अहमदाबाद. शहर के बहेरामपुरा इलाके में राम रहीम टेकरा रोड पर स्थित Mir Abu Turab Tomb मीर अबू तुरब का मकबरा अपनी स्थिति पर आंसू बहा रहा है। ऐतिहासिक और गुजरात की स्थानीय शैली के इस मकबरे के खंभे हिल गए हैं, जर्जरित हो गए हैं। घुम्मट की स्थिति भी खस्ताहाल है। बारिश के दिनों में पानी गिरता है। कई बार गुहार लगाई जा चुकी है,लेकिन स्थिति जस की तस है।
आलम यह है कि ४२१ साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत होने के बावजूद भी इसकी देखरेख पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वह भी तब जब यह इमारत भी संरक्षित इमारतों की सूची में शामिल है। मकबरा अष्टकोण आकार में बना है। इसके मुख्य कॉरिडोर 12 खंभों पर खड़ा है। इसके बाद बाद चारों ही ओर से छह-छह खंभे हैं। जिस पर यह खड़ा है। स्थानीय शैली का यह बेहतरीन स्थल है।
मकबरे की देखरेख करने वाले निजामुद्दीन पठान बताते हैं कि अकबर की ओर से इस मकबरे को बनवाया गया था। मीर अबू तुरब उनके करीबी व्यक्ति थे। अकबर के निर्देश पर वे लोगों को हज की यात्रा पर ले जाते थे। वे हाजियों के सरदार थे। उन्हें कदम-ए-रसूल का भी दर्जा दिया गया था। वर्ष १५९४ में मीर अबू तुरब की मौत होने के बाद उन्हें अहमदाबाद में इसी जगह दफनाया गया था। यहीं पर उनकी याद में मकबरा बनवाया गया है।
अहमदाबाद. शहर के बहेरामपुरा इलाके में राम रहीम टेकरा रोड पर स्थित Mir Abu Turab Tomb मीर अबू तुरब का मकबरा अपनी स्थिति पर आंसू बहा रहा है। ऐतिहासिक और गुजरात की स्थानीय शैली के इस मकबरे के खंभे हिल गए हैं, जर्जरित हो गए हैं। घुम्मट की स्थिति भी खस्ताहाल है। बारिश के दिनों में पानी गिरता है। कई बार गुहार लगाई जा चुकी है,लेकिन स्थिति जस की तस है।
आलम यह है कि ४२१ साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत होने के बावजूद भी इसकी देखरेख पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वह भी तब जब यह इमारत भी संरक्षित इमारतों की सूची में शामिल है। मकबरा अष्टकोण आकार में बना है। इसके मुख्य कॉरिडोर 12 खंभों पर खड़ा है। इसके बाद बाद चारों ही ओर से छह-छह खंभे हैं। जिस पर यह खड़ा है। स्थानीय शैली का यह बेहतरीन स्थल है।
मकबरे की देखरेख करने वाले निजामुद्दीन पठान बताते हैं कि अकबर की ओर से इस मकबरे को बनवाया गया था। मीर अबू तुरब उनके करीबी व्यक्ति थे। अकबर के निर्देश पर वे लोगों को हज की यात्रा पर ले जाते थे। वे हाजियों के सरदार थे। उन्हें कदम-ए-रसूल का भी दर्जा दिया गया था। वर्ष १५९४ में मीर अबू तुरब की मौत होने के बाद उन्हें अहमदाबाद में इसी जगह दफनाया गया था। यहीं पर उनकी याद में मकबरा बनवाया गया है।
अहमदाबाद. शहर के बहेरामपुरा इलाके में राम रहीम टेकरा रोड पर स्थित Mir Abu Turab Tomb मीर अबू तुरब का मकबरा अपनी स्थिति पर आंसू बहा रहा है। ऐतिहासिक और गुजरात की स्थानीय शैली के इस मकबरे के खंभे हिल गए हैं, जर्जरित हो गए हैं। घुम्मट की स्थिति भी खस्ताहाल है। बारिश के दिनों में पानी गिरता है। कई बार गुहार लगाई जा चुकी है,लेकिन स्थिति जस की तस है।
आलम यह है कि ४२१ साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत होने के बावजूद भी इसकी देखरेख पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वह भी तब जब यह इमारत भी संरक्षित इमारतों की सूची में शामिल है। मकबरा अष्टकोण आकार में बना है। इसके मुख्य कॉरिडोर 12 खंभों पर खड़ा है। इसके बाद बाद चारों ही ओर से छह-छह खंभे हैं। जिस पर यह खड़ा है। स्थानीय शैली का यह बेहतरीन स्थल है।
मकबरे की देखरेख करने वाले निजामुद्दीन पठान बताते हैं कि अकबर की ओर से इस मकबरे को बनवाया गया था। मीर अबू तुरब उनके करीबी व्यक्ति थे। अकबर के निर्देश पर वे लोगों को हज की यात्रा पर ले जाते थे। वे हाजियों के सरदार थे। उन्हें कदम-ए-रसूल का भी दर्जा दिया गया था। वर्ष १५९४ में मीर अबू तुरब की मौत होने के बाद उन्हें अहमदाबाद में इसी जगह दफनाया गया था। यहीं पर उनकी याद में मकबरा बनवाया गया है।
अहमदाबाद. शहर के बहेरामपुरा इलाके में राम रहीम टेकरा रोड पर स्थित Mir Abu Turab Tomb मीर अबू तुरब का मकबरा अपनी स्थिति पर आंसू बहा रहा है। ऐतिहासिक और गुजरात की स्थानीय शैली के इस मकबरे के खंभे हिल गए हैं, जर्जरित हो गए हैं। घुम्मट की स्थिति भी खस्ताहाल है। बारिश के दिनों में पानी गिरता है। कई बार गुहार लगाई जा चुकी है,लेकिन स्थिति जस की तस है।
आलम यह है कि ४२१ साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत होने के बावजूद भी इसकी देखरेख पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वह भी तब जब यह इमारत भी संरक्षित इमारतों की सूची में शामिल है। मकबरा अष्टकोण आकार में बना है। इसके मुख्य कॉरिडोर 12 खंभों पर खड़ा है। इसके बाद बाद चारों ही ओर से छह-छह खंभे हैं। जिस पर यह खड़ा है। स्थानीय शैली का यह बेहतरीन स्थल है।
मकबरे की देखरेख करने वाले निजामुद्दीन पठान बताते हैं कि अकबर की ओर से इस मकबरे को बनवाया गया था। मीर अबू तुरब उनके करीबी व्यक्ति थे। अकबर के निर्देश पर वे लोगों को हज की यात्रा पर ले जाते थे। वे हाजियों के सरदार थे। उन्हें कदम-ए-रसूल का भी दर्जा दिया गया था। वर्ष १५९४ में मीर अबू तुरब की मौत होने के बाद उन्हें अहमदाबाद में इसी जगह दफनाया गया था। यहीं पर उनकी याद में मकबरा बनवाया गया है।