कोरोना के कारण गिनती की ही ट्रेने चल रही हैं। गत दिनों फेस्टीवल स्पेशन ट्रेने भी चालू की गई हैं। लेकिन इनमें भी रिजर्वेशन नहीं मिल रहा है।
तत्काल और प्रिमियम तत्काल के कारण किराया इतना ज्यादा बढ गया है कि परिवार के चार – पांच लोगों के टिकट निकालना मुश्किल हो गया है। बसों का टिकट भी तीन से चार हजार रुपए के बीच होने से सामान्य लोगों के लिए लौटना मुश्किल हो रहा है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो स्कूलों के बंद होने के कारण सपरिवार गांव गए हैं। लेकिन नॉर्मल रिजर्वेशन टिकट नहीं मिल रहा।
दूसरी तरफ मंजूर हुई छुट्टी से ज्यादा दिन तक गांव में रहने वालों को कंपनी की ओर से लौटने का फोन लगातार जा रहा है। कई लोगों को नौकरी से निकालने की चेतावनी तक दी जा रही है। कुछ ऐसे उदाहरण भी जिसमें कर्ज लेकर श्रमिक वर्ग के लोगों को हवाई जहाज से नौकरी बचाने के लिए वापस आना पड़ा है।
यहां आने पर भी दिक्कत वापी की एक पेपरमिल में काम करने वाले चंद्रेश्वर प्रसाद ने बताया कि पत्नी व बच्चे के साथ सितंबर के आखिरी सप्ताह में कंपनी से 20 दिन की छुट्टी लेकर गांव गया था। लेकिन वापसी में टिकट नहीं मिल रहा था। ट्रेने कम हो गई हैं और बिना रिजर्वेशन के नहीं आ सकते। कंपनी की ओर से जल्दी वापस न लौटने पर किसी और को रख लेने की बार बार चेतावनी मिल रही थी।
किसी तरह 18 नवंबर को ढाई हजार रुपए में रिजर्वेशन का टिकट मिला। परिवार को गांव में ही छोड़कर यहां आने पर कंपनी में तीन दिन तक नौकरी पर नहीं लिया। काफी मान मनौव्वल के बाद काम पर लिया गया। कंपनी के अधिकारी यह सुनने को राजी नहीं हैं कि ट्रेन का टिकट न मिलने से लौट नही पा रहा था। चंद्रेश्वर प्रसाद के अनुसार उसकी जान पहचान में बहुत से लोग हैं जो सही समय पर टिकट न मिलने के कारण गांव में अटके हैं या समय पर लौट नहीं पाए।
किसी तरह 18 नवंबर को ढाई हजार रुपए में रिजर्वेशन का टिकट मिला। परिवार को गांव में ही छोड़कर यहां आने पर कंपनी में तीन दिन तक नौकरी पर नहीं लिया। काफी मान मनौव्वल के बाद काम पर लिया गया। कंपनी के अधिकारी यह सुनने को राजी नहीं हैं कि ट्रेन का टिकट न मिलने से लौट नही पा रहा था। चंद्रेश्वर प्रसाद के अनुसार उसकी जान पहचान में बहुत से लोग हैं जो सही समय पर टिकट न मिलने के कारण गांव में अटके हैं या समय पर लौट नहीं पाए।