रेमडेसिविर इंजेक्शन की आवश्यकता वाले मरीजों और परिवार के सदस्यों को यह इंजेक्शन लेने के लिए लंबी कतारों में घण्टों इंतजार करना पड़ रहा है। कोरोना मरीजों को अस्पताल में जगह नहीं मिल रही है। और तो और, श्मशान गृहों में भी इंतजार करना पड़ रहा है। यह बातें गुजरात में कोरोना की भयावह तस्वीर पेश करती हैं।
आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए सरकार की ओर से निर्धारित राशि से ज्यादा वसूली करने की शिकायतें भी सामने आ रही हैं, जबकि यह टेस्ट निशुल्क होने चाहिए। कोरोना जांच के लिए जगह-जगह लगाए गए तंबुओं में निशुल्क रैपिड एंटीजन टेस्ट करने के किट दोपहर तक ही खत्म होने की भी शिकायतें मिल रही हैं।
इस वर्ष जनवरी-फरवरी के समय कोरोना संक्रमण के जो मामले एकदम कम हो गए थे, उनमें अब फिर से भारी उछाल आया है। गुजरात हाई कोर्ट ने भी राज्य सरकार से कोरोना को नियंत्रित करने के बारे में जवाब मांगा है लेकिन, ऐसा लगता है सरकार असहाय दिख रही है।
लगता है जनता के वोटों से चुनी गई सरकार को अब जनता का दुख नहीं दिख रहा। अस्पतालों में जगह और इंजेक्शन नहीं, श्मशान गृहों में जगह नहीं, तंबुओं में जांच के किट नहीं, इसका ये मतलब है कि अब स्थिति संभल नहीं रही। हाई कोर्ट ने हालत नहीं संभलने पर हाहाकार की स्थिति आन पडऩे की आशंका व्यक्त की है। एक रुपए में एक मास्क की घोषणा हो चुकी है लेकिन इस पर अमल नही हो रहा। यही स्थिति इंजेक्शन की भी है।
कल्याणकारी राज्य में सरकार की ओर से जनता को राहत देने की जिम्मेदारी होती है लेकिन, आम आदमी को राहत नहीं मिलती दिख रही। ऐसी स्थिति में सरकार को आम लोगों की पीड़ा को समझते हुए कुछ ठोस और उचित निर्णय लेने की जरूरत है। इंजेक्शन, टेस्ट किट, वैक्सीन की कोई कमी नहीं होने पाए।