श्रेष्ठ प्रशिक्षण,मैदान व खेल सामग्री मिले। पेश है खिलों से जुड़े मुद्दे उठाती तथा जमीन हमीकत बताती पत्रिका की समाचार शृंखला ‘खिलाडिय़ों से खेला ‘खेल’ की पहली किश्त। देवेन्द्र झाझडिय़ा,कृष्णा पूनिया, बजरंग लाल ताखर, नाथू सिंह,सपना पूनिया सहित शेखावाटी में अनेक खिलाडिय़ों ने देश का नाम रोशन किया है। झुंझुनूं मुख्यालय पर कांग्रेस सरकार ने खेल विश्वविद्यालय की घोषणा की, उसके बाद कार्रवाई नहीं हुई।
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नि:शुल्क जमीन दी जानी चाहिए…

एक्सपर्ट व्यू : खेलों को बढ़ावा देने के लिए ओलम्पिक में पदक विजेताओं को खेल एकेडमी खोलने के लिए निशुल्क जमीन दी जानी चाहिए। जब बिजनेसमैनों को रियायती दर पर जमीन मिल सकती है तो खिलाडिय़ों को भी निशुल्क जमीन मिलनी चाहिए। इसके बाद भारतीय खेल प्राधिकरण(साई) एकेडमी के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाता है। आरपीएससी की भर्तियों में कम से कम दो प्रतिशत खेल कोटे से भर्ती होनी चाहिए। विश्व स्तर पर पदक जीतने वालों को सीधी नौकरी मिलनी चाहिए। पदक जीतने वाली छात्राओं के लिए खेल छात्रवृत्ति दी जानी चाहिए। हरियाणा की तरह विजेताओं को नकदी भी मिलनी चाहिए। 
देवेन्द्र झाझडिय़ा, स्वर्ण पदक विजेता, पैरा ओलम्पिक

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