मैत्री कानन मजूमदार व अन्य की ओर से दायर याचिका में मीडिया रिपोर्ट और मरीजों के परिजनों के अनुभव का हवाला देते हुए यह दावा किया गया है कि राज्य सरकार ने कोरोना की तरह इसके आंकड़ों की सही जानकारी नहीं दे रही है। साथ ही इस बीमारी के कुप्रबंधन के चलते एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन की कमी पैदा हुई है। इससे मरीजों के परिजनों में घबराहट है। प्रक्रिया में लापरवाही के चलते कई मरीज अपनी जान गंवा चुके हैं। यह बीमारी तब और ज्यादा खतरनाक हो सकती है जब मरीजों का लंबे समय तक उपचार नहीं किया जा सका हो। इस बीमारी के उपचार में कई इंजेक्शन की जरूरत होती है इसलिए इस नई चुनौती को कोरोना से अलग माना जाना चाहिए। इस बारे में स्थिति रिपोर्ट पेश की जानी चाहिए।
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि राज्य सरकार ने यह भी स्वीकार किया है कि राज्य को केन्द्र से इंजेक्शन के कम स्टॉक मिल रहे हैं।
इस याचिका में अहमदाबाद हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स एसोसिएशन (एएचएनए) का हवाला देेते हुए कहा गया कि इंजेक्शन की कमी के चलते निजी अस्पताल इन मरीजों को अपने यहां दाखिल नहीं कर पा रहे हैं। इस बीमारी के इलाज के लिए हर दिन 6 से 9 इंजेक्शन की जरूरत होती है और इसके इलाज का खर्च आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए उठाना संभव नहीं है। इसलिए निजी अस्पतालों में ऐसे कमजोर वर्ग के लोगों के मरीजों का मुफ्त इलाज किया जाना चाहिए। इस बीमारी के इलाज को आयुष्यमान भारत-पीएमजेएवाई योजना में शामिल किया जाना चाहिए। इस बीमारी को महामारी घोषित किए जाने के बाद राज्य में सरकारी और निजी अस्पताल में दाखिल मरीजों के साथ-साथ घर पर इलाज करा रहे और दाखिल नहीं किए गए मरीजों की गिनती की जानी चाहिए।
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि राज्य सरकार ने यह भी स्वीकार किया है कि राज्य को केन्द्र से इंजेक्शन के कम स्टॉक मिल रहे हैं।
इस याचिका में अहमदाबाद हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स एसोसिएशन (एएचएनए) का हवाला देेते हुए कहा गया कि इंजेक्शन की कमी के चलते निजी अस्पताल इन मरीजों को अपने यहां दाखिल नहीं कर पा रहे हैं। इस बीमारी के इलाज के लिए हर दिन 6 से 9 इंजेक्शन की जरूरत होती है और इसके इलाज का खर्च आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए उठाना संभव नहीं है। इसलिए निजी अस्पतालों में ऐसे कमजोर वर्ग के लोगों के मरीजों का मुफ्त इलाज किया जाना चाहिए। इस बीमारी के इलाज को आयुष्यमान भारत-पीएमजेएवाई योजना में शामिल किया जाना चाहिए। इस बीमारी को महामारी घोषित किए जाने के बाद राज्य में सरकारी और निजी अस्पताल में दाखिल मरीजों के साथ-साथ घर पर इलाज करा रहे और दाखिल नहीं किए गए मरीजों की गिनती की जानी चाहिए।