रूपाल में नवरात्रि की नवमी को वरदायिनी माता की पल्ली होती है, जिसमें हजारों किलोग्राम घी चढ़ाया जाता है। पल्ली में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और घी चढ़ाते हैं, लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए पल्ली का आयोजन नहीं करने का निर्णय किया गया है।
महाभारत काल से निकाली जाती है पल्ली महाभारत काल से रूपाल गांव में पल्ली यात्रा निकाली जाती है। यह माना जाता है कि पांडवों ने साढे पांच हजार वर्ष पहले सोने की पल्ली निकाल थी। इस पल्ली पर शुद्ध घी का अभिषेक किया जाता है। साथ ही बच्चों को पल्ली की ज्योति पर घुमाने की परंपरा है। बाद में घी को गरम का पुन: शुद्ध कर प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है। रूपाल में पल्ली अलग-अलग मोहल्लों में घूमती है और सुबह करीब छह बजे निज मंदिर पहुंचती है। इस दौरान रास्तों में घी बहता नजर आता है।