अहमदाबाद : मुस्लिम परिवार पांच दशकों से बना रहे राखी
गुजरात की नहीं, राजस्थान से लेकर मुम्बई, एमपी व यूपी में भी जाती हैं यहां की राखियां, रक्षाबंधन पर्व पर विशेष
ज्ञान प्रकाश शर्मा अहमदाबाद. भाई-बहन के पवित्र पर्व रक्षा बंधन को लेकर शहर में साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल देखने को मिलती है। हिन्दुओं के त्योहार रक्षा बंधन के लिए मुस्लिम परिवार करीब पांच दशकों से राखियां तैयार कर रहे हैं। भाई-बहन के पवित्र त्योहार के लिए राखी बनाने से इन परिवारों को खुशी तो होती है, साथ में आमदनी भी होती है।
शहर के मिल्लतनगर निवासी परिवार की दूसरी पीढ़ी राखी बनाने के कार्य से जुटी है। रक्षा बंधन पर्व से करीब एक महीने पूर्व ही यह परिवार राखी बनाने के कार्य में जुट जाते हैं और ग्राहकों की मांग के अनुसार नई डिजाइन की राखियां तैयार करते हैं।
चार-पांच दशक पूर्व एवं वर्तमान के फैशन में बदलाव के चलते भले ही फैंसी राखियों की मांग ज्यादा हैं, लेकिन अनेक स्थलों पर अभी भी रेशम के धागों से बनी पार?परिक राखियों की मांग कम नहीं हुई है, यही कारण है कि यहां पर फैंसी राखियों के साथ-साथ रेशम की राखियां भी बनाई जा रही है।
मिल्लतनगर निवासी इस्माइल राखीवाला एवं रिजवान राखीवाला के अनुसार आधुनिक मशीन के युग में भी हाथ से बनाई जा रही राखियों का महत्व बरकरार है। इन राखियों की मांग अहमदाबाद सहित गुजरात ही नहीं, अपितु राजस्थान, मध्य प्रदेश (एमपी) एवं उत्तर प्रदेश (यूपी), मुम्बई आदि राज्यों में भी है। यह परिवार करीब ४७-४८ वर्षों से राखियां बनाते हैं।
पहले सिर्फ रेशम के धागे की राखियां बनती थी, लेकिन अब समय के अनुसार फैंसी राखियां भी तैयार की जाती हैं। रेशम का धागा, कॉटन, मोती व डायमंड का अलग-अलग प्रकार से उपयोग कर डिजाइन राखियां बनाने में जुटे यूसुफभाई, सिकन्दरभाई, गुड्डूभाई आदि हर वर्ष अलग-अलग प्रकार की राखियां तैयार कर देश के अन्य भागों में भी भेजते हैं।
यहां पर रेशम की राखियों के साथ-साथ पबजी, टिकटॉक, छोटा भीम, राजस्थानी लु?बा राखी, डायमंड राखी एवं बाहुबली-२ छाप राखियां भी तैयार हो रही हैं। उनका कहना है कि राजस्थान में ज्यादातर लुम्बा राखी की मांग रहती है, जिसे नदद अपनी भाभी की कलाई पर बांधती हैं। इसके अलावा, कलरफुल राखियां ज्यादा पसंद की जाती है। फैंसी राखियों के बीच रेशम की राखियों की मांग भी कम नहीं है, अनेक परिवार अभी भी रेशम की राखियां पसंद करते हैं।
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