सिख गुरु और मुगल
वरिष्ठ इतिहासकार ने अपनी किताब में लिखा है कि इतिहास में पढ़ाया जाता है कि अपने पुत्र खुसरो द्वारा बगावत किए जाने पर उसको आशीर्वाद देने के फलस्वरूप मुगल सम्राट जहांगीर ने सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन सिंह का वध करवा दिया था। लेकिन, इतिहास के गहन अध्ययन व सिख धर्म की पुस्तकों को पढ़ने के बाद इस घटना का दूसरा ही स्वरूप सामने आता है। जिसके अनुसार जहांगीर की ओर से लाहौर में नियुक्त दीवान चंदू शाह नाम का व्यक्ति गुरु अर्जुन सिंह के पुत्र हरगोविंद से अपनी लड़की का विवाह करना चाहता था। लेकिन, गुरु अर्जुन सिंह इसके लिए तैयार नहीं थे। चिढ़कर चन्दू शाह ने गुरु अर्जुन के विरुद्ध तरह तरह की कहानियां गढ़कर जहांगीर को भड़काया। चंदूशाह ने कहा कि गुरु अर्जुन ने विद्रोही शहजादे खुसरो को आशीर्वाद व सहायता प्रदान की थी। इस षडयंत्र में चंदूशाह के साथ बाबा पृथ्वीनाथ व बीरवल नाम कुद अन्य लोग शामिल हुए थे।
वरिष्ठ इतिहासकार ने अपनी किताब में लिखा है कि इतिहास में पढ़ाया जाता है कि अपने पुत्र खुसरो द्वारा बगावत किए जाने पर उसको आशीर्वाद देने के फलस्वरूप मुगल सम्राट जहांगीर ने सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन सिंह का वध करवा दिया था। लेकिन, इतिहास के गहन अध्ययन व सिख धर्म की पुस्तकों को पढ़ने के बाद इस घटना का दूसरा ही स्वरूप सामने आता है। जिसके अनुसार जहांगीर की ओर से लाहौर में नियुक्त दीवान चंदू शाह नाम का व्यक्ति गुरु अर्जुन सिंह के पुत्र हरगोविंद से अपनी लड़की का विवाह करना चाहता था। लेकिन, गुरु अर्जुन सिंह इसके लिए तैयार नहीं थे। चिढ़कर चन्दू शाह ने गुरु अर्जुन के विरुद्ध तरह तरह की कहानियां गढ़कर जहांगीर को भड़काया। चंदूशाह ने कहा कि गुरु अर्जुन ने विद्रोही शहजादे खुसरो को आशीर्वाद व सहायता प्रदान की थी। इस षडयंत्र में चंदूशाह के साथ बाबा पृथ्वीनाथ व बीरवल नाम कुद अन्य लोग शामिल हुए थे।
जहांगीर नशेबाज था
जहांगीर नशेबाज था। उसे इस बात पर विश्वास हो गया और उसने गुरु पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया और वे गिरफ्तार हो गए। चन्दूशाह ने जमानत पर छुड़वाकर उनके सम्मुख फिर से अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन, अर्जुन सिंह ने इसे ठुकरा दिया। सिखों के ग्रंथ पंथ प्रकाश के अनुसार गुरु को खौलते पानी में बैठाया। गर्म बालू से उनके शरीर को जलाया। उसके बाद उन्हें गौ चर्म में सीने की आज्ञा दी गई। गुरु ने अपना अंतकाल आया जानकर नदी में नहाने के बाद चन्दूशाह के विवाह संबंधी प्रस्ताव पर विचार करने को कहा। गुरु को किले के नीचे बह रही रावी नदी पर ले जाया गया। वहां उन्होंने नदी में छलांग लगा दी और फिर लौटे नहीं। चंन्दूशाह ने जहांगीर द्वारा गुरु पर लगाई गई जाने वाली रकम भरकर गुरु को अपने कब्जे में ले लिया था और मृत्यु तुल्य यातनाएं दीं थी। जिससे गुरु नदी में छलांग मारने को विवश हो गए थे। इस घटनाक्रम में गुरु अर्जुन की मृत्यु के लिए चन्दूशाह उत्तरदायी था लेकिन, बदनामी जहांगीर के हाथ आई।
