केस नं. 1 बारहवीं कक्षा में पढ़ाई करने वाले एक युवक ने फंासी लगाकर आत्महत्या की कोशिश की। घर पहुंचने पर माता-पिता ने अपने बच्चे की हालत देखकर फटाफट एंबुलेंस बुलाई। तीन से चार अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद भी कोरोना के चलते किसी अस्पताल ने उसे एडमिट नहीं किया। सभी जगह से यही जवाब मिला कि कोरोना के चलते अस्पताल में जगह नहीं है। कारण जो भी हो मां-बाप ने अपनी इकलौती संतान खो दी। उस घटना को आज एक वर्ष बीतने के बावजूद इस मां- बाप को बारंबार सपने में अस्पताल के वो दृश्य दिखते हैं। अपने बच्चे के लिए कुछ भी नहीं कर सकने का अपराधबोध मन में है। इस कारण बार बार रोने और बच्चे के साथ जुड़े विचार आते हैं। आज भी मां-बाप दुख के आघात से निकलने के लिए खूब कोशिश व प्रयत्न कर रहे हैं।
केस नं. 2 20 वर्ष के एक युवक के पिता की कोरोना से मौत हो गई। कोरोना के दौरान उपचार के लिए दोस्तों व रिश्तेदारों से लिए गए उधार पैसों की मांग करते रहते हैं। गांव की जमीन और ट्रैक्टर उनके नाम करने का दवाब डालते हैं। अब इस युवक की मानसिक स्थिति ऐसी हो गई है कि उसे बार-बार अस्पताल के दृश्य सामने आते हैं। रिश्तेदारों की ओर से उधार रकम से जुड़े सपने भी आते हैं। पिता की उम्र ज्यादा नहीं थी, फिर भी उपचार में क्या कमी रह गई थी, ऐसी बातें सोचकर अलग-अलग तरह के सवाल मन में उठते है। उधर माता की भी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है। इस युवक को ऐसा लगता है कि पापा होते तो सारा कुछ मैनेज हो जाता। मानसिक स्थिति और ज्यादा नहीं बिगडऩे को लेकर अब इस युवक ने उपचार के लिए चिकित्सक का संपर्क किया है।
ये दोनों मामले कोरोना की दूसरी लहर की मौत से जुड़े हैं। एक मामले में माता-पिता ने अपनी इकलौती संतान खो दी और दूसरे मामले में एक पिता की असमय मौत हो गई। कोरोना काल में दोनों की मौत को लेकर एक साल बीत चुके हैं। हालांकि अब भी वह भयावहता आंखों के सामने से गुजर रही है।
एक सप्ताह में आए 50 से ज्यादा फोन शहर स्थित मानसिक रोग अस्पताल में पिछले एक सप्ताह में करीब 50 से ज्यादा फोन आए जिसमें लोग इस तरह की शिकायत करते पाए गए हैं। इसे देखते हुए अस्पताल ने इन लोगों की मुफ्त काउंसेलिंग आरंभ की है।
डिप्रेशन व बेचैनी से जुड़ी शिकायतें ज्यादा मनोचिकित्सक रमाशंकर यादव के मुताबिक स्वजन की मृत्यु के बाद पुण्यतिथि के आस-पास के समय में डिप्रेशन और बेचैनी से जुड़ी शिकायतें दिख रही हैं। कोरोना को लेकर मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। वैसे तो किसी स्वजन की मौत की बरसी पर इस तरह के मामले दिखते हैं जिन्हें ट्रोमा एनिवर्सरी रिएक्शन (टीआरए) कहा जाता है लेकिन कोरोना की दूसरी लहर की बरसी के वक्त इस तरह की शिकायतें ज्यादा सामने आ रही हैं। उस समय की भयावहता के सपने आते हैं। इसे मानसिक रोग की भाषा में री-लिविंग कहा जाता है।
कोरोना से हुई मौत को भूल नहीं पा रहे लोग विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अचानक और तेजी से सब कुछ घटा। इसलिए जो लोग पहले से ही तनाव में थे उनके सामने यह स्थिति ज्यादा सामने आ रही है। ऐसे में कुछ लोगों में आत्महत्या से जुड़े विचार आने लगे हैं। ऐसे लोग उस मौत को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। सामान्य मामलों में समय के साथ ये घाव भर जाता है लेकिन कोरोना से हुई मौत को लेकर कुछ लोग इसे भूल नहीं पा रहे हैं।
रूटीन क्रियाकलापों में रखें व्यस्त मनोचिकित्सकों के मुताबिक इस तरह के मामलों में संबंधित लोगों को रुटीन क्रियाकलापों में व्यस्त रखना चाहिए। अपने रिश्तेदारों के साथ समय बिताना चाहिए। रिश्तेदारों के घर भोजन या सामाजिक प्रसंग के लिए जाना चाहिए। परिवार के लोगों को जागरूक करना चाहिए कि इन्हें अकेला नहीं छोड़ा जाए। स्वजन की मौत की बरसी पर गाय को चारा खिलाना, पूजा पाठ करना, दान करने जैसी विधि की जा सकती है जिससे उनमें अपराधबोध कम हो।
पूरी दुनिया में चिंता-तनाव में 25 फीसदी तक वृद्धि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक कोविड के पहले वर्ष में पूरी दुनिया में चिंता और तनाव की समस्या में 25 फीसदी तक की वृद्धि देखी गई। इसे देखते हुए विश्व के 90 फ़ीसदी देशों ने अपने यहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सर्वे कराया। इससे पता चलता है कि कोविड के चलते दुनिया भर में लोगों के मानसिक स्वास्थ्य कितना असर पड़ा है। इसे लेकर डब्ल्यूएचओ ने सभी देशों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कदम उठाने को कहा है।
मानसिक बीमारी से निबटना अहम विश्व बैंक के मुताबिक वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) को हासिल करने में मानसिक बीमारी से निबटना काफी अहम है। ऐसा नहीं करने पर काफी खतरनाक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
अगले 10 वर्षों में तनाव अन्य बीमारियों पर भारी वल्र्ड बैंक के मुताबिक अगले 10 वर्षों में यह आशंका व्यक्त की गई है कि किसी भी देश के लिए तनाव अन्य बीमारियों से ज्यादा बड़ा बोझ साबित होगा।
मनोचिकित्सकों की टीम ने आरंभ की मुफ्त सेवा इस तरह के लोगों के उपचार व काउंसलिंग के लिए अहमदाबाद स्थित मानसिक रोगों के अस्पताल की मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की छह सदस्यीय टीम ने नि:शुल्क काउंसेलिग सेवा आरंभ की है। इन मनोचिकित्सकों में डॉ रमाशंकर यादव, ड़ॉ दीप्तिबेन भट्ट, डॉ चिराग परमार व डॉ दर्शन पटेल शामिल हैं। काउंसलिंग के साथ-साथ इनका उपचार भी हो रहा है। इसके लिए हेल्पलाइन नंबर भी आरंभ किया गया है।