मुख्य न्यायाधीश जे. एस. खेहर व न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की खंडपीठ के समक्ष दोनों ने हलफनामा पेश किया जिसमें कहा गया कि वे अपने पद छोड़ देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पुलिस अधिकारियों की ओर से उपस्थित वकील के बयान पर विचार करते हुए दोनों को अपने पद से इस्तीफा देने को कहा।
साथ ही इस संबंध में दायर याचिका का निपटारा कर दिया। अमीन फिलहाल तापी जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) वहीं बारोट वडोदरा में पश्चिम रेलवे के पुलिस उपाधीक्षक पद पर कार्यरत थे। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा था कि राज्य सरकार इन दोनों पुलिस अधिकारियों को लेकर कोई फैसला करे या फिर कोर्ट खुद इस मामले में कुछ फैसला लेगी।अमीन ने बताया कि उन्होंने और बारोट ने राज्य सरकार की सेवा से इस्तीफा देने का निर्णय लिया।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जारी याचिका के कारण वे सरकार को शर्मिंदगी से बचाना चाहते थे। बारोट ने भी कहा कि उनके पास इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।
पांडेय को भी छोडऩा पड़ा था डीजीपी का पद
इससे पहले भी राज्य के वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारी पी.पी.पांडेय को भी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद राज्य के प्रभारी पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) का पद छोडऩा पड़ा था। पांडेय इशरत मुठभेड़ प्रकरण में आरोपी हैं। इस मामले में वे जेल में भी रह चुके हैं। जनवरी 17 में सेवानिवृत्ति के बाद राज्य सरकार ने उन्हें अगले तीन महीनों तक प्रभारी डीजीपी पद पर एक्टेंशन दिया था।
अमीन एसपी, बारोट डीवाईएसपी बने थे
गत वर्ष अगस्त महीने में सेवानिवृत्ति के बाद राज्य सरकार ने अमीन को पहले महीसागर जिले का एसपी नियुक्त किया था। इसके बाद उन्हें तापी जिले के एसपी के रूप में तबादला किया गया था। उधर बारोट जेल में रहते हुए वर्ष 2014 में सेवानिवृत्त हुए थे और जून 2015 में जमानत मिली। इसके बाद गत वर्ष अक्टूबर में सेवानिवृत्ति के बाद राज्य सरकार ने बारोट को वडोदरा स्थित पश्चिम रेलवे के पुलिस उपाधीक्षक पद पर नियुक्त किया था। अमीन इशरत जहां मुठभेड़ प्रकरण में आरोपी हैं वहीं बारोट इशरत जहां व सादिक जमाल मुठभेड़ प्रकरण में आरोपी हैं। अमीन को सोहराबुद्दीन मुठभेड़ प्रकरण में आरोप मुक्त हो चुके अमीन वर्ष 2007 में गिरफ्तारी के बाद करीब आठ वर्षों तक जेल में रहे।
पूर्व आईपीएस ने दायर की थी याचिका
इस मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी राहुल शर्मा ने इन दोनों अधिकारियों की सेवानिवृत्ति के बाद फिर से अनुबंध के तहत गुजरात पुलिस की सेवा में नियुक्ति का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इससे पहले गुजरात उच्च न्यायालय ने यह याचिका खारिज कर दी थी।
जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि यह दोनों नियुक्तियां कानून का उल्लंघन है। उनके रिकॉर्ड अच्छे नहीं हैं। दोनों के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया जा चुका है और जेल भी जा चुके हैं। ऐसे आरोपों में शामिल पुलिस अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद फिर से अनुबंध पर नियुक्त नहीं करना चाहिए। यह बंबई पुलिस अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ हैं।