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अहमदाबाद

आईपीएस अधिकारी सुधा पांडे ने उठाया जंगल उगाने का बीड़ा

23 दिन में 1100 पौधे रोपे

अहमदाबादAug 18, 2019 / 12:03 am

Rajesh Bhatnagar

IPS officer Sudha Pandey took up the task of growing the forest

आईपीएस अधिकारी सुधा पांडे ने उठाया जंगल उगाने का बीड़ा

भावनगर. भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की अधिकारी सुधा पांडे ने मात्र एक-दो पेड़ नहीं, बल्कि पूरा जंगल उगाने का बीड़ा उठाया है। पर्यावरण प्रेमी सुधा की मेहनत से 23 दिन में 1100 पौधे रोपे गए हैं।
अहमदाबाद में सैजपुर नरोडा स्थित स्टेट रिजर्व पुलिस (एसआरपी) गु्रप 2 की कमाण्डेन्ट सुधा पांडे के नेतृत्व में पिछले दिनों सघन पौधरोपण अभियान शुरू किया गया। उन्होंने अपने अधीन ग्रुप परिसर के ग्रीन कवर में 100 प्रतिशत वृद्धि करने के निर्णय के साथ परम्परागत पद्धति से बड़े पैमाने पर पौधरोपण अभियान शुरू किया है।
जापान के अकिरा मियावकी नामक वनस्पति शास्त्र के विशेषज्ञ की ओर से किए गए शोध में इस पद्धति से 40 वर्ष से अधिक समय से सफलतापूर्वक पौधे रोपे जा रहे हैं। सुधा के अनुसार इस पद्धति के तहत अत्यन्त कम जमीन में काफी निकट, अलग-अलग देशी नस्ल के पौधे रोपे जाते हैं।
मात्र 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में परम्परागत तरीके से 9 से 12 पौधे रोपे जाते हैं, लेकिन इस पद्धति से इतने ही क्षेत्र में 20-25 प्रकार के करीब 300 पौधे रोपे जा सकते हैं। मात्र 2-3 वर्ष तक इन पौधों को पानी पिलाने से इतना ही क्षेत्र काफी ऊंचे वृक्षों और आर-पार दिखाई ना देने सरीखे जंगल में परिवर्तित होता है।
इस पद्धति से पौधे 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं, 30 गुना अधिक घने होते हैं, अनेक गुना अधिक ऑक्सीजन देते हैं और 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक होते हैं। तीन वर्ष बाद जंगल में परिवर्तित होने के बाद देखरेख की आवश्यकता भी नहीं होती।
उन्होंने इस पद्धति के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद इस प्रकार के पौधरोपण के लिए विशेषज्ञों को ढूंढ़ा और स्टाफ को आवश्यक प्रशिक्षण दिलवाया। इसके बाद मात्र एक सप्ताह में एसआरपी ग्रुप 2 के परिसर में 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में 285 पौधे रोपकर प्रथम मियावकी जंगल लगाया।
डीजीपी के निर्देश पर 135 पुलिस प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण

इस प्रयोग के बारे में जानकारी मिलने पर गुजरात के पुलिस महानिदेशक शिवानंद झा के निर्देश पर गुजरात पुलिस की सभी शाखाओं के 135 प्रतिनिधियों को इस पद्धति से पौधरोपण के लिए एसआरपी ग्रुप 2 में प्रशिक्षण दिलाने की योजना बनाई गई।
मियावकी पद्धति से 17 दिन में दूसरा जंगल लगाया

मियावकी पद्धति से एसआरपी ग्रुप 2 के परिसर में अधिकारियों व स्टाफ के प्रयासों से व मेहनत से मात्र 17 दिन के भीतर ही दूसरा जंगल लगाया गया है। सुधा के अनुसार इस वर्ष एसआरपी ग्रुप 2 परिसर में 3200 पौधे रोपने का लक्ष्य मिला। लगभग 70 एकड़ क्षेत्र में फैले हुए एसआरपी ग्रुप 2 परिसर पहले से ही 4 हजार पौधों के साथ अहमदाबाद का सबसे हरियाला क्षेत्र होने के कारण शुरुआत में यह लक्ष्य असम्भव लगा। क्षेत्र में 1500 पौधे लगाने का स्थान भी नहीं था। ऐसे में 3200 पौधे रोपना एक गम्भीर चुनौती की समान था।
इसके बावजूद बड़ी संख्या में पौधे रोपने और उनकी देखभाल करने की इच्छा व संकल्प भी उतना ही मजबूत था। ऐसे में वृक्ष प्रेमी व पर्यावरण संरक्षण की चिन्ता से परिचित एक मित्र ने मियावकी पद्धति के बारे में चर्चा की। उसी दिन से मात्र 23 दिनों में 15 अगस्त तक एसआरपी ग्रुप 2 परिसर में 3 मियावकी जंगल में मात्र 300 वर्ग मीटर क्षेत्र में 25-30 प्रकार के 1088 पौधे रोपने का कार्य पूरा किया। वर्षा ऋतु में और 1000 पौधे इसी पद्धति से रोपने की योजना है।
सुधा के अनुसार जिस क्षेत्र में मात्र 1500 पौधे लगाने का स्थान नहीं था, वहां इस पद्धति से 15000 पौधे लगाना सम्भव हुआ है। एसआरपी ग्रुप 2 की ओर से इस कार्य को मात्र अपने ग्रुप को दिए गए सरकारी लक्ष्य को पूर्ण करने के प्रयास के तौर पर ही नहीं, बल्कि पर्यावरण सुधार के एक मिशन के तौर पर अपनाया गया है। इसी कारण ग्रुप की टीम एक ग्रीन ब्रिगेड के तौर पर काम कर रही है। ‘मिशन क्लीन-ग्रीन कैम्पÓ को सफल बनाकर उसका उदाहरण अन्य लोगों का भी पर्यावरण सुधार के कार्य के लिए प्रोत्साहित करने व सहायता करने के लिए तैयार हैं।
यह है पौधरोपण की मियावकी पद्धति

सुधा के अनुसार इस पद्धति के जनक अकिरा मियावकी हैं। वे जापान के प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ हैं। विश्वभर के अनेक देशों में उन्होंने जंगल का निर्माण किया है। उन्होंने 100 वर्ष में बनने वाले जंगल को मात्र 10 वर्ष में तैयार किया है। इस कारण इस पद्धति को मानव सर्जित जंगल मियावकी का नाम दिया गया है।
इस पद्धति में सबसे पहले जमीन की जांच की जाती है। अगर जमीन में मिट्टी के कण छोटे हों तो वह सख्त बन जाती है, उसमें पानी नहीं उतर सकता। इसलिए जमीन में थोड़ा जैविक कचरा, थोड़ा पानी, शोषक सामग्री जैसे गन्ना अथवा नारियल के भूसे का मिश्रण डाला जाता है। इससे पानी को मिट्टी पकड़कर रखती है और नमी बनी रहती है। इस प्रकार जमीन को जंगल के लिए तैयार किया जाता है।

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