याची की दलील है कि केंद्र सरकार बिना उचित कानून बनाए केवल गजट अधिसूचना के जरिए विमुद्रीकरण का कदम नहीं उठा सकती
अहमदाबाद। गुजरात हाई कोर्ट ने आज लगातार दूसरे दिन भी विमुद्रीकरण को चुनौती देने वाले एक अन्य याचिका पर केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक से जवाब तलब किया। हाई कोर्ट ने किसानों के एक संगठन गुजरात खेडूत हितरक्षक समिति की ओर से दायर याचिका पर बुधवार को जवाब तलब किया। याची की दलील है कि केंद्र सरकार बिना उचित कानून बनाए केवल गजट अधिसूचना के जरिए विमुद्रीकरण का कदम नहीं उठा सकती।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति वी एम पंचोली की खंडपीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई भी मंगलवार को भावनगर जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष नानुभाई वाघाणी की ओर से गत 25 नवंबर को दायर याचिका के साथ पांच दिसंबर को करने का निर्णय किया। इसी अदालत ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (अतिरिक्त महान्यायवादी) तथा रिजर्व बैंक के अधिवक्ता से इस मामले में उनके जवाब दायर करने को कहा था।
वाघाणी का कहना है कि आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) सरकार को इस तरह से किसी मुद्रा को अचानक प्रतिबंधित करने का अधिकार नहीं देती। सरकार के पास विमुद्रीकरण के मामले मे केवल सीमित अधिकार हैं और उसके लिए भी इसे रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल की पूर्व अनुमति लेनी जरूरी होती है। किसानो के संगठन ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि वर्ष 1978 में तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार ने 1000, 5000 और 10000 रुपए के नोट के विमुद्रीकरण के पहले एक अध्यादेश निकाला था और बाद में संसद में संबंधित कानून को भी पारित कराया था।
इसने भी अदालत में आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) का हवाला देते हुए विमुद्रीकरण को कानून विरुद्ध बताया। दोनो ही याचियों ने सरकार की ओर से बैंको से पैसे निकालने पर रोक और विमुद्रीकरण के बाद वित्तीय लेन देन के मामले में जिला सहकारी बैंकों पर कुछ प्रतिबंध लगाए जाने के सरकार के अधिकार को भी चुनौती दी है।