संघ प्रदेश के उद्योगों के हालात बदतर
पलायन के बढऩे लगे आसार

सिलवासा. कोरोना की मार से बंद हुए जिले के उद्योग-कारोबार इतने बुरी तरह प्रभावित हुए हैं कि उसके चलते ना तो कामकाज पटरी पर लौटा है और ना ही हाल-फिलहाल कोई उम्मीद दिखाई दे रही है। लॉकडाउन के बाद उद्योग के हाल बेहाल है, उसमें भी खासकर वस्त्र इकाइयां प्रमुख है।
यहां पर काम करने वाले श्रमिक पलायन कर गए और कारखाने बंद हो गए। अनलॉक के बाद कल-कारखाने धीरे-धीरे खुले तो हैं, मगर पहले की तरह कामकाज पटरी पर नहीं लौटा है। इन परिस्थियों के बीच प्रशासनिक सहयोग नहीं मिलने से उद्योग क्षेत्र से पलायन की ओर है। लॉकडाउन के बाद दादरा, मसाट, आमली, पिपरिया, डोकमर्डी, नरोली सहित अन्य औद्योगिक विस्तारों में सैकड़ों उद्योग फिलहाल शुरू नहीं हो सके हैं। प्रदेश के उद्योगोंं की डगमगाती नैया के बीच दादरा स्थित बड़ी इकाई ब्लू स्टार बंद हो गई है और अन्य दूसरे उद्योग भी बंद होने की कतार में खड़े दिखाई देने लगे हैं।
उद्योगपतियों का कहना है कि क्षेत्र में कोरोना काल में प्रशासन की व्यर्थ दखलंदाजी व परेशानी लगातार बढ़ रही है। अधिकारी बिजली, वैट, फायर व पीसीसी एनओसी में ढेर सारे दस्तावेज व प्रमाण पत्र जुटाने के बाद अडिय़ल रवैया अपनाए हुए हैं। उद्योगों की माली हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है, बैंकों की ईएमआर्ई चुकानी भी भारी पड़ रही है।
मजदूरों की पगार और दूसरे खर्चे भी उद्योगोंं पर भारी पड़ रहे हैं। जिले में मोटे-मोटे तौर पर मैन्युफैक्चरिंग युनिट्स हैं, जिसमें कपड़ा, प्लास्टिक, रसायन, स्टील, ऑयल, धातुकर्म, इंजीनियरिंग सामान मैन्युफैक्चरिंग संबंधी किस्म-किस्म की फैक्ट्रियां हैं। इनसे जुड़े हाईटेक और सर्विस उद्योग भी जिले की पहचान हैं। उद्योगपतियों का आरोप है कि कोरोना काल में केन्द्र सरकार की आर्थिक मदद भी महज घोषणा बनकर रह गई है। मैन्युफैक्चर सुशील शर्मा कहते हैं कि कोरोना संक्रमण के चलते उद्योगों मे जल्द रिकवरी के आसार नहीं दिख रहे हैं।
बैंकों से राहत नहीं
उद्यमियों को बैंकों से कोई भी राहत नहीं मिल पा रही है। केन्द्र सरकार से लघु उद्योगों को दो करोड़ तक का ऋण बिना गारंटी के देने का प्रावधान है, लेकिन कोई भी बैैक बिना गारंटी के ऋण नहीं दे रहा है। लॉकडाउन के दौरान बंद उद्योगों को भी बैंकों से कोई राहत नहीं मिली है। बैंकों की उदासीनता भी उद्योगों के परेशानी बनी हुई है। एक उद्योगपति ने बताया कि उद्योगों में स्थानीय प्रशासन का कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। क्षेत्र में पेयजल, बिजली, कचरा निष्पादन, सड़क, गटर, स्वास्थ्य सेवाओं के संसाधन उद्योगपतियों को स्वयं जुटाने पड़ते हैं।
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