इसके बावजूद बड़ी संख्या में पौधे रोपने और उनकी देखभाल करने की इच्छा व संकल्प भी उतना ही मजबूत था। ऐसे में वृक्ष प्रेमी व पर्यावरण संरक्षण की चिन्ता से परिचित एक मित्र ने मियावकी पद्धति के बारे में चर्चा की। उसी दिन से मात्र 23 दिनों में 15 अगस्त तक एसआरपी ग्रुप 2 परिसर में 3 मियावकी जंगल में मात्र 300 वर्ग मीटर क्षेत्र में 25-30 प्रकार के 1088 पौधे रोपने का कार्य पूरा किया। वर्षा ऋतु में और 1000 पौधे इसी पद्धति से रोपने की योजना है।
सुधा के अनुसार जिस क्षेत्र में मात्र 1500 पौधे लगाने का स्थान नहीं था, वहां इस पद्धति से 15000 पौधे लगाना सम्भव हुआ है। एसआरपी ग्रुप 2 की ओर से इस कार्य को मात्र अपने ग्रुप को दिए गए सरकारी लक्ष्य को पूर्ण करने के प्रयास के तौर पर ही नहीं, बल्कि पर्यावरण सुधार के एक मिशन के तौर पर अपनाया गया है। इसी कारण ग्रुप की टीम एक ग्रीन ब्रिगेड के तौर पर काम कर रही है। ‘मिशन क्लीन-ग्रीन कैम्पÓ को सफल बनाकर उसका उदाहरण अन्य लोगों का भी पर्यावरण सुधार के कार्य के लिए प्रोत्साहित करने व सहायता करने के लिए तैयार हैं।
इस पद्धति में सबसे पहले जमीन की जांच की जाती है। अगर जमीन में मिट्टी के कण छोटे हों तो वह सख्त बन जाती है, उसमें पानी नहीं उतर सकता। इसलिए जमीन में थोड़ा जैविक कचरा, थोड़ा पानी, शोषक सामग्री जैसे गन्ना अथवा नारियल के भूसे का मिश्रण डाला जाता है। इससे पानी को मिट्टी पकड़कर रखती है और नमी बनी रहती है। इस प्रकार जमीन को जंगल के लिए तैयार किया जाता है।