जहांगीर नशेबाज था। उसे इस बात पर विश्वास हो गया और उसने गुरु पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया और वे गिरफ्तार हो गए। चन्दूशाह ने जमानत पर छुड़वाकर उनके सम्मुख फिर से अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन, अर्जुन सिंह ने इसे ठुकरा दिया। सिखों के ग्रंथ पंथ प्रकाश के अनुसार गुरु को खौलते पानी में बैठाया। गर्म बालू से उनके शरीर को जलाया। उसके बाद उन्हें गौ चर्म में सीने की आज्ञा दी गई। गुरु ने अपना अंतकाल आया जानकर नदी में नहाने के बाद चन्दूशाह के विवाह संबंधी प्रस्ताव पर विचार करने को कहा। गुरु को किले के नीचे बह रही रावी नदी पर ले जाया गया। वहां उन्होंने नदी में छलांग लगा दी और फिर लौटे नहीं। चंन्दूशाह ने जहांगीर द्वारा गुरु पर लगाई गई जाने वाली रकम भरकर गुरु को अपने कब्जे में ले लिया था और मृत्यु तुल्य यातनाएं दीं थी। जिससे गुरु नदी में छलांग मारने को विवश हो गए थे। इस घटनाक्रम में गुरु अर्जुन की मृत्यु के लिए चन्दूशाह उत्तरदायी था लेकिन, बदनामी जहांगीर के हाथ आई।
तेगबहादुर और औरंगजेब
इतिहासकार राजकिशोर राजे ने किताब में तेगबहादुर पर भी लिखा है। जिसमें कहा गया है कि गुरु हरकिशन की मृत्यु के बाद तेग बहादुर गुरु गद्दी पर बैठे लेकिन, कुछ कारणों से गुरु की गद्दी से वंचित गुरु हरराय का पुत्र रामराय जो अपने पिता गुरु हरराय के वक्त में किसी कार्य से मुगल दरबार में भेजा गया था ने गुरु तेगबहादुर के विरुद्ध औरंगजेब को भड़काया। फलस्वरूप धर्मान्ध औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर की गिरफ्तारी का आदेश जारी कर दिया और अपने दरबार में पेश होने पर उनसे कोई करामात दिखाने या इस्लाम स्वीकार करने को कहा। 11 नवंबर 1675 ईं को गुरु तेगबहादुर ने चमत्कार दिखाने के नाम पर एक कागज के टुकड़े पर कुछ लिखकर अपनी गर्दन पर बांध लिया और कहा कि तलवार चलाएं। तलवार बेकार रहेगी। जलालुद्दीन नामक एक मुस्लिम ने चलवार चलाई और गुरु का सिर घड़ से अलग हो गया। गुरु वीर आत्मा थे। उन्हेांने धर्म देने के स्थान पर जान देना उचित समझा। इतिहासकार का कहना है कि इस विवरण से ये स्पष्ट है कि गुरु की जान औरंगजेब ने नहीं ली थी। औरंगजेब तो गुरु का धर्म लेना चाहता था, जिसमें वो असफल हो गया। वास्तव में गुरु की मौत एक दुर्घटना थी जो चमत्कार के नाम पर घटित हुई। लेकिन, इससे सिक्खों के साथ मुसलमानों के संबंध कटु से कटुतर हो गए।
इतिहासकार राजकिशोर राजे ने किताब में तेगबहादुर पर भी लिखा है। जिसमें कहा गया है कि गुरु हरकिशन की मृत्यु के बाद तेग बहादुर गुरु गद्दी पर बैठे लेकिन, कुछ कारणों से गुरु की गद्दी से वंचित गुरु हरराय का पुत्र रामराय जो अपने पिता गुरु हरराय के वक्त में किसी कार्य से मुगल दरबार में भेजा गया था ने गुरु तेगबहादुर के विरुद्ध औरंगजेब को भड़काया। फलस्वरूप धर्मान्ध औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर की गिरफ्तारी का आदेश जारी कर दिया और अपने दरबार में पेश होने पर उनसे कोई करामात दिखाने या इस्लाम स्वीकार करने को कहा। 11 नवंबर 1675 ईं को गुरु तेगबहादुर ने चमत्कार दिखाने के नाम पर एक कागज के टुकड़े पर कुछ लिखकर अपनी गर्दन पर बांध लिया और कहा कि तलवार चलाएं। तलवार बेकार रहेगी। जलालुद्दीन नामक एक मुस्लिम ने चलवार चलाई और गुरु का सिर घड़ से अलग हो गया। गुरु वीर आत्मा थे। उन्हेांने धर्म देने के स्थान पर जान देना उचित समझा। इतिहासकार का कहना है कि इस विवरण से ये स्पष्ट है कि गुरु की जान औरंगजेब ने नहीं ली थी। औरंगजेब तो गुरु का धर्म लेना चाहता था, जिसमें वो असफल हो गया। वास्तव में गुरु की मौत एक दुर्घटना थी जो चमत्कार के नाम पर घटित हुई। लेकिन, इससे सिक्खों के साथ मुसलमानों के संबंध कटु से कटुतर हो गए।