scriptधूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया लोकआस्था का महान पर्व छठ | Chattha Pooja celebrated with great joy in Gujarat | Patrika News

धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया लोकआस्था का महान पर्व छठ

locationअहमदाबादPublished: Nov 14, 2018 10:53:30 pm

Submitted by:

Uday Kumar Patel

-छठ महापर्व की परंपरा काफी पुरानी

Chhatha Pooja, Gujarat

धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया लोकआस्था का महान पर्व छठ

अहमदाबाद. गुजरात में रहने वाले बिहार, झारखंड व पूर्वी उत्तर प्रदेश के मूल निवासियों ने लोकआस्था का महान पर्व छठ धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया।
अहमदाबाद के शाहीबाग इलाके में दशामां मंदिर के निकट साबतमती नदी घाट पर पहुंचे बिहार के दरंभगा जिला निवासी और अहमदाबाद में वर्ष 1973 से रहने वाले नवीन चंद्र झा ने बताया कि छठ सूर्योपासना का पर्व है जिसमें लोगों की मनोकामना पूरी होती है।
मधुबनी जिले के मूल निवासी भरत कामत ने बताया कि इस पर्व में स्वच्छता व पवित्रता का काफी ध्यान रखना पड़ता है। इसी जिले के रहने वाले राजेश शर्मा ने बताया कि यह श्रद्धा व आस्था से भरा पर्व है। यह पर्व पति, पुत्र सहित पूरे परिवार की सुख, शांति के लिए मनाया जाता है।
सरसपुर स्थित प्राचीन रणछोडऱाय मंदिर के महाराज लक्ष्मणदास जी महाराज ने बताया कि छठ महापर्व की परंपरा काफी पुरानी है। इस पर्व के बारे में लोगों की आस्था देखते ही बनती है। लोग मानते हैं कि यह महापर्व महाभारत काल से मनाया जा रहा है। सूर्य की उपासना का यह पर्व काफी पवित्र माना जाता है।
कहा जाता है कि कलयुग में एक मात्र सूर्य ही एक ऐसे प्रत्यक्ष देवता है, जिनकी पूजा करने से तुरंत फल भी मिलता है। छठी सूर्य की शक्ति हैं। सूर्य के नारी रूप को छठी कहा जाता है।
भक्तिभाव से मनाया छठ

वडोदरा संवाददाता के अनुसार छठ महापर्व पर बुधवार को महीसागर नदी तट के साथ-साथ बापोद तालाब व अन्य तालाबों पर श्रद्धा का हुजूम देखने को मिला। यहां पर बिहार सांस्कृतिक मंडल के अध्यक्ष व आईएएस अधिकारी डी एन पंाडेय के नेतृत्व में छठ व्रतधारियों के लिए अच्छा इंतजाम किया गया था।
वहीं आणंद संवाददाता के अनुसार शहर में रहने वाले बिहार, झारखंड व अन्य उत्तर-पूर्व भारतीय मूल के नागरिकों ने शहर के परीख भुवन इलाके में मातेश्वरी सोसाइटी के पास खुले मैदान में खोदकर बनाए गए कुंड में उगते हुए सूर्य को अघ्र्य दिया। बिहार के श्रवणकुमार ने बताया कि वर्षों से अपने वतन से दूर रहकर गुजरात को कर्मभूमि बनाने वाले लोग अपनी परंपरा से जुड़े हुए हैं।

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