मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायाधीश भार्गव कारिया की खंडपीठ ने राज्य सरकार से नाराजगी जताते हुए पूछा कि क्यों सिर्फ 108 एंबुलेंस में आने वाले मरीजों को ही अस्पताल में भर्ती किया जाता है। क्या पहले आओ, पहले पाओ (फस्र्ट कम, फस्र्ट बेसिस) के आधार पर अस्पताल में मरीजों को भर्ती किया जाता है। यदि यह बात सच हो तो इस पर राज्य सरकार को ध्यान देना चाहिए।
खंडपीठ ने राज्य सरकार और मनपा को सुझाव दिया कि निजी वाहनों से भी कोरोना के मरीज को लेकर डेजिग्नेटेड या सरकारी अस्पताल में लोग पहुंच रहे हैं तो मरीज की गंभीरता देखी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें ऐेसी शिकायतें मिली हैं कि मरीजों को बिना देखे ही घर भेज दिया जा रहा है। मरीज की स्थिति को देखा कि वह गंभीर है या नहीं। यदि नहीं है तो उसे घर भेजा जाए और सलाह दी जाए।
खंडपीठ ने यह कहा कि उन्हें यह भी शिकायत मिली है कि अस्पताल में जगह होने के बावजूद कोरोना मरीजों को भर्ती नहीं किया जाता। यदि ऐसा है तो इससे मकसद पूरा नहीं हो रहा।
खंडपीठ ने यह कहा कि उन्हें यह भी शिकायत मिली है कि अस्पताल में जगह होने के बावजूद कोरोना मरीजों को भर्ती नहीं किया जाता। यदि ऐसा है तो इससे मकसद पूरा नहीं हो रहा।