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Ahmedabad News जड़ी बूटी से संभव है लीवर सिरोसिस रोग का उपचार

locationअहमदाबादPublished: Dec 21, 2019 08:44:21 pm

GU, Herbal drug, Livni, Dr Akshay sevak, Dr rakesh rawal, Liver cirrhosis, fatty liver, Ayurved जीयू में हुई शोध में मिले सकारात्मक परिणाम, जूनागढ़ निवासी डॉ. अक्षय सेवक की बनाई आयुर्वेदिक दवाई के प्रभाव पर जीयू के लाइफ साइंस विभाग में हुई शोध
 

Ahmedabad News जड़ी बूटी से संभव है लीवर सिरोसिस रोग का उपचार

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अहमदाबाद. लीवर सिरोसिस जैसे जानलेवा गंभीर रोग से ग्रस्त रोगियों को जड़ी बूटी (वनस्पति) के जरिए स्वस्थ्य करने का दावा गुजरात विश्वविद्यालय (जीयू) के विजिटिंग प्राध्यापक डॉ. अक्षय सेवक ने किया है। उनके इस दावे को जीयू के लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. राकेश रावल ने वैज्ञानिक आधार पर परखने के बाद सही बताया है।
डॉ. सेवक ने बताया कि लीवर सिरोसिस का जितना प्रभावी उपचार एलोपैथी में भी नहीं है, उतना प्रभावी उपचार जड़ी-बूटियों के जरिए बनाई गई उनकी ‘लिवनीÓ नाम की गोली (टेबलेट) से किया जा सकता है। महज 90 दिनों में ही इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं।
उन्होंने कहा कि लीवर सिरोसिस ही नहीं, बल्कि फैटी लीवर, हैपेटाइटिस-बी, लीवर फाइब्रोसिस सरीखे रोग इसके जरिए ठीक किए जा सकते हैं। उन्होंने 31 रोगियों को उनकी दवाई लिवनी के जरिए ठीक किया है। इस दवाई की तीन-तीन गोलियां दिन में दो बार लेनी होती हैं। 9० दिनों में इसका परिणाम मिलने लगता है।
डॉ. सेवक बताते हैं कि आयुर्वेद औषधियों के बारे में वेदों में ही सब-कुछ लिखा है। उन्होंने वेदों में लिखी जड़ी बूटियों के प्रभाव को वैज्ञानिक परीक्षण से समझकर आधुनिक विज्ञान की मदद से उपचार शुरू किया है, जिसमें सफलता मिली है।
जीयू लाइफ साइंस के प्रोफेसर डॉ. राकेश रावल ने बताया कि डॉ. सेवक बीते एक दशक से भी ज्यादा समय से इस रोग के रोगियों को जड़ी-बूटी आधारित दवाई से ठीक कर रहे हैं। उनके इस दावे को आधुनिक वैज्ञानिक परीक्षणों की कसौटी पर परखा।
जीयू के लाइफ साइंस विभाग में हर महीने के दूसरे शनिवार को ओपीडी लगाई जाती है। जहां आने वाले रोगियों की उपचार शुरू होने से पहले और उपचार मिलने के ९० दिनों के बाद सोनोग्राफी, सिटी स्केन, रक्त जांच, वजन, डीएनए कैमेट आदि परीक्षण किए। जिनमें जड़ी-बूटी आधारित दवाई और उपचार पद्धति के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।
लीवर सिरोसिस जैसी गंभीर जानलेवा बीमारी के 3 रोगी, गैर एल्कोहलिक के २५, वाइरल हैपेटाइटिस के तीन, लीवर कैंसर के दो रोगी की हालत बेहतर हुई हैं। उनका मृत हुआ लीवर फिर से रिपेयर होने लगा। रक्त के डिटोक्सीफिकेशन की प्रक्रिया भी करने लगा। प्रो. रावल बताते हैं कि इस जांच में उस जीन को चिन्हित करने में सफलता पाई जो लीवर रोग के लिए काफीहद तक जिम्मेदार होता है।
जीयू की ओपीडी में डॉ. सेवक की बनाई जड़ी-बूटी का सेवन व उपचार कराने वाली सुष्मिता व्यास (६०) बताती हैं कि उन्हें काफी फायदा हुआ है। वे चेयर पर बैठकर यहां पहुंची थी और करीब छह महीने में वे अब जीयू परिसर में टहलती हैं। उन्हें स्तन कैंसर भी था, उसमें भी राहत है और लीवर की बीमारी भी पूरी तरह से ठीक हो गई है।
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