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बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट : राज्य सरकार ने कहा, सही रूप से ५२१ शपथपत्र पेश

locationअहमदाबादPublished: Dec 10, 2018 11:07:12 pm

Submitted by:

Uday Kumar Patel

– जमीन अधिग्रहण के खिलाफ किसानों की याचिका

Bullet train. Guj govt, 849, 521 actually affected

बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट : राज्य सरकार ने कहा, सही रूप से ५२१ शपथपत्र पेश


अहमदाबाद. गुजरात सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को लेकर उच्च न्यायालय के समक्ष ८४९ शपथपत्र पेश किए गए। इनमें से इस प्रोजेक्ट से प्रभावित नहीं होने वालेे मालिकों के शपथपत्रों की संख्या १९१ है। बिना दस्तावेज वाले शपथपत्रों की संख्या ५ वहीं ४ लोगों की ओर से अधूरा शपथपत्र पेश किए गया है। बिना सर्वे नंबर वाले २९ शपथपत्र हैं। इन उपर्युक्त शपथपत्रों की संख्या २२९ है। अब शेष ६२० शपथपत्रों में दोहरे शपथपत्रों की संख्या ९९ है। इसका मतलब एक व्यक्ति की ओर से एक से ज्यादा शपथपत्र पेश किया गया। सही रूप से कथित प्रभावित लोगों की ओर से पेश ५२१ शपथपत्र पेश किए गए।
राज्य सरकार ने कहा कि इन लोगों की ओर से पेश शपथपत्र विश्वास भरा नहीं दिखता है। इससे यह पता चलता है कि यह शपथपत्र सिर्फ बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने के उद्देश्य से न्यायालय में पेश किया गया है। अब इस मामले की सुनवाई १२ दिसम्बर को होगी। अहमदाबाद – मुंबई बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट से प्रभावित राज्य के चार जिलों-भरूच, नवसारी, वलसाड व सूरत के किसानों की ओर से जमीन अधिग्रहण व मुआवजे को लेकर चुनौती दी गई है।
वकील आनंद याज्ञिक के मार्फत दायर याचिकाओं में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास व पुनसर््थापन (गुजरात संशोधन) अधिनियम के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई है।
जमीन के बाजार दर को मू्ल्यांकन या समीक्षा किए बिना भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया अवैध व असंवैधानिक है। इन जमीनों के बाजार दर की समीक्षा नहीं की गई है। इसलिए प्रभावित किसानों को २०१८ के जंत्री दर से बढ़ा हुआ मुआवजा दिया जाना चाहिए। बढ़ा हुआ मुआवजा नहीं देना इन जमीन मालिकों को उनकी आाजीविका से वंचित रखना है। राज्य में जंत्री की दरों को अंतिम बार वर्ष २०११ में संशोधित किया गया था।
भूमि अधिग्रहण से जुड़ा गुजरात संशोधन अधिनियम, २०१६ असंवैधानिक है। इस अधिनियम के तहत गुजरात सरकार जनहित से जुड़े किसी भी प्रोजेक्ट के लिए सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन, अनुमति लेने और खाद्य सुरक्षा के प्रावधानों को खत्म कर दिया है जो मूल अधिनियम, २०१३ के प्रावधानों के खिलाफ है।

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