यहां निकाला गया मातमी जुलूसवी
आगरा में शाहगंज क्षेत्र में शिया समुदाय के लोगों ने मातमी जुलूस निकाला। इस दौरान उन्होंने अपने शरीर को लहूलुहान किया। इसके अलावा ताजियों को सुपुर्द ए खाक किया गया। ताजियों के जुलूस की खास बात इस बार यह रही कि अजादारों ने जुलूस में तिरंगे झंडे लहराए। इस दौरान आगरा में प्रसिद्ध फूलों का ताजिया भी निकाला गया और उसे करबला में सुपुर्द ए खाक कर दिया।
शाहगंज का जुलूस
अंजुमन ए पंजतनी शाहगंज आगरा की ओर से मोहर्रम की दसवीं तारीख को आलम व ताजियों का जुलूस पुराना इमामबाडा शाहगंज आगरा से शेुरू हुआ, जो लोहामंडी रोड शाहगंज चौराहा, रुई की मंडी चौराहा, डबल फाटक, अर्जुन नगर होता हुआ करबला सराय ख्वाजा पर जाकर समाप्त हुआ। जिसमें भारी तादाद में अकीदतमंदो ने शिरकत की। जुलूस में शामिल लोग सियाह लिबास में नंगे पैर चल रहे थे। या हुसैन या अब्बास की सदाओं के साथ लोग नौहाख्वानी व सीनाजनी कर रहे थे।
अंजुमन ए पंजतनी शाहगंज आगरा की ओर से मोहर्रम की दसवीं तारीख को आलम व ताजियों का जुलूस पुराना इमामबाडा शाहगंज आगरा से शेुरू हुआ, जो लोहामंडी रोड शाहगंज चौराहा, रुई की मंडी चौराहा, डबल फाटक, अर्जुन नगर होता हुआ करबला सराय ख्वाजा पर जाकर समाप्त हुआ। जिसमें भारी तादाद में अकीदतमंदो ने शिरकत की। जुलूस में शामिल लोग सियाह लिबास में नंगे पैर चल रहे थे। या हुसैन या अब्बास की सदाओं के साथ लोग नौहाख्वानी व सीनाजनी कर रहे थे।
जंजीर का मातम भी किया गया
शाहगंज चौराहे पर कुछ नौजवानों ने ज़ंजीर का मातम भी किया, जिसे आमतौर पर छुरियों का मातम कहते हैं। मातम करने वाले ये पैग़ाम दे रहे थे कि इमाम हुसैन व उनके परिवारीजन व साथियों का जो ख़ून करबला में बहाया गया उनके लिये हमारा ये ख़ून नज़राना ए अकीदत के तौर पर हाज़िर है। नौहाख्वानी के ज़रिये करबला ज़ुल्म की दास्तान काव्यात्मक रूप में ब्यान की गई, जिसे सुनकर जुलूस में शामिल अकीदतमंदों के अलावा सुनने वाले अन्य मज़हब के लोगों की भी आंखों को नम होते देखा गया।
शाहगंज चौराहे पर कुछ नौजवानों ने ज़ंजीर का मातम भी किया, जिसे आमतौर पर छुरियों का मातम कहते हैं। मातम करने वाले ये पैग़ाम दे रहे थे कि इमाम हुसैन व उनके परिवारीजन व साथियों का जो ख़ून करबला में बहाया गया उनके लिये हमारा ये ख़ून नज़राना ए अकीदत के तौर पर हाज़िर है। नौहाख्वानी के ज़रिये करबला ज़ुल्म की दास्तान काव्यात्मक रूप में ब्यान की गई, जिसे सुनकर जुलूस में शामिल अकीदतमंदों के अलावा सुनने वाले अन्य मज़हब के लोगों की भी आंखों को नम होते देखा गया।