गुजरात सरकार पहली से लेकर आठवीं कक्षा और नौवीं से लेकर १२वीं कक्षा तक में चरणबद्ध तरीके से एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू करने जा रही है। इसकी शुरूआत जून-२०१८ से पहली व दूसरी कक्षा से और नौवीं व 11वीं कक्षा से होने जा रहा है।
यूं तो राज्य सरकार के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में वर्ष २०१०-११ से २५६ स्कूलों में प्रज्ञा प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन किया जा रहा है। जिसके बेहतर परिणाम को देखते हुए हर साल इसे और कई स्कूलों में लागू किया गया। वर्ष २०१७-१८ में राज्य के २३ हजार स्कूलों में इसे लागू किया गया। जिसमें से २२ हजार स्कूलों में पहली और दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों को इस प्रोजेक्ट के तहत शिक्षा दी गई वहीं १३०० स्कूलों में कक्षा तीन और चार के विद्यार्थियों को शिक्षित किया गया। लेकिन अब कक्षा तीन और चार में इसे लागू नहीं किया जाएगा।
राज्य में शिक्षा पद्धति में समानता लाने के लिए एनसीईआरटी कोर्स लागू करने के साथ सभी सरकारी प्राइमरी स्कूलों में प्रज्ञा प्रोजेक्ट के तहत शिक्षा देने की योजना भी जून-२०१८ से लागू की जा रही है। इसके लिए प्राथमिक शिक्षकों को भी विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसे फिलहाल जून-१८ से पहली और दूसरी कक्षा में लागू किया जाएगा। इसके बाद आगामी वर्ष से चरणबद्ध तरीके से कक्षा तीन से पांच में एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकें लागू की जाएंगीं।
सरकार के इस निर्णय से शिक्षा से जुड़े कई विद्वान नाराज भी हैं। सरकार की ओर से कुछ समय के बाद निर्णय बदलने पर वह कहते हैं कि सरकार प्राइमरी कक्षाओं व बच्चों को प्रयोगशाला बना रही है।
क्या है प्रज्ञा प्रोजेक्ट
प्रज्ञा प्रोजेक्ट मौजूदा तरीके से दिए जाने वाले किताबी ज्ञान की तुलना में अनुभव और प्रयोग से शिक्षा देने वाली पद्धति है। इसके तहत बच्चों को अवलोकन सीढ़ी (ऑब्जर्विंग लेडर) के माध्यम से अक्षर, अंक ज्ञान दिया जाता है। जिसमें उन्हें उनकी योग्यता व समझ के अनुरूप सीखने में मदद मिलती है। अवलोकन सीढी चार्ट में दिए गए अक्षर व अंकों को सिखाने के लिए दूसरा चरण कार्ड का है। सीढी में लिखे अंक व अक्षरों के कार्ड एक ट्रे में रखे होते हैं, जिन पर उसका चित्र होता है, जिसे उठाने के लिए बच्चों से कहते हैं। जिससे बच्चा खुद चित्र को उठाता है और सीखता है। इसके अलावा समूह बनाकर और गतिविधियों के माध्यम से उन्हें पढ़ाया जाता है। हर बच्चे के सीखने की गति का अध्ययन भी किया जाता है। जिसमें अवकोलन सीढी चार्ट में दिए गए माइल स्टोन को सीखने में बच्चों को लगा समय का अध्ययन किया जाता है।
इसके बाद बच्चों को छह अलग अलग समूहों में बांटते हैं, जिसमें खुद अपने आप सीखने में सक्षम बच्चे, साथियों के साथ मिलकर सीखने में सक्षम बच्चे, साथियों के सहयोग से सीखने में सक्षम बच्चे, शिक्षकों की आंशिक मदद से सीखने में सक्षम बच्चे और शिक्षकों के सहयोग से सीखने में सक्षम बच्चे शामिल हैं। ऐसा करके इन्हें खेल-खेल में और अनुभव के आधार पर पढ़ाया जाता है। इस पद्धति से बच्चे की समझ, अवलोकन की योग्यता विकसित होती है। उस पर शिक्षा का बोझ एवं दबाव नहीं होता, जिससे वह एक स्वस्थ्य माहौल में सीखता है।