मूल पालनपुर तहसील के जगाणा के निवासी मूलजी देसाई ने शिक्षक के तौर पर अपना कॅरियर पूरा किया। जगाणा गांव मेें दो बार सरपंच भी रह चुके हैं। सेवानिवृत्ति के बाद लोगों की गतिविधियां कम हो जाती है, इसके विपरीत मूलजी देसाई पहले से भी ज्यादा सक्रिय हो गए। खेत में स्पोट्र्स जूते पहनकर युवाओं की तरह चहलकदमी करते देखे जाते हैं। इन्होंने अपनी 75 बीघे जमीन में से 50 बीघे जमीन में चंदन के पेड़ की बुवाई की।
कर्नाटक से लेकर आए चंदन के पौध
वर्ष 2012 में वे दक्षिण भारत के कर्नाटक से 500 चंदन के पौध लेकर आए थे। आज 50 बीघे में उनके 10 हजार चंदन के पेड़ तैयार हो चुके हैं। इसकी रखवाली के लिए उन्होंने सीसीटीवी कैैमरे की मदद ली है। वहीं चंदन के पेड़ों की खुराक के लिए उसके आसपास प्लाइवुड और नीम के पेड़ लगाए। चंदन के पेड़ की खासियत होती है उसके समीप खास पेड़ लगाकर उसकी खुराक की पूर्ति की जाती है। गुजरात में चंदन की बुवाई कुल बुवाई का महज 0.45 फीसदी है। जो कि कुल खेती 17 हजार 432 हेक्टेयर में से महज 80 हेक्टेयर है।
दो प्रकार के हैं चंदन
चंदन के मुख्य दो प्रकार हैं जिसमें सुखड और रक्त चंदन शामिल है। दोनों प्रकार के चंदन की खूब मांग है। चंदन की लकड़ी से फर्नीचर, पाउडर, अगरबत्ती, हैंडीक्राफ्ट, तेज, इत्र, परफ्यूम, साबुन समेत अन्य चीजों का निर्माण होता है। रक्त चंदन की विदेशों में खूब मांग है। इसकी चीन, जापान, सिंगापुर, मलेशिया, यूएई में मांग है। इसके अलावा चंदन के पेड़ के साथ बोए गए दूसरे पेड़ों की भी प्लाईवुड इंडस्ट्रीज में उपयोग होता है।
कर्नाटक से लेकर आए चंदन के पौध
वर्ष 2012 में वे दक्षिण भारत के कर्नाटक से 500 चंदन के पौध लेकर आए थे। आज 50 बीघे में उनके 10 हजार चंदन के पेड़ तैयार हो चुके हैं। इसकी रखवाली के लिए उन्होंने सीसीटीवी कैैमरे की मदद ली है। वहीं चंदन के पेड़ों की खुराक के लिए उसके आसपास प्लाइवुड और नीम के पेड़ लगाए। चंदन के पेड़ की खासियत होती है उसके समीप खास पेड़ लगाकर उसकी खुराक की पूर्ति की जाती है। गुजरात में चंदन की बुवाई कुल बुवाई का महज 0.45 फीसदी है। जो कि कुल खेती 17 हजार 432 हेक्टेयर में से महज 80 हेक्टेयर है।
दो प्रकार के हैं चंदन
चंदन के मुख्य दो प्रकार हैं जिसमें सुखड और रक्त चंदन शामिल है। दोनों प्रकार के चंदन की खूब मांग है। चंदन की लकड़ी से फर्नीचर, पाउडर, अगरबत्ती, हैंडीक्राफ्ट, तेज, इत्र, परफ्यूम, साबुन समेत अन्य चीजों का निर्माण होता है। रक्त चंदन की विदेशों में खूब मांग है। इसकी चीन, जापान, सिंगापुर, मलेशिया, यूएई में मांग है। इसके अलावा चंदन के पेड़ के साथ बोए गए दूसरे पेड़ों की भी प्लाईवुड इंडस्ट्रीज में उपयोग होता है।

चंदन की खेती के बारे में मूलजी देसाई बताते हैं कि इसके परिपक्व होने में 15 वर्ष लगते हैं। चंदन के दो वृक्षों के बीच 3 गुणे 3 मीटर का फासला होना जरूरी है। एक बीघे में 270 पौधे रोपे जा सकते है। बुवाई के 15 वर्ष बाद इससे आवक मिलनी शुरू हो जाती है, जो कि 100 वर्ष तक जारी रहती है। एक बीघे में किसान को सालाना पांच लाख की आवक होती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चंदन के भाव में दिन प्रतिदिन बढोतरी देखने को मिलती है। बड़ी आवक के लिए समय के साथ पूंजी का निवेश जरूरी है। इतने वर्ष तक चंदन के पेड़ की देखभाल करना आसान नहीं होता है। छोटे किसान इतनी पंूजी रोक नहीं सकते हैं। इसके बावजूद कई प्रगतिशील किसान अब इस दिशा में आगे आ रहे हैं। सरकार भी चंदन की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर प्रति पौध 30 रुपए की सहायता देती है। मूलजी देसाई संडलवुड सोसायटी ऑफ इंडिया बेंगलुरु के सदस्य भी हैं। अपने खेती की सफलता में वे सरकार के प्रोत्साहन को भी महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका कहना है कि चंदन की खेती से जहां पर्यावरण शुद्ध और सुगंधित होता है, वहीं विदेशी पूंजी भी मिलती है। यह किसानों की समृद्धि का द्वार खोलता है।