ऐसे में 79 वर्षीय राज्यपाल वाळा की भूमिका अहम हो जाती है। वे सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को पहले मौका देंगे या फिर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का दावा करने वाले जनता दल (एस) व कांग्रेस के गठबंधन को, यह एक-दो दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। सितम्बर 2014 में राज्यपाल का पद संभालने से पहले तक वाळा गुजरात भाजपा के कद्दावर नेता रह चुके हैं। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान सबसे चहेते मंत्रियों में शामिल थे। मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए वे नौ वर्षों तक गुजरात के वित्त मंत्री रहे। इतना ही नहीं वे गुजरात के लिए रिकॉर्ड 18 बार बजट भी पेश कर चुके हैं। इसलिए हिसाब-किताब के गणित में माहिर माने जाते हैं।
परिपाटी के अनुसार तो राज्यपाल सबसे बड़े राजनीतिक दल को सरकार बनाने के लिए पहले आमंत्रित करते हैं। लेकिन गोवा और मणिपुर में इसके उलट स्थिति देखी गई। 1975 में राजकोट महानगरपालिका में पार्षद चुने गए और 198 3 में वे राजकोट शहर के महापौर बने। 198 5 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार वाळा को राजकोट-2 से टिकट दिया और वे इस सीट से लगातार सात बार चुने गए। हालांकि दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में चार वर्षों तक राज्यपाल रहने के दौरान वाळा कई निजी व सरकारी कार्यक्रमों के लिए गुजरात आते रहे हैं।
मोदी के करीबी माने जाते हंै वाळा
वाळा ने ही सबसे पहले नरेन्द्र मोदी के लिए वर्ष 2001 में विधानसभा के उपचुनाव के दौरान अपनी राजकोट-2 सीट छोड़ी थी। इसी सीट ले जीतकर मोदी पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। हालांकि नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद विधानसभा अध्यक्ष रहे वाळा को कर्नाटक के राज्यपाल की जिम्मेवारी सौंपी। 26 वर्ष की उम्र में आरएसएस से जुडऩे वाले वाळा गुजरात जनसंघ के समय से सक्रिय रहे हैं। वे राज्य के कद्दावर पाटीदार नेता व पूर्व मुख्यंमत्री केशूभाई पटेल के साथ पार्टी में आगे बढ़ते रहे।