यूं आया विचार
एप तैयार करने वाले प्रोफेसर विश्वास रावल का कहना है कि एक बार किसी ने उन्हें ५०० रुपए का नकली नोट दे दिया था। उस समय मन में विचार आया कि आंखों वाले तो नकली नोट को पहचान लेते हैं, लेकिन जो लोग नेत्रहीन हैं उन्हें तो असली एवं नकली नोट की पहचान के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह सोचकर वर्ष २०१६ में पीएचडी करने का निर्णय किया और मोबाइल एप विकसित करने को पीएचडी का विषय बनाया।
उनका कहना है कि यह एप डाउनलोड करने वाले व्यक्ति अपने मोबाइल के सामने नोट रखेंगे तो एप के माध्यम से नोट की स्केनिंग की जाएगी। पहचान के बाद मोबाइल एप प्रज्ञाचक्षु व्यक्ति को कितने रुपए का नोट है यह वॉइस असिस्टेंट (आवाज सहायक) टेक्नोलॉजी की मदद से बोल कर बताएगा।
प्रोफेसर का कहना है कि यह एप यूनिवर्सिटी के नाम से ही लांच किया जाएगा। एप का कोडिंग हो गया है और उसकी ट्रायल भी ली गई है, अब डिजाइनिंग पर काम चल रहा है। एप डवलप करने से पहले ब्लाइंड स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों से मिलकर उनके विचार भी जाने थे।