बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम श्री सोमनाथ महादेव मंदिर क्षेत्र में हिरण नदी के पास टीले पर ई.स. १३५० में सुन्दर नक्काशी के साथ बने इस सूर्य मंदिर की स्थापत्य कला की नक्काशी को देखकर ध्यान आकर्षित हो जाता है। मंदिर में प्रवेश करते ही श्रृंगार चौकी. मंडप, प्रदक्षिणा पथ एवं गर्भगृह जैसे अंगों से बने इस मंदिर को पंचांगी भी कह सकते हैं।
गवाक्ष में गंगा-यमुना की शिल्प :
मंदिर में प्रवेश करते ही श्रृंगार चौकी है। दोनों ओर बैठने के लिए कक्षासन की रचना की गई है। इसके बाद मंदिर ते प्रवेशद्वार पर ललाट में गणेश भगवान हैं, जिनके ऊपर नवगृह पट्ट है। द्वार के दोनों ओर नीचे गवाक्ष में देव के रक्षक के समान द्वारपाल दर्शाये गए हैं, जिनपर दोनों ओर गंगा एवं यमुना की शिल्प हैं। दिव्यहस्त देवी ने एक हाथ में उत्तरीय वस्त्र का छेड़ा व दूसरे हाथ में कुंभ धारण किया है। द्वार पर गंगा-यमुना की शिल्प रखने की मरम्परा प्राचीन है। कदवार के प्राचीन मंदिर एवं थान के प्राचीन मंदिर के द्वार शाख में भी गंगा-यमुना की शिल्प बनाई गई है।
करीब ५५० से ६५० वर्ष प्राचीन इस प्रभावशाली मंदिर के मंडप में दोनों ओर कक्षासन हैं। ऊपर से अष्टकोणीय है। प्रवेशबारियों से प्रवेश होने पर गर्भगृह की बाह्य ओर भद्र गवाक्ष में सूर्य की प्रतिमा जड़ी हुई है। भगवान सूर्य एक योद्धा की मुद्रा में खड़े हैं। मस्तक पर किरीटमुकुट धारण है। कक्षासन पर हवा एवं सूर्य के प्रकाश के लिए जाली लगाई गई हैं, जिनपर पुष्पों के चित्र बनाए गए हैं।
मंदिर के पास मिले थे प्राग एवं मौर्य कालीन संस्कृति के चित्र
इस मंदिर के पास ही पुरातत्वविद् पी. पी. पंड्या ने पुरातत्वीय खुदाई करके प्राग मौर्य एवं मौर्य कालीन संस्कृति के अवशेष खोजे थे। बताया जाता है कि इस शोध की न्यूज रील समग्र भारत देश के थिएटरों में दिखाई गई थी।
प्राचीन विरासत को बचाने की जरुरत :
इस सूर्य मंदिर की खोज किसने की, इस संबंध में तो जानकारी नहीं है, लेकिन आज इसकी हालत दयनीय बनी हुई है। गौरवशाली प्राचीन विरासत की रक्षा नहीं होने से यह मंदिर जर्जर हो रहा है। ऐसे में सरकार के पुरातत्व विभाग के मंत्री, पुरातत्व विभाग के निदेशक आदि से इस विरासत को बचाने की मांग की है।
-परेशभाई पंड्या-प्रबंध न्यासी. श्री जयाबेन फाउंडेशन-राजकोट।