वसावा ने कहा कि साइबर क्राइम के दो प्रकार होते हैं, जिसमें एक है साइबर धोखाधडी। इसमें रकम की ऑनलाइन धोखाधड़ी होती है। वहीं दूसरी साइबर बुलिंग (ऑनलाइन छेड़छाड़ के किस्से), जिसमें विशेषतौर पर महिलाओं और किशोरियों से छेड़छाड़ के किस्से सामने आते हैं। समाज में साइबर बुलिंग (ऑनलाइन छेड़छाड़) के किस्से काफी होते हैं, लेकिन पीडि़त महिलाएं या युवतियों के माता-पिता या रिश्तेदार बदनामी के डर से पीडि़तों को पुलिस में शिकायत नहीं करने के गलत सुझाव देते हैं।
उन्होंने कहा कि साइबर छेड़छाड़ का शिकार होने वालों को पुलिस की मदद लेनी चाहिए। ऐसे मामलों को सुलझाना आसान होता है। इसका कारण है कि साइबर बुलिंग (छेड़छाड़) के मामलों में ज्यादातर अपराधी स्थानीय ही होते हैं और पीडि़त महिला के परिचित होते हैं। हालांकि साइबर धोखाधड़ी के मामले चुनौतीभरे होते हैं। साइबर धोखाधड़ी के अपराधी सामान्यत: दूरदराज से कार्य करते हैं। वे अपने मोबाइल सिमकार्ड बारंबार बदलते रहते हैं और अन्य व्यक्तिों के नामों के फर्जी बैंक खातों का उपयोग करते हैं। ऐसे में उन्हें तलाशना काफी मुश्किल हो जाता है। राजस्थान, हरियाणा, अथवा झारखंड जैसे राज्यों के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में रहकर अपराधी वारदातों को अंजाम देते हैं। अपराधियों का पुलिस पता भी लगा लेती है तो भी उनकी गिरफ्तारी के लिए स्थानीय अधिकारियों का समर्थन लेना पड़ता है, जो हमेशा नहीं मिलता। यदि स्थानीय अधिकारियों की मदद ली जाती है तो ऑपरेशन की जानकारी संदिग्ध व्यक्तियों तक पहुंचने की सभावना रहती है। संदिग्धों को गुजरात भी लाया जो तो अपराध से जुड़े साक्ष्य भी मिलना चुनौतीभरे हो जाते हैं। ऐसे में साइबर धोखाधड़ी के मामलों को आरोपी साबित करना या फिर सजा मिलने की संभावना घट जाती है। इसके चलते जागरूक और सावधानी ही साइबर धोखाधड़ी से बचने का बेहतर उपाय है।
साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर एवं जीएनएलयू सेन्टर फॉर लॉ एंड टेक्नोलॉजी के प्रमुख डॉ. थोमस मैथ्यू ने भी अहम जानकारी दी और वसावा का आभार जताया।
साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर एवं जीएनएलयू सेन्टर फॉर लॉ एंड टेक्नोलॉजी के प्रमुख डॉ. थोमस मैथ्यू ने भी अहम जानकारी दी और वसावा का आभार जताया।