अहमदाबाद- सूरत से मंगाई सामग्री मैत्री संस्थान के निदेशक मेहुल परमार बताते हैं कि पिछले एक माह से साठ से ज्यादा दिव्यांग बच्चों ने गाय के गोबर से इको फ्रेंडली वैदिक राखियां बनाई हैं। कोरोना महामारी के चलते एक साथ ही इन बच्चों को बुलाना संभव नहीं था तो पांच-सात बच्चों के ग्रुप में अलग-अलग दिनों में बच्चे राखियां बनाते थे। जिन बच्चों ने राखियां बनाई हैं उनमें मानसिक विकलांग, सेरेब्रल पल्सी के शिकार बच्चे हैं। राखियां बनाने में रुद्राक्ष, चन्दन (सुखड), मोती, क्रिस्टल जैसी सामग्री अहमदाबाद और सूरत से मंगाई गई है। राखियों की खासियत यह है कि ये राखियां गाय के गोबर से तैयार की गई है। इसके लिए राजस्थान की गोशाला से गाय के कैक (उपले) मंगाए गए थे।
राखी खरीदने वालों को दिए नि:शुल्क मास्क उन्होंने कहा कि न सिर्फ बच्चों ने अलग-अलग आकर्षक डिजाइनों में राखियां बनाई बल्कि संस्थान में राखियों की बिक्री भी की गई। आधे से ज्यादातर राखियां बिक चुकी हैं और शेष राखियों को कच्ची बस्तियों में जाकर बांटी गई हैं। वहीं राखियों के खरीदारों को नि:शुल्क मास्क का वितरण भी किया गया। राखियों की बिक्री से जो भी आवक होती है वह बच्चों के विकास पर खर्च की जाती है।
परमार बताते हैं कि चाहे दीपावली हो रक्षाबंधन हो या फिर उत्तरायण हो हर त्योहारों पर कोई न कोई वस्तुएं बनाई जाती हैं। दीपावली पर मोमबत्ती और आकर्षक दीपक ये बच्चे बनाते हैं। रक्षाबंधन पर राखियां बनाते हैं। राखियां बनाने का उद्देश्य बच्चों को रचनात्मक कार्यों को लेकर प्रोत्साहित करना है। हररोज एक बालक पांच से सात राखियां बनाता है।
चिकित्सा थैरेपी होती हैं
राखियां बनाने से इन दिव्यांग बच्चों में एकाग्रता बनती है। सेरेब्रल पल्सी के शिकार बच्चे जो किसी वस्तु को अच्छे से नहीं पाते। उनके हाथों का संतुलन बनता है। अलग-अलग रंगों की राखियां होने से वे रंगों को समझते हैं।