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बीए हिंदी का हाल बेहाल, जीयू में ७२ फीसदी सीटें खाली

locationअहमदाबादPublished: Sep 15, 2020 05:09:16 pm

Hindi, Gujarat university, BA Hindi, Hindi divas, Ahmedabad, Covid19, admission २४ में से 1० कॉलेजों को 10 विद्यार्थी भी नहीं मिले, शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाके में स्थिति बेहतर

बीए हिंदी का हाल बेहाल, जीयू में ७२ फीसदी सीटें खाली

बीए हिंदी का हाल बेहाल, जीयू में ७२ फीसदी सीटें खाली

नगेन्द्र सिंह

अहमदाबाद. देश में बड़े ही जोरशोर से हिंदी दिवस पर हिंदी भाषा के ज्यादा से ज्यादा उपयोग और उसकी बेहतरी के लिए कार्यक्रमों का आयोजन होता है,लेकिन बात करें शिक्षा की तो हाल बेहाल नजर आ रहा है। इसकी एक वजह कोरोना संक्रमण की स्थिति है तो बड़ी वजह स्कूलों में हिंदी भाषा शिक्षा की कमजोर स्थिति।
इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि गुजरात विश्वविद्यालय (जीयू) के २४ महाविद्यालयों में हिंदी स्नातक (बेचलर ऑफ आट्र्स-बीए) विषय की ७० फीसदी से ज्यादा सीटें खाली रह गई हैं। ये स्थिति तब है जब जीयू की ओर से दो चरण की प्रवेश प्रक्रिया को पूरा कर लिया गया है। २४ कॉलेजों में से १० कॉलेजों को तो 10 विद्यार्थी भी नहीं मिल पाए हैं। जबकि इनमें एक कॉलेज में ३० से लेकर 100 तक सीटें हैं। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों की कॉलेजों को अच्छी संख्या में विद्यार्थी मिले हैं। दहेगाम, गांधीनगर, माणसा और धोलका कॉलेज में सर्वाधिक विद्यार्थियों ने हिंदी बीए में प्रवेश लिया है।
जीयू प्रवेश समिति के अनुसार वर्ष २०२१-२२ में २४ आट्र्स कॉलेजों में बीए हिंदी विषय की १६०७ सीटें हैं, जिनमें से केवल ४४३ सीटें ही भरी हैं। 11६४ खाली हैं। गुजरात बोर्ड के विद्यार्थियों की १४६१ सीटों में से ४३८ सीटें ही भरी हैं। यानि ७० फीसदी सीटें खाली रह गईं। यदि बात करें गुजरात बोर्ड से बाहर के शिक्षा बोर्ड के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित १४६ सीटों की तो उसमें से केवल ३.४२ फीसदी सीटें ही भर पाई हैं। २४ में से केवल 2 कॉलेज को ही बाहरी बोर्ड के विद्यार्थी मिले हैं।
कोरोना का भी है असर
आवेदन करने वाले सभी विद्यार्थियों को दो चरण में प्रवेश आवंटित कर दिए गए हैं। उसके बाद की ये स्थिति है। ज्यादा सीटें खाली रहने की एक वजह इस वर्ष कोरोना संक्रमण है। शहर में कोरोना संक्रमण ज्यादा था, जिससे ज्यादातर विद्यार्थियों ने घर के पास के कॉलेज में प्रवेश लेना उचित समझा है। शहरी क्षेत्रों की कॉलेजों को कम विद्यार्थी मिले हैं, ग्रामीण क्षेत्र में स्थिति ठीक है। रिक्त सीटों के लिए तीसरा चरण भी किया जा रहा है। फिर पूरक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थियों को भी मौका मिलेगा ऐसे में कुछ समय बाद स्थिति और सुधरेगी।
-जयेश सोलंकी, ओएसडी, जीयू बीए प्रवेश समिति
हिंदी के महत्व का संदेश पहुंचाने में विफल
हिंदी भाषा की महत्ता का संदेश लोगों तक पहुंचाने में हम सभी विफल रहे हैं। यही वजह है कि भाषा के रूप में इसे पढऩे वालों की संख्या में कमी देखने को मिल रही है। जबकि हिंदी में रोजगार के विपुल अवसर हैं। जरूरत इसके प्रचार-प्रसार और लोगों को इसकी सही उपयोगिता से अवगत कराने की है।
-शरद जोशी, कोषाध्यक्ष, गुजरात प्रांतीय राष्ट्रभाषा प्रचार समिति
नींव हुई कमजोर, बाजार तो है बेजोड़
बीए हिंदी में विद्यार्थियों के नहीं मिलने की वजह है नींव का कमजोर होना। स्कूलों में बतौर भाषा हिंदी और अन्य विषयों को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया जा रहा है। जिसका असर स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा पर देखने को मिलता है। हमें स्कूली स्तर पर हिंदी भाषा की शिक्षा को और रोचक, प्रभावी बनाना होगा। हिंदी का बाजार बेजोड़ है। आज देश में सबसे ज्यादा मांग ही हिंदी की है। फिर चाहे वह उद्यम हो,मनोरंजन क्षेत्र हो, टेलिविजन क्षेत्र हो, मीडिया क्षेत्र हो सबमें बोलबाला, विपुल रोजगार है। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा पर जोर से स्थिति आगे सुधरने की उम्मीद है।
-डॉ.नीरजा अरुण, प्राचार्य, भवन्स आट्र्स कॉलेज
ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति है बेहतर
शहरी क्षेत्रों में अन्य कोर्स के कॉलेजों की संख्या ज्यादा होने और कई विश्वविद्यालयों के खुल जाने से अवसर बढ़े हैं। ऐसे में हिंदी से बीए करने वालों की संख्या गिरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति आज भी ठीक है। वैसे कुछ दिनों बाद स्थिति और सुधरेगी। सही मायने में प्रवेश अब शुरू होंगे, जब बाहरी राज्यों से विद्यार्थी यहां का रुख करेंगे।
-प्रो.विमल सिंह, प्राध्यापक, आरएच पटेल आट्र्स एंड कॉमर्स कॉलेज
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