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Ahmedabad News: गांधी जयंती पर जीएनएलयू में खुला दिव्यांगता अध्ययन केन्द्र

locationअहमदाबादPublished: Oct 03, 2019 07:18:05 pm

GNLU, Centre for Disability Studies, Ahmedabad, Gujarat, Education, research, rights, Law, Policy दिव्यांग लोगों के अधिकार, सामाजिक न्याय के लिए शिक्षा, शोध एवं नीति पर होगा काम
 

Ahmedabad News: गांधी जयंती पर जीएनएलयू में खुला दिव्यांगता अध्ययन केन्द्र

Ahmedabad News: गांधी जयंती पर जीएनएलयू में खुला दिव्यांगता अध्ययन केन्द्र

अहमदाबाद. महात्मा गांधी की १५०वीं जयंती वर्ष पर GNLU गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (जीएनएलयू) ने Disability दिव्यांगता अध्ययन उत्कृष्टता केन्द्र (सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर डिसेबिलिटी स्टडीज) शुरू किया है। यह केन्द्र दिव्यांग लोगों के अधिकार, उन्हें समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए शिक्षा, शोध एवं नीतियों को बनाने में मददरूप होने का काम करेगा।
जीएनएलयू के निदेशक डॉ.शांता कुमार ने बताया कि यूं तो जीएनएलयू में वर्ष २०१७ से दिव्यांगता पर काम के लिए समिति कार्यरत है। वह भी अच्छा काम कर रही है, लेकिन अब इस दिशा में और भी ज्यादा कामकाज हो इसके लिए दिव्यांगता अध्ययन उत्कृष्टता केन्द्र शुरू किया है। यह केन्द्र पाठ्यक्रमों में उचित परिवर्तन, शोध कार्य के जरिए दिव्यांगों के मानव अधिकार, समाज में दिव्यांग लोगों को उचित स्थान दिलाने, सभी जगहों पर आसानी से आने जाने में दिव्यांगों को सुविधा मिले, समावेशी शिक्षा के लिए कार्य करेगा।
इस केन्द्र के शुभारंभ के दौरान NALSAR नेशनल अकादमी ऑफ लीगल स्टडीज (नलसर) हैदराबाद की अकादमिक डीन एवं दिव्यांग लोगों के अधिकार के लिए काम करने वाली प्रोफेसर अमिता ढांडा उपस्थित रहीं। उन्होंने कहा कि हमें सभी को समान अधिकार देने के लिए अपने घर से शुरुआत करनी होगी।
इस सेंटर के शुरू होने के साथ ही जीएनएलयू में कार्यरत कुल उत्कृष्टता केन्द्रों की संख्या बढ़कर 16 हो गई है।

गांधी पर ‘राजद्रोह के मुकद्दमे ‘ को नाटक के जरिए दर्शाया
जीएनएलयू में Mahatma gandhi महात्मा गांधी की जयंती के दिन एक नाटक का मंचन किया गया। द ग्रेट ट्रायल नाम से मंचित किए गए नाटक में वर्ष १९२२ में महात्मा गांधी पर अहमदाबाद के सर्किट हाऊस के हॉल में चलाए गए राजद्रोह के मुकद्दमे (ट्रायल) की प्रक्रिया को प्रस्तुति किया गया। जिसमें महात्मा गांधी की ओर से दी गई दलीलों और उसके बाद गांधी जी सुनाई गई छह साल की सजा का वर्णन किया गगया, जिसे भी गांधीजी ने सहर्ष स्वीकार किया था।
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