scriptGujarat: कला में माहिर कारीगरों के लिए उनका हुनर ही बनेगा डिप्लोमा का रास्ता | For artisans skilled in art, their skill itself will become the path to diploma | Patrika News
अहमदाबाद

Gujarat: कला में माहिर कारीगरों के लिए उनका हुनर ही बनेगा डिप्लोमा का रास्ता

हुनर में आगे कारीगरों के लिए नए साल से कोर्स शुरू करेगी बीएओयू , पुरातन भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने की पहल, राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर विशेष खबर

अहमदाबादNov 11, 2024 / 10:52 pm

nagendra singh rathore

baou
भारतीय ज्ञान परंपरा में मौखिक ज्ञान व हुनर का महत्व था, जबकि आधुनिक समय में प्रमाण-पत्र, डिप्लोमा, डिग्री का महत्व है। ऐसे में अपनी पुश्तैनी कला और कारीगरी में माहिर कलाकारों को आधुनिक शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए गुजरात की डॉ.बाबा साहेब अंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी (बीएओयू) ने अहम पहल की है। यूनिवर्सिटी कारीगरों के हुनर को प्रमाणित कर उन्हें प्रमाण-पत्र देगी, इसके लिए विशेष कोर्स भी डिजाइन किया जा रहा है। यूनिवर्सिटी ने इसके लिए सेंटर फॉर रिकॉग्नाइजिंग प्रायर लर्निंग परफॉर्मिंग आर्ट्स केन्द्र भी स्थापित किया है।
मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने हाल ही में इस केन्द्र का लोकार्पण किया है। यह केन्द्र कलाकारों को उनके क्षेत्र के ज्ञान, कौशल और प्रायोगिक अनुभव के आधार पर सीधे परीक्षा लेगा और उसके आधार पर उन्हें प्रमाण-पत्र प्रदान करेगा।

कथक, भरतनाट्यम, सिंगिंग में सर्टिफिकेट-डिप्लोमा कोर्स

यूनिवर्सिटी सूत्रों के तहत विवि सबसे पहले कथक, भरतनाट्यम और सिंगिंग के क्षेत्र में सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा कोर्स शुरू करने जा रही है। इसमें जो कलाकार पहले से ही इस क्षेत्र के जानकार हैं, उन्हें जितना ज्ञान है, उसे प्रमाणित किया जाएगा। जो ज्ञान है, उसके आधार पर वह सीधे परीक्षा देकर क्रेडिट पा सकेंगे और उसके अनुरूप उन्हें सर्टिफिकेट और डिप्लोमा प्रदान किया जाएगा। इसके लिए विशेष कोर्स तैयार किया जा रहा है, जिसमें कुछ हिस्सा लिखित परीक्षा और कुछ प्रायोगिक परीक्षा का रखा जाएगा। संबंधित क्षेत्र के जानकारों की मदद ली जाएगी।

नए साल जनवरी 2025 से होगी शुरुआत

बीएओयू की कुलपति डॉ.अमी उपाध्याय ने बताया कि यह कोर्स विशेषरूप से ऐसे कलाकारों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा रहा है, जो अपनी कला में तो माहिर हैं, लेकिन उनके पास उससे संबंधित कोई डिप्लोमा या सर्टिफिकेट नहीं है। दरअसल भारतीय ज्ञान परंपरा में मौखिक और पुश्तैनी रूप से देखकर सीखने की परंपरा थी, उसका कोई प्रमाण-पत्र का डिग्री नहीं होती थी। आज की शिक्षा पद्धति में डिग्री, डिप्लोमा और प्रमाण-पत्र का चलन है। ऐसे में वे शिक्षा की मुख्यधारा से नहीं जुड़ पा रहे हैं। उन्हें उनके हुनर, कला का प्रमाण-पत्र नहीं मिलता है। इस कमी को दूर करने के लिए यूनिवर्सिटी जनवरी 2025 से प्रायर लर्निंग रिकॉग्नाइजिंग सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स शुरू करने जा रही है।

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