राज्य के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने दलील दी कि १९५१ में स्टेट ऑफ बॉम्बे बनाम एफ एन बलसारा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में नशाबंदी अधिनियम की कुछ धाराओं की वैधता को बरकरार रखा गया था।
इस पर याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कानून की चुनौती सिर्फ औषधीय उपयोग तक सीमित थी। तब सुप्रीम कोर्ट की ओर से शराब के सेवन पर प्रतिबंध लगाने की वैधता का सवाल तय नहीं किया गया था, इसलिए इस संदर्भ में गुजरात हाईकोर्ट निर्णय लेने में सक्षम है।
महाधिवक्ता ने इस मामले में और समय की मांग की। इसे देखते हुए खंडपीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई 12 अक्टूबर को तय की।
इस पर याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कानून की चुनौती सिर्फ औषधीय उपयोग तक सीमित थी। तब सुप्रीम कोर्ट की ओर से शराब के सेवन पर प्रतिबंध लगाने की वैधता का सवाल तय नहीं किया गया था, इसलिए इस संदर्भ में गुजरात हाईकोर्ट निर्णय लेने में सक्षम है।
महाधिवक्ता ने इस मामले में और समय की मांग की। इसे देखते हुए खंडपीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई 12 अक्टूबर को तय की।