ये है कथा
वास्तु के प्रादुर्भाव के कथा विषय में मत्स्य पुराण में बतलाया गया है कि प्राचीन काल में अन्धकासुर के वध भगवान् शिव के ललाट से पृथ्वी पर जो स्वेद बिन्दु गिरे उसने एक भंयकर आकृति वाला पुरुष प्रकट हुआ जो विकराल रूप फैलाये था। उसने अन्धगणों का रक्त पान किया, किन्तु उसे तृप्ति नहीं हुई और वह भूख से व्याकुल होकर त्रिलोक की तरफ बढ़ा। इससे भयभीत होकर सभी देवी देवताओं ने उसे पृथ्वी पर सुलाकर वास्तु देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया और उसके शरीर में सभी देवताओं ने वास किया। इसलिए वह वास्तु देव या वास्तु पुरुष के नाम से प्रसिद्ध हो गये। देवताओं ने उन्हें वरदान दिया कि पृथ्वी पर सभी मनुष्य तुम्हारी पूजा करेगें। इसीलिए भवन कूप, वापी मन्दिर आदि का जीणौदार में नगर बसाने में यज्ञ मण्डप के निर्माण में एवं पूजा पाठ में वास्तु देवता की पूजा अर्चना की जाती है।
वास्तु के प्रादुर्भाव के कथा विषय में मत्स्य पुराण में बतलाया गया है कि प्राचीन काल में अन्धकासुर के वध भगवान् शिव के ललाट से पृथ्वी पर जो स्वेद बिन्दु गिरे उसने एक भंयकर आकृति वाला पुरुष प्रकट हुआ जो विकराल रूप फैलाये था। उसने अन्धगणों का रक्त पान किया, किन्तु उसे तृप्ति नहीं हुई और वह भूख से व्याकुल होकर त्रिलोक की तरफ बढ़ा। इससे भयभीत होकर सभी देवी देवताओं ने उसे पृथ्वी पर सुलाकर वास्तु देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया और उसके शरीर में सभी देवताओं ने वास किया। इसलिए वह वास्तु देव या वास्तु पुरुष के नाम से प्रसिद्ध हो गये। देवताओं ने उन्हें वरदान दिया कि पृथ्वी पर सभी मनुष्य तुम्हारी पूजा करेगें। इसीलिए भवन कूप, वापी मन्दिर आदि का जीणौदार में नगर बसाने में यज्ञ मण्डप के निर्माण में एवं पूजा पाठ में वास्तु देवता की पूजा अर्चना की जाती है।
प्रस्तुतिः आचार्य उमेश वर्मा
संजय प्लेस, आगरा
मोबइलः 9219615700
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