सड़कों पर थूकना व कूड़ा फैंकना अब आम बात सड़कों पर थूकना, पेशाब करना, कूड़ा फैंकना अब आम बात हो गई है। लगता नहीं कि यह वहीं आशंकित, भयभीत और थाली पीटते लोग हैं जो पिछले दिनों कोरोना वायरस को भगाने के लिए कुछ भी करने को तत्पर नजर आते थे। एक आम नैरेटिव यह चल पड़ा है कि अब इसके साथ ही रहना है। इस महामारी के खिलाफ अभियान में यह रवैया घातक और दूरगामी नुकसान पहुंचाने वाला माना जा रहा है। कोरोना के खतरे से बेपरवाह लोगों का कहना है कि अब पाबंदिया व हिदायतों का कोई मतलब नहीं रह गया है। इनसे कुछ नहीं होने वाला है। कई बार लोगों को निवेदन करना होता है कि वे मास्क पहन लें या थोड़ा दूरी बरते, लेकिन कोई भड़क न उठे, इसका भी डर है। अगर संक्रमण होना है तो होकर रहेगा-नहीं होगा तो नहीं होगा। दूसरा तर्क यह कि हमें नहीं होगा क्योंकि हमारा तो खानपान ठीक है। हमारा शरीर मजबूत है, रोग प्रतिरोधी शक्ति अच्छी है आदि-आदि। लोग एक तरह से खुश है कि अब यह बीमारी धीरे-धीरे दूर हट रही है। इसके विपरीत डाक्टरों का कहना कि भागमभाग का यह नया दौर कोरोना को हराने या उससे निर्भयता दिखाने का आत्मविश्वास नहीं है, बल्कि उससे सावधानियों का बोझ समझकर उतार फेंकने का दोषपूर्ण और अवैज्ञानिक दुस्साहस है। मनमानी करने की ढिठाई है।
बाहर से आने वालों की जांच जारी कंपनियों में दूसरे राज्य व शहरों से आने वाले कर्मियों की जांच के लिए मसाट के शिवम् में विशेष सेंटर चालू है। यहां रोजाना 100 लोगों का टेस्ट किया जाता है। जांच में पॉजिटिव पाए जाने पर नि:शुल्क इलाज मिलता है। 21 सितम्बर के बाद कोरोना मरीजों की संख्या गिरकर उंगलियों पर आ गई है। जिले में कोरोना के एक्टिव मरीज 50 से कम रह गए हैं। संक्रमितों के बढ़ते ग्राफ पर रोक सी लग गई है। यह भी लोगों के बेपरवाह होने का बड़ा कारण बनता जा रहा है।