आगरा

World Hepatitis Day: टैटू गुदवाने वालों को हो सकती है घातक बीमारी

आज कै वैज्ञानिक युग में भी बच्चों का पीलिया ओझा से झड़वाया जाता है, आगरा में साईं की तकिया पर हर गुरुवार को आते हैं बच्चे

आगराJul 28, 2018 / 01:00 pm

अभिषेक सक्सेना

खतरनाक है हेपेटाइटिस सी, हर साल लाखों लोग होते हैं शिकार

आगरा। हेपेटाइटिस एक खतरनाक जानलेवा बीमारी है। यदि इस बीमारी का सही प्रकार से उपचार नहीं किया गया तो ये प्राणघात हो सकती है। शहर में हेपेटाइटिस के मरीजों की संख्या में जागरूकता के चलते काफी कमी आई है। लेकिन, आज भी वैज्ञानिक युग में बच्चों को हेपेटाइटिस जैसी बीमारी होने के दौरान उन्हें ओझा और मंदिरों में झाड़ फूंक के लिए ले जाया जाता है। चिकित्सकों का कहना है कि अंधविश्वास के चलते कभी कभी बीमारी और अधिक बढ़ जाती है तब परिजन मरीज को अस्पताल में लेकर आते हैं।
जानिए हेपेटाइटिस
हेपेटाइटिस लिवर को नुकसान पहुंचाने वाला एक खतरनाक रोग होता है।प्रमुख लक्षणों में अंगों की कोशिकाओं में सूजन आ जाती है, जो पीलिया का रूप धारण कर लेती है। ये जानलेवा बीमारी होती है।
गर्भवती महिलाओं को पीलिया की अधिक समस्या
वरिष्ठ फिजीशियान डॉ. राजीव शर्मा का कहना है कि हेपेटाइटिस कई प्रकार का होता है। गर्भवती महिलाओं को पीलिया होने का खतरा सबसे अधिक रहता है। लिवर में ऐसे पदार्थ होते हैं, जिनके कारण रक्त के बहाव में अवरोध पैदा होता है। इन्हें थ्रॉम्बोसाइट कहते हैं। इस कारण बहते खून को रोकने की क्षमता आती है। हेपेटाइटिस बी लिवर में इंफेक्शन भी पैदा कर सकता है जो बाद में लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर में बदल जाता है। नवजात बच्चों को आजकल छह माह और एक वर्ष की आयु के समय में यह टीका दिया जाता है जो 25 साल तक सुरक्षित करता है।

हेपेटाइटिस सी
हेपेटाइटिस सी को खामोश मौत की संज्ञा दी जाती है। हेपेटाइटिस सी की शुरुआत में कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता और जब तक दिखना शुरू होता है, तब तक इसका संक्रमण फैल चुका होता है। चिकित्सकों का कहना है कि हाथ पर टैटू गुदवाने, संक्रमित खून चढ़वाने या फिर किसी दूसरे व्यक्ति का रेजर उपयोग करने की वजह से भी हेपेटाइटिस सी होने का खतरा रहता है। हेपेटाइटिस सी का अंतिम चरण सिरोसिस और लिवर कैंसर होता है, जिसमें व्यक्ति की जान तक चली जाती है।
दवाइयां बंद ना करें लोग
ओझा और तंत्र के जरिए पीलिया को दूर करने की सोच रखने वालों के संबंध में मनोरोग चिकित्सक डॉ.दिनेश राठौर का कहना है कि लिवर में ठीक होने की झमता काफी अच्छी होती है। एलौपैथिक दवाएं लिवर को सही करने के लिए होती है। इंफेक्शन से निकलने वाले मरीज हिम्मत बढ़ाने के लिए आस्था का सहारा लेते हैं। बिना दवाओं की इस प्रोसेज को लोगों ने आस्था ने जोड़ा है। डॉ.दिनेश राठौर का कहना है कि लोग यदि आस्था रखते हैं तो जाएं लेकिन, दवाइयों का सपोर्ट बंद ना करें। इस बीमारी में शरीर स्लो रिकवरी करता हैै, इसलिए लोगों ने इसे आस्था से जोड़ दिया। इसलिए पीक फकीर और बाबाओं का सहारा लेते हैं।
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