कोरोना की दोनों लहर के शांत होने के बाद वारली, मिथाली, पिठोतर, मढ वर्क, बाम्बू आदि हस्तकला में पारंगत राजकोट की ट्रांसजेंडर पायल को शहर की दीवारों पर चित्र उकेरने का काम मिलने लगा है। इससे वह उत्साहित है। पायल बताती है कि वह आदिवासी परिवार से है, जहां वारली पेंटिंग उसे विरासत में मिला है। इसके जरिए वह सम्मानपूर्वक जीने के लिए जरूरी आजीविका प्राप्त कर लेती है। भातीगल कला वारली चित्रकला से दीवारों से बातें करती पायल को चित्र नगरी प्रोजेक्ट के साथ होटल, रेस्टोंरेंट और कई घरों की दीवारों पर अपनी कला उकेरने का अवसर भी मिला है। वह मिथाली, पिठोतर,, मढ वर्क, बांस हस्तकला समेत अन्य कला में माहिर है। भविष्य में अपनी आर्ट शॉप खोलने की इच्छा रखने वाली पायल इन दिनों काम में व्यस्त है। रोजाना करीब पांच सौ रुपए आर्थिक उपार्जन अपनी कला के जरिए प्राप्त करती है। वह कहती है कि ट्रांसजेंडर को समाज सरलता से स्वीकार नहीं करता है, लेकिन धीरे-धीरे लोग समझ रहे हैं और उन्हेें भी सम्मानपूर्वक जीने में सहयोगी साबित हो रहे हैं।
मूल सुरेन्द्रनगर के किसान परिवार की वह अपने जीवन के बारे में बताती है कि 14 वर्ष की आयु में उसके अंदर शारीरिक बदलाव महसूस हुआ। वह खुद को स्त्री महसूस करने लगी। 12वीं कक्षा के बाद वे सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा की पढ़ाई कर रही थी, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से वह बीच में छोडऩे को विवश हो गई थी। जीवन निर्वाह के लिए वह राजकोट आकर कला के सहारे आगे बढऩे लगी। राज्य सरकार ने उसे ट्रांसजेंडर के रूप में पहचान दी है। इसके सहारे वह सम्मानपूर्वक जीने की दिशा में आगे बढ़ रही है।