अहमदाबाद

‘जीएसएफयू का मामला राज्य की शिक्षा व्यवस्था की आंखें खोलना जैसा’

-जीएफएसयू के सीएसआईआर पाठ्यक्रम में फैकल्टी के मामले में अपील याचिका

अहमदाबादMay 10, 2018 / 11:00 pm

Uday Kumar Patel

 
अहमदाबाद. गुजरात उच्च न्यायालय ने फॉरेन्सिक साइंस युनिवर्सिटी (जी.एफ.एस.यू.) के एम.टेक. इन साइबर सिक्युरिटी एंड इंसिडेंस रिस्पॉन्स (सीएसआईआर) पाठ्यक्रम के उचित फैकल्टी के अभाव में दायर अपील याचिका पर युनिवर्सिटी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को आड़े हाथों लिया।
न्यायाधीश एम. आर. शाह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने टिप्पणी की कि विद्यार्थी की ओर से की गई याचिका में यदि 20 फीसदी भी सच्चाई है तो यह काफी चिंताजनक है। खंंडपीठ ने मौखिक अवलोकन में कहा कि यह पूरा मामला राज्य के शिक्षा व्यवस्था का आंख खोलने वाला बन गया है। विद्यार्थी को दाखिल देते समय पुस्तिका व वेबसाइट पर अच्छी बातें बताई जाती हैं लेकिन प्रवेश लेने के बाद अध्यापन के लिए फैकल्टी नहीं होती है। निजी कंपनियों के साथ एमओयू कर प्रोफेसर को अध्यापन के लिए बुलाकर युनिवर्सिटी शिक्षा का आउटसोर्सिंग कैसे कर सकती है? न्यायालय भी यह चाहती है कि जीएफएसयू अच्छी शिक्षा दें, लेकिन युनिवर्सिटी खोलने के बाद फैकल्टी की शोध में निकलना कैसी पद्धति है?
क्या यूजीसी शिक्षा के क्षेत्र में आउटसोर्सिंग को मंजूरी देती है?

न्यायाधीश शाह ने यूजीसी से सवाल किया कि क्या इस युनिवर्सिटी को मान्यता दी गई है। फैकल्टी के लिए क्या मानदंड हैं? यदि मानदंड के अनुसार फैकल्टी नहीं हो तो इसकी देखरेख की जिम्मेवारी किसकी है? यह विवाद याचिकाकर्ता व युनिवर्सिटी के बीच है, ऐसा कह यूजीसी किस तरह से अपने आंख-कान अलग कर सकती है? क्या यूजीसी शिक्षा के क्षेत्र में आउटसोर्सिंग को मंजूरी देती है?
यूजीसी पर टिप्पणी के बाद खंडपीठ ने युनिवर्सिटी से कहा कि दाखिले के समय विद्यार्थियों को पुस्तिका में अच्छी बातें दिखाई गई, लेकिन वास्तविक स्थिति कुछ अलग ही है। किस तरह से प्रोफेसरों को आउटसोर्सिंग से लाकर विद्यार्थियों को पढ़ाया जा सकता है। ये विद्यार्थियों पिछले तीन वर्ष से शिकायत कर रहे हैं, लेकिन इसका कोई समाधान नहीं निकल रहा है जो काफी दु:खद है। क्या युनिवर्सिटी इस मामले में सुधार करने को तैयार हैं या नहीं, नहीं तो न्यायालय यूजीसी को आदेश करेगी कि इस मामले में कार्रवाई की जाए।
खंडपीठ ने अत्यंत गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह की पद्धति ऐसी प्रसिद्ध युनिवर्सिटी की छवि खराब करती है। इस युनिवर्सिटी की ओर से सभी की निगाहेंं हैं। शिक्षा की गुणवत्ता जैसी भी कोई बात होती है या नहीं। इस तरह से यदि विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा मिलेगी तो यहां के विद्यार्थी देश-विदेश के विद्यार्थियों के साथ कैसी प्रतिस्पर्धा करेंगे। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक विद्यार्थी का मूलभूत अधिकार है। यह सिर्फ युनिवर्सिटी नहीं बल्कि पूरे राज्य की शिक्षा व्यवस्था के लिए आंखेंंं खोलने जैसा है। इस युनिवर्सिटी को अपनी अलग पहचान बनानी चाहिए। इसे यह उदाहरण पेश करना चाहिए कि दूसरी युनिवर्सिटी इनका उदाहरण पेश करें।
राज्य सरकार को भी इस मामले को गंभीरता से लेने की बात कही। इस मामले में युनिवर्सिटी के छात्र व याचिकाकर्ता संदीप मुज्यासरा ने भी दलील दी। इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी।
युनिवर्सिटी के इसी पाठ्यक्रम के छात्र संदीप मुज्यासरा ने इस संबंध में अपील याचिका दायर की है। इसमें कहा गया कि इस तकनीकी पाठ्यक्रम में पर्याप्त फैकल्टी नहीं होने के बावजूद युनिवॢसटी मनमाफिक फीस वसूलती है। युनिवर्सिटी राज्य सरकार से ग्रांट लेती है। नियम के मुताबिक यदि युनिवर्सिटी सरकार की ग्रांट लेती हो तो एम.टेक और एम.ई. के पाठ्यक्रम की वार्षिक फीस 1500 है, लेकिन इसके बावजूद ऐसा नहीं है। इस संबंध में छात्र की ओर से दायर याचिका एकल न्यायाधीश ने खारिज कर दी जिसे खंडपीठ में चुनौती दी गई है।
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