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Gujarat News : रक्त-बीज के समान गाजर घास पर नियंत्रण के लिए ऐसे करें उपाय

locationअहमदाबादPublished: Jun 05, 2022 12:29:11 am

Submitted by:

Binod Pandey

मार्गदर्शन शिविर में विशेषज्ञ वक्ताओं ने दी गाजर घास पर नियंत्रण की जानकारी

Gujarat News : रक्त-बीज के समान गाजर घास पर नियंत्रण के लिए ऐसे करें उपाय

Gujarat News : रक्त-बीज के समान गाजर घास पर नियंत्रण के लिए ऐसे करें उपाय

आणंद. आणंद जिले के धर्मज गांव में धरोहर फाउंडेशन और धर्मज सेवा सहकारी मंडली की ओर से किसानों के लिए मार्गदर्शन शिविर का आयोजन किया गया। इसमें आणंद कृषि यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ वक्ताओं ने किसानों को गाजर घास नियंत्रण के उपाय बताए। प्राकृतिक खेती के संबंध में किसानों को मार्गदर्शन दिया गया।
एग्रोनॉमिस्ट वीड मैनेजमेंट डी डी चौधरी ने कहा कि आणंद कृषि यूनिवर्सिटी में हर साल 16 से 22 अगस्त गाजर घास नियंत्रण सप्ताह का आयोजन किया जाता है। घास के नियंत्रण के लिए उन्होंने सामूहिक प्रयास की आवश्कयता जताई। उन्होंने कहा कि गैर उपज क्षेत्र और उपज क्षेत्र के लिए अलग-अलग पद्धति अपना कर गाजर घास को नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सामूहिक प्रयत्न से धर्मज गांव को गाजर घास मुक्त करने का संकल्प करने की अपील की।
एग्रोनॉमी विभाग के प्रमुख डॉ विमल पटेल ने बताया कि गाजर घास का अंग्रेजी नाम पार्थेनियम है, जो 1954 में अमेरिका के मेक्सिको से पीएल 480 गेहूं के साथ आ गया था। वर्ष 1956 में पहली बार यह घास पुणे में देखने को मिला। परंतु, अब देश के हरेक हिस्से में यह घास दिखाई देता है। इसकी फैलने की क्षमता अत्यधिक होने से इसे रोकना संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि गाजर घास फसल को नुकसान करने के अलावा मनुष्यों में कई तरह की बीमारियों का कारण होता है। यदि हर साल इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह 10 से 15 गुणा बढ़ जाता है। फाउंडेशन के प्रमुख राजेश पटेल ने कहा कि फसल के साथ खर-पतवार उगने से किसानों के मुनाफे में कमी आती है। उन्होंने खेती को व्यवसाय के रूप में स्वीकार कर रणनीति के तहत आयोजन करने की किसानों से अपील की। शिविर के दूसरे चरण में ग्रामसेवक अश्विन पटेल ने देशी गाय आधारित प्राकृतिक खेती को अपनाने की किसानों से अपील की। उन्होंने कहा कि इससे किसान आत्मनिर्भर हो सकते हैं। शिविर में हर्षद पटैल, अनिल पटेल, जीतू पटेल आदि मौजूद रहे। विशेषज्ञ वक्ता डॉ बी डी पटेल ने बताया कि पूर्व में किसान साल में एक फसल लेते थे, लेकिन अब तीन से चार फसल उपजाते हैं। इससे खेत को आराम नहीं मिलता। खेती के लिए अत्यधिक सिंचाई और उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है। खेत श्रमिकों की भी कमी है। ऐसी विकट परिस्थिति में खरपतवार भी मुश्किल पैदा करते हैं।
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