अहमदाबाद. गुजरात उच्च न्यायालय ने 22 वर्ष पुराने एनडीपीएस के एक फर्जी मामले में गिरफ्तार बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट व एलसीबी के तत्कालीन पुलिस निरीक्षक आई. बी. व्यास को दस दिनों के पुलिस रिमाण्ड पर भेजने का आदेश दिया।
पालनपुर की मजिस्ट्रेट अदालत ने गत ६ सितम्बर को सीआईडी क्राइम की ओर से भट्ट व व्यास से पूछताछ के लिए दायर रिमाण्ड याचिका खारिज करते हुए जेल भेज दिया था। निचली अदालत के इस फैसले को राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से मुख्य सरकारी वकील मितेश अमीन ने दलील दी कि इस मामले में उचित तरीके से जांच व पूछताछ करने के लिए आरोपियों के रिमाण्ड की जरूरत है। उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण में आगे की जांच का आदेश दिया है, जबकि निचली अदालत ने रिमाण्ड की याचिका मंजूर नहीं रखी। इसलिए इस मामले में दोनों आरोपियों के लिए 14 दिनों की रिमाण्ड मंजूर की जाए। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि राजस्थान व पालनपुर का मामला अलग-अलग है।
उधर भट्ट की ओर से दलील दी गई कि राजस्थान व पालनपुर का मामला एक ही है। इस प्रकरण में आरोपपत्र भी पेश किया जा चुका है। इसलिए इस मामले में रिमाण्ड की आवश्यकता नहीं है।
दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने भट्ट व व्यास को दस दिनों के रिमाण्ड पर भेजने का आदेश दिया। न्यायालय के अनुसार दोनों आरोपी 12 से 21 सितम्बर तक रिमाण्ड अवधि पर रहेंगे।
सीआईडी क्राइम ने इस मामले में गत 5 सितम्बर को भट्ट तथा बनासकांठा पुलिस की एलसीबी के निरीक्षक आई बी व्यास को गिरफ्तार किया था। अगले दिन आरोपी अधिकारी को रिमाण्ड के लिए अदालत में पेश किया गया था, लेकिन स्थानीय अदालत ने जांच एजेंसी की रिमाण्ड याचिका खारिज करते हुए भट्ट सहित दोनों को पालनपुर सब जेल भेजने का आदेश दिया था।
पालनपुर की मजिस्ट्रेट अदालत ने गत ६ सितम्बर को सीआईडी क्राइम की ओर से भट्ट व व्यास से पूछताछ के लिए दायर रिमाण्ड याचिका खारिज करते हुए जेल भेज दिया था। निचली अदालत के इस फैसले को राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से मुख्य सरकारी वकील मितेश अमीन ने दलील दी कि इस मामले में उचित तरीके से जांच व पूछताछ करने के लिए आरोपियों के रिमाण्ड की जरूरत है। उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण में आगे की जांच का आदेश दिया है, जबकि निचली अदालत ने रिमाण्ड की याचिका मंजूर नहीं रखी। इसलिए इस मामले में दोनों आरोपियों के लिए 14 दिनों की रिमाण्ड मंजूर की जाए। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि राजस्थान व पालनपुर का मामला अलग-अलग है।
उधर भट्ट की ओर से दलील दी गई कि राजस्थान व पालनपुर का मामला एक ही है। इस प्रकरण में आरोपपत्र भी पेश किया जा चुका है। इसलिए इस मामले में रिमाण्ड की आवश्यकता नहीं है।
दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने भट्ट व व्यास को दस दिनों के रिमाण्ड पर भेजने का आदेश दिया। न्यायालय के अनुसार दोनों आरोपी 12 से 21 सितम्बर तक रिमाण्ड अवधि पर रहेंगे।
सीआईडी क्राइम ने इस मामले में गत 5 सितम्बर को भट्ट तथा बनासकांठा पुलिस की एलसीबी के निरीक्षक आई बी व्यास को गिरफ्तार किया था। अगले दिन आरोपी अधिकारी को रिमाण्ड के लिए अदालत में पेश किया गया था, लेकिन स्थानीय अदालत ने जांच एजेंसी की रिमाण्ड याचिका खारिज करते हुए भट्ट सहित दोनों को पालनपुर सब जेल भेजने का आदेश दिया था।
यह है मामला सीआईडी क्राइम ने उच्च न्यायालय के निर्देश पर ३० अप्रेल १९९६ को पालनपुर थाने में दर्ज एनडीपीएस के फर्जी मामले में भट्ट को गिरफ्तार किया है। भट्ट उस वक्त बनासकांठा जिले के पुलिस अधीक्षक थे। राजस्थान के वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित की ओर से वर्ष १९९८ में दायर याचिका पर गुजरात उच्च न्यायालय ने गत अप्रेल महीने में फैसला सुनाते हुए सीआईडी क्राइम से विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करते हुए तीन महीने में जांच पूरी करने को कहा था।
इस प्रकरण की जांच के दौरान सामने आया कि तत्कालीन बनासकांठा एसपी संजीव भट्ट ने राजस्थान के पाली जिले के वद्र्धमान मार्केट स्थित एक दुकान को खाली कराने के लिए तत्कालीन दुकान के कब्जाधारक पाली में बापूनगर निवासी वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित पर एनडीपीएस का फर्जी केस पालनपुर थाने में ३० अप्रेल १९९६ को दर्ज किया था। इस मामले में सुमेर सिंह की कुछ दिनों बाद ही गिरफ्तारी भी की थी।
1988 बैच के आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को वर्ष २०१५ में केन्द्र सरकार की ओर से बर्खास्त किया जा चुका है।
इस प्रकरण की जांच के दौरान सामने आया कि तत्कालीन बनासकांठा एसपी संजीव भट्ट ने राजस्थान के पाली जिले के वद्र्धमान मार्केट स्थित एक दुकान को खाली कराने के लिए तत्कालीन दुकान के कब्जाधारक पाली में बापूनगर निवासी वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित पर एनडीपीएस का फर्जी केस पालनपुर थाने में ३० अप्रेल १९९६ को दर्ज किया था। इस मामले में सुमेर सिंह की कुछ दिनों बाद ही गिरफ्तारी भी की थी।
1988 बैच के आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को वर्ष २०१५ में केन्द्र सरकार की ओर से बर्खास्त किया जा चुका है।