कैशलेस स्मार्ट कार्ड की योजना को पहली सितम्बर से अनिवार्य किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान मनपा ने यह बात कही।
इस पर मुख्य न्यायाधीश आर. सुभाष रेड्डी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस दलील को हलफनामा के रूप में पेश करने को कहा। मामले की अगली सुनवाई 10 सितम्बर को होगी।
वकील के. आर. कोष्टी की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि अहमदाबाद महानगरपालिका जनमित्र कार्ड को अनिवार्य नहीं कर सकती। कार्ड के लिए आधार कार्ड का डाटा नहीं मांगा जा सकता। इसके अलावा संविधान ने देश के सभी नागरिकों को घूमने की आजादी दी है। ऐसे में सार्वजनिक परिवहन में कैशलेस कार्ड सिस्टम अनिवार्य करने का निर्णय असंवैधानिक घोषित करना चाहिए।
याचिका में यह कहा गया कि वर्ष 2009 से बीआरटीएस की सेवा आरंभ की गई। इसमें 35 फीसदी हिस्सा केन्द्र का, 15 फीसदी राज्य का और 50 फीसदी हिस्सा मनपा का है। इस तरह यह पूरी तरह सार्वजनिक निगम का उपक्रम है। बीआरटीएस में स्मार्ट कार्ड की घोषणा गत वर्ष की गई, लेकिन तब कोई दस्तावेज अनिवार्य नहीं किया गया था। इसी तरह भारतीय रेलवे और दिल्ली मेट्रो में भी स्मार्ट कार्ड की सुविधा है, लेकिन उन जगहों पर कोई दस्तावेज नहीं दिया जाता। सिर्फ आवेदन पत्र के साथ फीस भरनी होती है, जबकि मनपा की ओर से पहली सितम्बर से बीआरटीएस के लिए स्मार्ट कार्ड अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया है।
इस स्मार्ट कार्ड की योजना एक निजी बैंक की मदद से लागू की जा रही है। कार्ड के केवाईसी के लिए आधार कार्ड की जानकारी मांगी जा रही है जो पूरी तरह अनुचित है। इसका अन्य उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसलिए जनमित्र कार्ड को अनिवार्य करने का निर्णय रद्द किया जाए। साथ ही लोगों से कार्ड के लिए कोई दस्तावेज नहीं लिए जाने का आदेश दिया गया।
उल्लेखनीय है कि मनपा एक निजी बैंक की मदद से शनिवार से जनमित्र कार्ड अनिवार्य करने जा रही थी। यह कार्ड बीआरटीएस के 141 स्टेशन, एएमटीएस के 50 स्टेशन तथा महानगरपालिका के 60 सिविक सेन्टर व निजी बैंक की 47 शाखाओं में उपलब्ध किए जाने की व्यवस्था थी।
इस पर मुख्य न्यायाधीश आर. सुभाष रेड्डी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस दलील को हलफनामा के रूप में पेश करने को कहा। मामले की अगली सुनवाई 10 सितम्बर को होगी।
वकील के. आर. कोष्टी की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि अहमदाबाद महानगरपालिका जनमित्र कार्ड को अनिवार्य नहीं कर सकती। कार्ड के लिए आधार कार्ड का डाटा नहीं मांगा जा सकता। इसके अलावा संविधान ने देश के सभी नागरिकों को घूमने की आजादी दी है। ऐसे में सार्वजनिक परिवहन में कैशलेस कार्ड सिस्टम अनिवार्य करने का निर्णय असंवैधानिक घोषित करना चाहिए।
याचिका में यह कहा गया कि वर्ष 2009 से बीआरटीएस की सेवा आरंभ की गई। इसमें 35 फीसदी हिस्सा केन्द्र का, 15 फीसदी राज्य का और 50 फीसदी हिस्सा मनपा का है। इस तरह यह पूरी तरह सार्वजनिक निगम का उपक्रम है। बीआरटीएस में स्मार्ट कार्ड की घोषणा गत वर्ष की गई, लेकिन तब कोई दस्तावेज अनिवार्य नहीं किया गया था। इसी तरह भारतीय रेलवे और दिल्ली मेट्रो में भी स्मार्ट कार्ड की सुविधा है, लेकिन उन जगहों पर कोई दस्तावेज नहीं दिया जाता। सिर्फ आवेदन पत्र के साथ फीस भरनी होती है, जबकि मनपा की ओर से पहली सितम्बर से बीआरटीएस के लिए स्मार्ट कार्ड अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया है।
इस स्मार्ट कार्ड की योजना एक निजी बैंक की मदद से लागू की जा रही है। कार्ड के केवाईसी के लिए आधार कार्ड की जानकारी मांगी जा रही है जो पूरी तरह अनुचित है। इसका अन्य उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसलिए जनमित्र कार्ड को अनिवार्य करने का निर्णय रद्द किया जाए। साथ ही लोगों से कार्ड के लिए कोई दस्तावेज नहीं लिए जाने का आदेश दिया गया।
उल्लेखनीय है कि मनपा एक निजी बैंक की मदद से शनिवार से जनमित्र कार्ड अनिवार्य करने जा रही थी। यह कार्ड बीआरटीएस के 141 स्टेशन, एएमटीएस के 50 स्टेशन तथा महानगरपालिका के 60 सिविक सेन्टर व निजी बैंक की 47 शाखाओं में उपलब्ध किए जाने की व्यवस्था थी।