देश में मासिक धर्म से जुड़े तमाम तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए रेनबो आईवीएफ की डॉ. निहारिका मल्होत्रा ने बताया कि सिर्फ 12 फीसदी महिलाएं ही सैनेटरी पैड्स का इस्तेमाल कर पाती हैं, जबकि 82 प्रतिशत महिलाएं आज भी पुराना कपड़ा अपनाती हैं। 71 प्रतिशत युवतियों को अपने पहले मासिक धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। मासिक धर्म स्वच्छता के तौर-तरीके न अपनाने की वजह से देश में 23 प्रतिशत महिलाएं सर्वाइकल कैंसर व अन्य रोगों की शिकार हो जाती हैं। ग्रामीण इलाकों में 48 प्रतिशत महिलाएं ही सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल कर रही हैं। यह तथ्य डराने और चौंकाने वाले हैं।
डॉ. निहारिका ने कहा कि जरूरी है कि हम न सिर्फ सैनेटरी पैड्स का इस्तेमाल करें बल्कि इन्हें नष्ट करने के सही तरीके भी जानें। एक सैनेटरी पैड को इस्तेमाल करने के बाद अगर हम इसे खुले में फेंक देते हैं तो यह सालों तक नष्ट नहीं होगा और ऐसा करने पर यह पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा भी बन जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि इसे सही तरीके से नष्ट किया जाए। अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो आज सैनेटरी पैड के विकल्प भी मौजूद हैं। बाजार में अब आपको ऑर्गेनिक क्लॉथ पैड्स भी मिल जाएंगे। ये रुई और जूट या बांस से बने होते हैं। यह इस्तेमाल करने में भी आरामदायक होते हैं और उपयोग किए गए पैड्स को धोकर फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। मैंस्टुअल कप के बारे में भी अभी बहुत कम लोग ही जानते हैं। महिलाओं और लड़कियों के लिए यह काफी उपयोगी हो सकते हैं। यह सिलिकॉन से बना होता है। अच्छी क्वालिटी के कप की कीमत भी ज्यादा नहीं होती है। एक अच्छी क्वालिटी का कप आपको 300 से 500 रुपये में मिल जाएगा। वहीं इसे एक बार खरीदने के बाद आप करीब 10 साल तक इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि इन्हें साफ किया जा सकता है। यह इन्फेक्शन से बचाने का भी बेहतर तरीका है। इसके अलावा टेंपोन एक अन्य तरीका है। यह कपास या रेयान से बना होता है और जिसमें रक्त को सोखने की क्षमता होती है। बाजार में कई तरह के टेंपोन उपलब्ध होते हैं।
रेनबो हॉस्पिटल में वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मनप्रीत शर्मा ने कहा कि पहले के समय में लोग हाईजीन को लेकर इतने जागरूक नहीं थे। वह मासिक धर्म को घृणा की नजरों से देखते थे। इसी वजह से लड़कियों को बंद कमरे में रखा जाता था। उन्हें मंदिर या किचन में नहीं जाने दिया जाता था। अगर समाज मासिक धर्म से जुड़ी ऐसी सोच से उबरना चाहता है तो इसकी शुरुआत हमें अपने घरों से करनी होगी। हमें अपने बच्चों को शुरू से ही एक लड़की के शरीर में होने वाले बॉयोलॉजिकल बदलावों के बारे में जानकारी देनी होगी। उन्होंने कहा कि ये समझना बहुत जरूरी है कि पीरियड्स कुछ नहीं, बस लड़कियों के शरीर में होने वाले जैविक बदलावों में से एक हैं और यह बहुत जरूरी है।