आवेदन करने वाले सभी विद्यार्थियों को दो चरण में प्रवेश आवंटित कर दिए गए हैं। उसके बाद की ये स्थिति है। ज्यादा सीटें खाली रहने की एक वजह इस वर्ष कोरोना संक्रमण है। शहर में कोरोना संक्रमण ज्यादा था, जिससे ज्यादातर विद्यार्थियों ने घर के पास के कॉलेज में प्रवेश लेना उचित समझा है। शहरी क्षेत्रों की कॉलेजों को कम विद्यार्थी मिले हैं, ग्रामीण क्षेत्र में स्थिति ठीक है। रिक्त सीटों के लिए तीसरा चरण भी किया जा रहा है। फिर पूरक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थियों को भी मौका मिलेगा ऐसे में कुछ समय बाद स्थिति और सुधरेगी।
-जयेश सोलंकी, ओएसडी, जीयू बीए प्रवेश समिति
हिंदी भाषा की महत्ता का संदेश लोगों तक पहुंचाने में हम सभी विफल रहे हैं। यही वजह है कि भाषा के रूप में इसे पढऩे वालों की संख्या में कमी देखने को मिल रही है। जबकि हिंदी में रोजगार के विपुल अवसर हैं। जरूरत इसके प्रचार-प्रसार और लोगों को इसकी सही उपयोगिता से अवगत कराने की है।
-शरद जोशी, कोषाध्यक्ष, गुजरात प्रांतीय राष्ट्रभाषा प्रचार समिति
बीए हिंदी में विद्यार्थियों के नहीं मिलने की वजह है नींव का कमजोर होना। स्कूलों में बतौर भाषा हिंदी और अन्य विषयों को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया जा रहा है। जिसका असर स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा पर देखने को मिलता है। हमें स्कूली स्तर पर हिंदी भाषा की शिक्षा को और रोचक, प्रभावी बनाना होगा। हिंदी का बाजार बेजोड़ है। आज देश में सबसे ज्यादा मांग ही हिंदी की है। फिर चाहे वह उद्यम हो,मनोरंजन क्षेत्र हो, टेलिविजन क्षेत्र हो, मीडिया क्षेत्र हो सबमें बोलबाला, विपुल रोजगार है। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा पर जोर से स्थिति आगे सुधरने की उम्मीद है।
-डॉ.नीरजा अरुण, प्राचार्य, भवन्स आट्र्स कॉलेज
शहरी क्षेत्रों में अन्य कोर्स के कॉलेजों की संख्या ज्यादा होने और कई विश्वविद्यालयों के खुल जाने से अवसर बढ़े हैं। ऐसे में हिंदी से बीए करने वालों की संख्या गिरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति आज भी ठीक है। वैसे कुछ दिनों बाद स्थिति और सुधरेगी। सही मायने में प्रवेश अब शुरू होंगे, जब बाहरी राज्यों से विद्यार्थी यहां का रुख करेंगे।
-प्रो.विमल सिंह, प्राध्यापक, आरएच पटेल आट्र्स एंड कॉमर्स कॉलेज