अहमदाबाद. गुजरात की मिट्टी और पानी में नमक ज्यादा होने के चलते किसानों को फसल की पैदावार कम मिलती है।
किसानों को ऐसी स्थिति से उबारने के लिए गुजरात विश्वविद्यालय (जीयू) के माइक्रो बायोलॉजी विभाग की एक पीएचडी छात्रा ने ऐसी शोध की है कि जिसकी मदद से नमक की अधिकता वाली मिट्टी और पानी के बीच भी फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। इतना ही नहीं फसल में कई पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ाई जा सकती है।
दरअसल माइक्रो बायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष एवं प्रोफेसर डॉ. मीनू सराफ के मार्गदर्शन में छात्रा प्रियंका पटेल ने ऐसे बैक्टेरियाओं की पहचान की है, जिनकी मदद से फलीदार फसलों विशेषकर मूंग और फळसी की फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। उसमें आयरन और सेलेनियम सरीखे पोषक तत्वों की मात्रा को भी बढ़ाया जा सकता है। ताजा रिपोर्ट्स में सामने आ रहा है कि न सिर्फ लोगों में बल्कि खाद्य पदार्थों में भी आयरन और सेलेनियम जैसे पोषक तत्वों की कमी देखी जा रही है।
ऐसे में बैक्टेरिया की मदद से जैविक पद्धति द्वारा यदि फलीदार फसलों में आयरन और सेलेनियम को बढ़ाया जा सकता है तो यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। भारत में दैनिक खपत और आहार में प्रोटीन के लिहाज से फलीदार फसलें ज्यादा पैदा होती हैं। इसके अलावा इनके जरिए मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। जिससे मूंग और फळसी में बैक्टेरिया के जरिए आयरन और सेलेनियम बढ़ाने पर शोध की गई, जिसके बेहतर परिणाम देखने को मिले। इस बैक्टेरिया को उपयोग करने, उसकी मात्रा की पद्धति को भी विकसित किया गया है। छात्रा को इस शोध पर जीयू ने पीएचडी की उपाधि प्रदान की है।
किसानों को ऐसी स्थिति से उबारने के लिए गुजरात विश्वविद्यालय (जीयू) के माइक्रो बायोलॉजी विभाग की एक पीएचडी छात्रा ने ऐसी शोध की है कि जिसकी मदद से नमक की अधिकता वाली मिट्टी और पानी के बीच भी फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। इतना ही नहीं फसल में कई पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ाई जा सकती है।
दरअसल माइक्रो बायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष एवं प्रोफेसर डॉ. मीनू सराफ के मार्गदर्शन में छात्रा प्रियंका पटेल ने ऐसे बैक्टेरियाओं की पहचान की है, जिनकी मदद से फलीदार फसलों विशेषकर मूंग और फळसी की फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। उसमें आयरन और सेलेनियम सरीखे पोषक तत्वों की मात्रा को भी बढ़ाया जा सकता है। ताजा रिपोर्ट्स में सामने आ रहा है कि न सिर्फ लोगों में बल्कि खाद्य पदार्थों में भी आयरन और सेलेनियम जैसे पोषक तत्वों की कमी देखी जा रही है।
ऐसे में बैक्टेरिया की मदद से जैविक पद्धति द्वारा यदि फलीदार फसलों में आयरन और सेलेनियम को बढ़ाया जा सकता है तो यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। भारत में दैनिक खपत और आहार में प्रोटीन के लिहाज से फलीदार फसलें ज्यादा पैदा होती हैं। इसके अलावा इनके जरिए मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। जिससे मूंग और फळसी में बैक्टेरिया के जरिए आयरन और सेलेनियम बढ़ाने पर शोध की गई, जिसके बेहतर परिणाम देखने को मिले। इस बैक्टेरिया को उपयोग करने, उसकी मात्रा की पद्धति को भी विकसित किया गया है। छात्रा को इस शोध पर जीयू ने पीएचडी की उपाधि प्रदान की है।
चना, गेंहू में जिंक भी बढ़ाने में बैक्टेरिया मददगार
इसी प्रकार के बैक्टेरिया को एक अन्य छात्रा शबनम शेख ने भी चिन्हित किया है, जिनकी मदद से चना, गेंहू में जिंक व अन्य पोषक तत्व की मात्रा बढ़ती है एवं पैदावार भी बढ़ती है। इस शोध पर शबनम को भी पीएचडी की उपाधि जीयू की ओर से प्रदान की गई है।
इसी प्रकार के बैक्टेरिया को एक अन्य छात्रा शबनम शेख ने भी चिन्हित किया है, जिनकी मदद से चना, गेंहू में जिंक व अन्य पोषक तत्व की मात्रा बढ़ती है एवं पैदावार भी बढ़ती है। इस शोध पर शबनम को भी पीएचडी की उपाधि जीयू की ओर से प्रदान की गई है।
तीन गुना बढ़ सकती है पैदावार, पद्धति जैविक
शोध के तहत मूंग और फळसी में आयरन और सेलेनियम बढ़ाने में मददरूप हों ऐसे प्लांट ग्रोथ प्रमोटिंग रिजोबैक्टेरिया को चिन्हित किया गया। उन्हें अलग-अलग करके उसका उपयोग पहले गमले में फसल उगाकर किया फिर उसका अध्ययन किया और फिर खेतों में उपयोग कर किए गए शोध एवं अध्ययन में पाया गया कि तीन गुना तक मूंग और फळसी की फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। आयरन और सेलेनियम की मात्रा भी इसके उपयोग से पैदा हुई मूंग और फळसी में बढ़ी है। बैक्टेरिया को बिना किसी जिनेटिकली मोडिफाइड किए ही चिन्हित किया है। यह जैविक पद्धति है। कैमिकल का उपयोग नहीं होने से यह सस्ती भी है। जिससे मिट्टी को भी नुकसान नहीं होता है।
-डॉ. मीनू सराफ, अध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी, जीयू
शोध के तहत मूंग और फळसी में आयरन और सेलेनियम बढ़ाने में मददरूप हों ऐसे प्लांट ग्रोथ प्रमोटिंग रिजोबैक्टेरिया को चिन्हित किया गया। उन्हें अलग-अलग करके उसका उपयोग पहले गमले में फसल उगाकर किया फिर उसका अध्ययन किया और फिर खेतों में उपयोग कर किए गए शोध एवं अध्ययन में पाया गया कि तीन गुना तक मूंग और फळसी की फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। आयरन और सेलेनियम की मात्रा भी इसके उपयोग से पैदा हुई मूंग और फळसी में बढ़ी है। बैक्टेरिया को बिना किसी जिनेटिकली मोडिफाइड किए ही चिन्हित किया है। यह जैविक पद्धति है। कैमिकल का उपयोग नहीं होने से यह सस्ती भी है। जिससे मिट्टी को भी नुकसान नहीं होता है।
-डॉ. मीनू सराफ, अध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी, जीयू