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Ahmedabad News तीन आईपीएस अधिकारियों की भूमिका नकारात्मक: नानावटी आयोग

locationअहमदाबादPublished: Dec 11, 2019 10:13:43 pm

IPS Officer, Police, Nanavati commission, report, Gujarat vidhan sabha, Gujarat riots, Gujarat government गृह राज्य मंत्री जाडेजा ने कहा कि आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई करेगी राज्य सरकार
 

Ahmedabad News तीन आईपीएस अधिकारियों की भूमिका नकारात्मक: नानावटी आयोग

Ahmedabad News तीन आईपीएस अधिकारियों की भूमिका नकारात्मक: नानावटी आयोग

अहमदाबाद. गुजरात विधानसभा में बुधवार को पेश की गई जस्टिस जी.टी.नानावटी एवं जस्टिस अक्षय मेहता आयोग की रिपोर्ट में तीन पुलिस अधिकारियों (आईपीएस) की भूमिका को नकारात्मक बताया गया है। इन अधिकारियों में तत्कालीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आर.बी.श्रीकुमार, संजीव भट्ट और राहुल शर्मा शामिल हैं। तीनों आईपीएस अधिकारियों ने गोधराकांड और इसके बाद फैले गुजरात के दंगों में सरकार की कार्यवाही पर सवाल उठाए थे।
गृह राज्य मंत्री प्रदीप सिंह जाडेजा ने कहा कि आयोग की रिपोर्ट के आधार पर गुजरात सरकार इन अधिकारियों पर कार्रवाई करेगी। इनके विरुद्ध विभागीय जांच की जाएगी।
आयोग ने इन तीनों पुलिस अधिकारियों की ओर से आयोग में पेश किए गए शपथ-पत्र और दिए गए सबूतों को खारिज कर दिया। कुछ को अविश्वसनीय और फर्जी भी माना है।
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आर.बी.श्रीकुमार और आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया था कि २७ फरवरी २००२ की रात को मुख्यमंत्री आवास पर हुई प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों की बैठक में बहुसंख्यक जाति के लोगों को अपना गुस्सा अल्पसंख्यक जाति पर उतारने के दौरान किसी भी प्रकार की कड़ी कार्रवाई नहीं करने और गुस्सा उतारने देने को कहा था। लेकिन आयोग के पास संजीव भट्ट मुख्यमंत्री के आवास पर उस समय हुई बैठक में उनकी उपस्थिति को साबित नहीं कर पाए। भट्ट ने सरकार और उच्च अधिकारियों के साथ उनकी व्यक्तिगत तकरार के चलते बैठक में मुख्यमंत्री और सरकार पर लगत आरोप लगाए। भट्ट ने २७ फरवरी २००२ का जो फैक्स सबूत के तौर पर आयोग में पेश किया था। फैक्स के भी फर्जी होने की बात आयोग के ध्यान में आई है। क्योंकि इस फैक्स के संदर्भ में स्टेट आईबी के रिकॉर्ड की जांच करने पर पेश किया गया फैक्स नकली पाया गया होने की बात रिपोर्ट में कही गई है।
इसके अलावा आयोग को तत्कालीन मुख्यमंत्री की ओर से दिए गए जवाब में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उस बैठक में एसपी स्तर के आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट से मिलने की बात से इनकार किया है। इस पर आयोग ने माना कि भट्ट के आरोपों में सच्चाई दिखाई नहीं पड़ती।
श्रीकुमार ने शपथ पत्र पेश कर तत्कालीन मुख्यमंत्री की ओर से गैरकानूनी मौखिक निर्देश देने, साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के कोच नंबर छह के गोधरा रेलवे स्टेशन पर जला देने के बारे में उत्तर प्रदेश पुलिस के कर्मचारियों के प्रत्यक्षदर्शी साक्षी होने के बारे में एवं वकील पंड्या व सरकारी अधिकारियों के साथ हुई बैठक में कमीशन के सामने कैसे बयान देना है, उसके लिए दबाव डालने की बातचीत की जो टेप पेश कर आरोप लगाए थे। उसकी भी आयोग ने बारीकि से जांच कर उसे खारिज कर दिया है। आयोग ने कहा कि प्रथम शपथपत्र पेश करते समय और सबूत देते समय ही उन्हें आयोग के समक्ष गैरकानूनी सूचनाओं की बात को रखने की जरूत थी। बाद में रखने से उनकी विश्वसनीयता शंकास्पद बनती है। उत्तरप्रदेश पुलिस का कार्यक्षेत्र उत्तरप्रदेश तक ही सीमित है या फिर गुजरात की सीमा लगने तक ऐसे में उ.प्र.पुलिस कर्मचारियों ने ट्रेन को जलते देखा होने के प्रत्यक्षदर्शी के होने की जानकारी गलत है। कमीशन ने माना कि ऐसा गलत तथ्य पेश करने के पीछे श्रीकुमार का इरादा ठीक नहीं था। ऐसा उन्होंने सरकार की ओर से उन पर की गई कार्रवाई के चलते किया। टेप के वार्तालाप में दबाव के आरोप साबित नहीं होते। श्री कुमार को कोई भी दबाव या धमकी नहीं दी गई।
राहुल शर्मा की ओर से लगाए गए कि दंगों के समय प्रशासन और पुलिस के निष्क्रिय रहने के चलते दंगों के दौरान लोगों की जिंदगी को बचाने में सफलता नहीं मिली। आयोग ने शर्मा के इन आरोपों को खारिज कर दिया।
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