यहां पढऩे वाले विद्यार्थी हर दिन अपने होस्टल के कमरों व परिसर की खुद सफाई करते हैं। खुद जो खादी वस्त्र पहनते हैं उस वस्त्र को तैयार करने के लिए चरखे पर सूत की कताई कर उसे तैयार करते हैं। पढऩे वाले प्रत्येक युवा को चरखा चलाना भी सिखाया जाता है। यहां विद्यार्थियों को प्राकृतिक खेती, पशुपालन, समाज सेवा के भी गुर सिखाए जाते हैं। शाकाहार भोजन ही खिलाया जाता है। यहां खाने के लिए किस प्रकार सब्जियां उगा सकते हैं, कैसे प्राकृतिक खाद तैयार कर बेहतर अनाज प्राप्त कर सकते हैं उसका भी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके लिए परिसर में ही क्यारियां बनाई गई हैं। इमारत की छतों पर भी सब्जियां उगाई जाती हैं।
सत्य और अंहिसा व सादगी के गुर सिखाए जाते हैं। विद्यार्थियों को यदि कोई समस्या होती है तो वे चरखे पर सूत की कताई करते हुए अहिंसक तरीके से अपनी मांग रखते हैं।
गुजरात विद्यापीठ का वातावरण ही कुछ ऐसा है कि यहां शिक्षा लेने आने वाले विदेशी भी यहां आकर सादगी के रंग में रंग जाते हैं। विद्यापीठ गांधी विचारों की शिक्षा के सबसे बड़े केन्द्रों में से एक है। यहां अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित कई देशों के युवा व लोग गांधी विचारों की शिक्षा लेने आते हैं।
गुजरात विद्यापीठ रांधेजा परिसर के प्रोफेसर डॉ लोकेश जैन ने बताया कि गांधी मूल्यों के साथ शिक्षा लेने वाले विद्यापीठ के विद्यार्थी किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। गुजरात के पत्रकारिता क्षेत्र में गुजरात विद्यापीठ से पत्रकारिता की शिक्षा लेने वाले कई विद्यार्थी आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ,प्रिंट मीडिया में संपादक हैं। कई विद्यार्थी स्कूलों में ,कई कॉलेजों में प्राचार्य और प्राध्यापक हैं। ग्रामीण प्रबंधन में शिक्षा पाने वाले कई विद्यार्थी एनजीओ कृषि कंपनियों में अच्छे पद पर हैं। कई विद्यार्थी सरकारी कर्मचारी हैं। उद्यमी हैं। निजी कंपनी में सीईओ के पद पर भी हैं। कई विद्यार्थी योग शिक्षक हैं। कई आईटी कंपनियों में भी कार्यरत हैं।
महात्मा गांधी के बताए मूल्यों को लेकर गुजरातविद्यापीठ एक शताब्दी से भी ज्यादा समय से आगे बढ़ रही है। यहां अगर कुलनायक से लेकर क्लर्क और सभी विद्यार्थी खादी वस्त्र पहनते हैं तो वह केवल ड्रेसकोड नहीं है। वह सादगी का प्रतीक है। इससे युवा पीढ़ी को सादगी से जीवन जीने का संदेश दिया जाता है। परिसर की सफाई कराने के पीछे की सोच श्रम की महत्ता को दर्शाना है ताकि युवा पीढ़ी हाथों से काम करने वाले लोगों कि जिसमें श्रमिक, सफाईकर्मी व सभी आते हैं उन्हें तुच्छ न समझें। विद्यार्थी को पहनने के लिए कपड़ों की जरूरत पूरी करने के लिए चरखा चलाना सिखाते हैं, खाने के लिए अनाज पैदा कर सके इसलिए प्राकृतिक खेती सिखाते हैं। पेट पालने के लिए पशुपालन भी सिखाते हैे। आधुनिकता के दौर की भी शिक्षा दे रहे हंै। ऐसा कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जाती है।
-डॉ.राजेन्द्र खीमाणी, कुलनायक, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद