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Gujarat Hindi News : 18 वर्षों से एड्स पीडि़त महिला हजारों पीडि़तों को दे रही इलाज-परामर्श

locationअहमदाबादPublished: Dec 02, 2021 11:56:24 am

Submitted by:

Binod Pandey

अपने लिए जीए तो क्या जिए
इलाज और बचाव से एड्स पीडि़त भी जी सकते हैं सामान्य जिंदगी
परिवार के साथ रहते हुए पीडि़तों की सेवा में भी दे रही योगदान

Gujarat Hindi News : 18 वर्षों से एड्स पीडि़त महिला हजारों पीडि़तों को दे रही इलाज-परामर्श

Gujarat Hindi News : 18 वर्षों से एड्स पीडि़त महिला हजारों पीडि़तों को दे रही इलाज-परामर्श

जफर सैयद/बिनोद पाण्डेय

वडोदरा. शहर की एक महिला पिछले 18 वर्षों से एड्स महामारी से मुकाबला कर सामान्य जिंदगी जीते हुए दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गई है। इतना ही नहीं, महिला अपने जैसे हजारों एड्स पीडि़तों के लिए सहारा बन कर उनकी सेवा में भी जुटी है। करीब 18 साल पहले पति की एड्स से मृत्यु के बाद महिला को पता चला कि उसे भी एड्स की बीमारी है। इसके बावजूद महिला ने हिम्मत नहीं हारी। बीमारी से मुकाबला करते हुए दूसरे बीमार लोगों की मदद के लिए एक एनजीओ के माध्यम से सक्रिय हो गई। महिला की संस्था वडोदरा, छोटाउदेपुर और नर्मदा जिले में रहने वाले 6373 एड्स मरीजों की सेवा कर रही है। साथ ही पीडि़तों को मिलने वाली सरकारी सहायता के लिए भी वे संघर्ष कर उन्हें उनका हक दिलाने में अहम भूमिका निभाते हैं। महिला का कहना है कि यदि एड्स पीडि़त व्यक्ति समय पर दवा लें और कुछ सावधानियां बरते तो लंबे समय तक सामान्य जीवन जी सकते हैं। आज वे इसका जीता-जागता उदाहरण बन चुकी हैं। पिछले 18 वर्षों से वे सामान्य जीवन जीते हुए दूसरों की मदद में भी काम आ रही हैं।

एड्स पीडि़त महिला रेखा (नाम बदला गया है) अपने दो बड़े भाइयों और उनके बच्चों के साथ जीवन व्यतीत कर रही है। वर्ष 2002 में रेखा को एचआईवी होने का पता चला। तब से उसका इलाज किया जा रहा है। वडोदरा में वे एक एनजीओ का संचालन कर रही हैं। हाल-फिलहाल रेखा से छह हजार से अधिक एड्स पीडि़त लोग परामर्श और इलाज करा रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान मनीषाबेन और उनकी संस्था के कार्यकर्ता एड्स पीडि़तों का सहारा बने रहे, उनकी जरूरतों को पूरा करने का बीड़ा उठाया।

रेखाबेन ने बताया कि किसी भी तरह का रोग या उसकी पीड़ा हमारे मनोबल से बड़ी नहीं होती है। यदि मनोबल ऊंचा रहेगा तो हम किसी तरह के कष्ट या परेशनी से पार पा सकते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी शादी का एक ही वर्ष हुआ था कि उन्हें एचआईवी होने का पता चला। इससे वे घबरा गए। ऐसा लगा कि उनके पति अब लंबे समय तक नहीं रहेंगे। इस कारण उनके इलाज में भी उचित ध्यान नहीं दिया गया। आज से 20 वर्ष पहले एचआईवी का इलाज बहुत महंगा था। शुरुआत में जब दवा शुरू की गई तो महीने का खर्च करीब 20 से 25 हजार रुपए आता था। एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए यह खर्च बहुत था। इससे उनके परिवार के समक्ष भी आर्थिक संकट पैदा हो गया। कुछ समय बाद ही उनके पति की मृत्यु हो गई। इसी साल उन्हें भी एचआईवी पॉजिटिव होने की जानकारी मिली।

सास-ससुर ने निकाला घर से, माता-पिता बने थे सहारा

रेखा ने बताया कि पति की मृत्यु के बाद जब उन्हेें एड्स होने की जानकारी मिली तो वे उन्हें भी यह लगा कि अब वे भी लंबा जीवन नहीं जी सकेंगी। उनके सास-ससुर को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने उसे घर से बाहर निकाल दिया। परंतु उनके माता-पिता की सूझबूझ के कारण शुरुआत में अहमदाबाद में उनका इलाज शुरू करा दिया गया। यहां उन्हें बेहद उपयोगी परामर्श दिया गया। इसके सहारे उनका मनोबल कायम रहा और वे बीमारी से लड़ते हुए दूसरे के लिए भी काम आने लगी।
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