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ब्लड कैंसर में कारगर है इसका ट्रांसप्लांट

locationअहमदाबादPublished: Nov 25, 2018 10:14:23 pm

Submitted by:

Pushpendra Rajput

जीवन में अपनाएं सकारात्मक दृष्टिकोण

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ब्लड कैंसर में कारगर है इसका ट्रांसप्लांट

अहमदाबाद. चाहे ब्लड कैंसर हो या रक्त से संबंधित कोई भी बीमारी हो उसमें बोनमेरो ट्रांसप्लांट आशा की किरण है। बोनमेरो ट्रांसप्लांट के अत्याधुनिक तकनीक के उपचार से मरीज कैंसर से संबंधित बीमारी से निजात पा सकता है। बोनमेरो ट्रांसप्लांट और कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप शाह, डॉ. संकेत शाह, एण्डक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. नवनीत शाह, बोनमेरो हारवेस्ट विशेषज्ञ डॉ. विश्वास अमीन, गायनेकोलॉजिस्ट्र डॉ. जयश्री सेठ ने रविवार को एडलाइफ फाउण्डेशन की ओर से बोनमेरो ट्रांसप्लांट की जागरुकता पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने बोनमेरो ट्रांसप्लांट की उपयोगिता और उसकी हकीकत को पेश किया। उन्होंने बताया कि बोनमेरा ट्रांसप्लांट से मरीज पूरी तरह से स्वस्थ हो सकता है। थैलेसीमिया, जिनेटिक डिसऑर्डर, एनीमिया, क्रोनिक, माइलोइड ल्युकेमिया, ल्युकेमिया, फ्लोक्युलर लिम्फोमा, माइलो जैसे रोगों में बोनमेरो ट्रांसप्लांट मरीजों के लिए मददगार हो सकता है। इस मौके पर मोटीवेशनल स्पीकर और योग गुरू डॉ. कमल परीख ने कहा कि जिन्दगी जीना सीखें। जीवन में हमेशा सकारात्मक बनें और अच्छा सोचें। एडलाइड फाउण्डेशन की ट्रस्टी निमिषा गांधी ने भी बोनमेरो ट्रांसप्लांट को लेकर जागरूक किया। फाउण्डेशन समाज में कैंसर के प्रति जागरुक कर रहा है। साथ ही चिकित्सक एवं मरीजों के बीच सेवा सूत्र तथा कैंसर सपोर्ट ग्रुप के जरिए मदद की जा रही है, जिसमें 500 से ज्यादा सदस्य हैं। इस मौके पर करीब 160 बोनमेरो ट्रांसप्लांट कराने मरीज थे। उन्होंने अपने अनुभव बताए।
१०० में से एक व्यक्ति में पाया जाता है यह रोग

अहमदाबाद. मिर्गी ऐसा रोग है, जो 100 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति में पाया जाता है। 100 में से चार व्यक्तियों में जिन्दगी में एक बार सामान्य खेंच (मिर्गी) आती है। भारत में करीब एक करोड़ लोगों इस बीमारी के शिकार होंगे। सामान्यत: तौर पर देखा जाए तो मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में खामी होने से बिजली की तरंगें बढ़ जाती हैं, जिससे शरीर में कंपन और झटके महसूस होते हैं। , जिसे मिर्गी कहा जाता है। मिर्गी को खेंच, या वाई से भी जाना जाता है। मिर्गी को लेकर कई भ्रामक मान्यताएं होती हैं। सामान्यत: समाज में यह मान्यता होती है कि जिस व्यक्ति को मिर्गी (खेंच) आती है वह जीवनभर उसका शिकार रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं है। एक बार मिर्गी आने का मतलब मिर्गी का रोगी नहीं हो सकता। दूसरी भ्रामकता यह है कि जब भी मरीज को मिर्गी आती है तो उसे चप्पल सुंघाई जाती। प्याज सुंघाया जाता है, दांतों के बीच ठोस वस्तु फंसा दी जाती है। इसके बजाय मरीज को समय पर अस्पताल ले पहुंचाना चाहिए। स्टर्लिंग हॉस्पिटल के न्यूरोसाइसेंज विभाग के निदेशक प्रो. डॉ. सुधीर शाह ने यह जानकारी दी।
उन्होने कहा कि जो व्यक्ति मिर्गी का शिकार होता है उससे दुव्र्यवहार करना, शादी नहीं करना, नौकरी नहीं मिलना और भेदभावपूर्ण जैसे बर्ताव होते हैं। यदि बारबार खेंच (मिर्गी) आती है तो उसका उपचार कराकर उसे रोका जा सकता है। बाद में वह व्यक्ति सामान्य जिन्दगी जी सकता है। दुनिया में नेपोलियन, बोना पार्ट, अल्फ्रेड नोबल जैसी कई प्रतिभाएं थी है, जिनमें (एपीलेप्सी) मिर्गी थी, फिर भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। मिर्गी व्यक्तित्व विकास में बाधक नहीं होती।
एपीलेप्सी (मिर्गी) में इन बातों का रखें ख्याल
– घबराएं नहीं, शांति रखें, मरीज को आराम से लिटा दें, कपड़े ढीले कर दें।
– आसपास यदि गरम पदार्थ या तीखे पदार्थ हों तो उसे हटा दें, सिर के नीचे तौलिया या तकिया रखें।
– मरीज को पर्याप्त हवा लगे, ऐसे माहौल बनाएं।
– अंगों की हलन-चलन को ना रोकें। बंद दांतों के बीच कुछ भी रखने का प्रयास ना करें।
– मरीज को एक करवट लिटा दें ताकि थूंक या लार आसानी से निकल सके
– मरीज को कोई चोट नहीं पहुंचे उसका ख्याल रखें।

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