मूलरूप से बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले मनोहर कुमार ने एनआईटी जमशेदपुर में बीटेक में मिले प्रवेश को ठुकराकर चीनी भाषा सीखनी शुरू की। सीयूजी से चीनी भाषा में एमए किया है। एक साल चीन भी पढ़कर आए हैं और अब स्कॉलरशिप पर चीन के बीजिंग विश्वविद्यालय से चीनी भाषा में पीएचडी करेंगे। मनोहर कहते हैं कि चीनी भाषा में बेहतर अवसर हैं। देश में बहुत कम जगह सिखाई जाती है। सीयूजी में प्रवेश लिया। मार्गदर्शन अच्छा मिला। चीन गए तो चीन की प्रगति को और भी जानने की ललक जगी सो अब पीएचडी भी करेंगे। सीयूजी में भाषा के साथ उस देख की संस्कृति, रहन-सहन, खानपान, व्यापार, राजनीति को भी सिखाया जाता है।
-मनोहर कुमार, एमए के छात्र अब चीन से करेंगे पीएचडी
वाइब्रेंट गुजरात, प्लास्ट इंडिया और फिर मेक इन इंडिया की पहल के चलते गुजरात ही नहीं देशभर में चीनी भाषा के जानकारों की मांग बढ़ी है। क्योंकि बड़े पैमाने पर इन देशों की कंपनियां भारत व गुजरात में निवेश कर रही हैं। जिससे चीनी भाषा में बीए करने वाले विद्यार्थियों एवं इस भाषा के जानकारों के लिए नौकरी की अपार संभावनाएं पैदा हुई हैं। उनके लिए उच्च शिक्षा के भी बेहतर अवसर हैं। सीयूजी में २०12 से चीनी भाषा में बीए की शुरूआत हुई। बीते दो-तीन सालों से क्रेज काफी बढ़ा है। हर साल कई विद्यार्थी पढऩे के लिए चीन के विश्वविद्यालयों में भी जाते हैं। कोर्स करते ही अच्छे पैकेज पर नौकरी भी मिल जाती है।
-प्रशांत कौशिक, सहायक प्रोफेसर, चीनी भाषा अध्ययन केन्द्र,सीयूजी
सीयूजी से जर्मन भाषा सीखने के बाद कोई भी विद्यार्थी घर नहीं बैठा है। उसे तत्काल जॉब मिल जाती है। सालाना आठ से नौ लाख का पैकेज मिलता है। 100 प्रतिशत प्लेसमेंट है। उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के भी अवसर हैं। इस वजह से मांग बढ़ी है। वाइब्रेंट गुजरात, प्लास्ट इंडिया, मेक इन इंडिया के चलते जर्मन भाषा के जानकारों की मांग बढ़ी है। क्रेज का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि विद्यार्थी आईआईटी में मिले प्रवेश को छोड़कर विद्यार्थी जर्मन सीखने आ रहे हैं।
-रोशनलाल जाहेल, सहायक प्रोफेसर, जर्मन अध्ययनकेन्द्र, सीयूजी